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#मनोज_तिवारी

सियासत की बिसात पर मोहरे ही क़ुर्बान होते हैं. व्यवस्था हमेशा भारी होती है. बहुतों को भारी पड़ने का अनुभव होगा. व्यवस्था के अलिखित संविधान में तय किया गया है कि हासिल गर हार है तो सेना हार गई. जीते तो राजा का युद्ध कौशल. तो दिल्ली के रण के नीति नियंता और मुख्य प्रचारक भाजपा के शाहणक्य ने विधानसभा चुनाव में अपना सर्वस्व झोंक दिया. दिल्ली की गलियों में पर्चे तक बांटे. नतीजे फिर भी मुंह चिढ़ाते नज़र आये. हाल के दिनों में अरविंद केजरीवाल जैसे घाघ नेता की कोई दूसरी बानगी दिखाई नहीं देती. केजरीवाल फिर आसानी से जीत गए. हारे तो शाह भी नहीं, उनका चाणक्य भी नहीं. हार गए मनोज तिवारी. दिल्ली प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष. दिल्ली विधानसभा चुनाव के छह महीने बाद उनको प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया है. अपना अध्यक्षीय कार्यकाल पूरा कर एक्सटेंशन पर चल रहे मनोज तिवारी की विदाई हो गई है.

साधारण पुरबिया परिवार में जन्मे मनोज तिवारी ने शुरुआती दिनों में काफी संघर्ष किया. गली मोहल्ले में गाना शौक से ज़्यादा मजबूरी थी. वक़्त ने पलटा खाया मनोज तिवारी टी सीरीज़ वाले गुलशन कुमार की आंख में चढ़ गए. 1996 में मां दुर्गा पर आधारित भोजपुरी भजन का पहला एल्बम 'बाड़ी शेर पर सवार' और 'मैया की महिमा' आया. बिहार और पूर्वांचल में लोग मनोज को जानने पहचानने लगे. मनोज तिवारी नवरात्रि जागरण की पहली पसंद बन गए. खूब गाये. खूब शो किये. देवी मईया का आशीर्वाद मिला. एक से बढ़कर एक हिट भोजपुरी गाने गाए. मनोज तिवारी भोजपुरी संगीत की सनसनी बन उभरे. 2003 में भोजपुरी संगीत का बादशाह एक्टर बनने की राह पर चल पड़ा. फिल्म की 'ससुरा बड़ा पइसा वाला'. इस फ़िल्म ने यूपी, बिहार में अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय की 'बंटी बबली' से ज़्यादा कमाई की. मनोज ने गर्त में जा पड़े भोजपुरी सिनेमा को अपने स्टारडम से संजीवनी प्रदान की. फिर एक के बाद एक फिल्मों की सफलता ने मनोज तिवारी के ग्लैमर में चार चांद लगा दिए. वैसे मनोज आलोचकों की नज़र में बेहद खराब अभिनेता रहे.

मनोज की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने हिलोरें लेना शुरू कर दी थीं. 2009 में मुलायम सिंह के नज़दीकी सिपहसालार अमर सिंह मनोज को समाजवादी पार्टी में ले आये. साईकिल पर बैठ मनोज ने गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र से यूपी के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चुनौती दी. योगी के गढ़ में मनोज मन मसोसकर रह गए. चुनाव में मिली हार ने समाजवादी पार्टी से मोहभंग करा दिया. अन्ना आंदोलन में दिखने वाले मनोज 2013 में भाजपा में शामिल हो गए. 2014 में दिल्ली से सांसद भी हो गए. दिल्ली में बढ़ती भोजपुरिया ताकत को राष्ट्रवादी खेमे में लाने के लिए इस भोजपुरिया स्टार को 2016 के नवंबर के आखिरी दिनों में दिल्ली प्रदेश का मुखिया बना दिया गया. मनोज के नेतृत्व में भाजपा ने दिल्ली के नगर निगमों में बड़ी जीत हासिल की. 2019 के लोकसभा चुनावों में सातों सीटें फिरसे जीत ली गईं. क्रेडिट तो मोदीजी को जा रहा था लेकिन मनोज इस कामयाबी में सुरक्षित रहे. मनोज सफलता के रथ पर सवार थे. कुछेक जगहों पर विवादों में घिरे. बदजुबानी को लेकर भी हमले झेलने पड़े. भाजपा का दिल्ली वाला काकस किसी भी सूरत में मनोज को पचा नहीं पा रहा था. दिल्ली के मित्र जानते होंगे कि पुरबियों को लेकर दिल्ली वाले कैसी मानसिकता रखते हैं. खैर 2020 के शुरुआत में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा फिर बुरी तरह हार गई.

सोशल मिडिया में मनोज तिवारी के आलोचकों में गैर भाजपा दलों के समर्थक तो हैं ही, राष्ट्रवादी भी ट्रोलिंग का कोई मौक़ा ज़ाया नहीं करते. उनके भोजपुरी गाने उनके ही खिलाफ़ जमकर इस्तेमाल किये जा रहे हैं. राष्ट्रवादियों को लगता है कि मनोज तिवारी के बस का दिल्ली नहीं था, और ना है. आलोचकों का मानना है कि मनोज के कद से बड़ा उनको पद दे दिया गया, जिस पर वो खरे नहीं उतरे. दिल्ली के छह सात सालों से दिल्ली के सियासी मिजाज़ को समझें तो ये अरविन्द केजरीवाल के इर्दगिर्द घूमती दिखाई देगी. दिल्ली ने अपने राज्य प्रमुख के तौर पर बस केजरीवाल को ही चाहा और माना है. अरविन्द केजरीवाल ने जबसे आंदोलन छोड़ा है तबसे दिल्ली के वही मुख्यमंत्री हैं. आप इसको ऐसे कह सकते हैं कि राजनीति में आने के बाद दिल्ली ने उनको ही मुख्यमंत्री बनाया है. ऐसे में इतनी मज़बूत दीवार को गिराने के लिए मनोज तिवारी से अपेक्षा करना अन्याय होगा. 'मीठा मीठा गड़प और कड़वा कड़वा थू' एक सच है. लेकिन हमें सच के तहों की भी यात्रा करनी है.

बाकी जिस ताक़त के चलते मनोज ने सियासत में ये मुकाम बनाया है, वो ताकत अभी भी उनके साथ है. ऐसा लगता है कि बिहार चुनाव में उनकी भूमिका नए पद और कद के साथ दिखेगी. 'सड़क खाली करा राजा के सवारी आवता..' गाने वाले कहीं राजा बन सवारी न करते दिख जाएं, देखना दिलचस्प होगा कि आलोचकों की नज़र जीतती है या फिर मनोज...

■अम्बरीष राय