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#आत्मदर्शन_भारत_4

#सनातन_की_आवाज_है ; #गीताप्रेस_गोरखपुर

#बचपन से ही पारिवारिक रिश्तों के नाते, माँ का घर होने के नाते गोरखपुर से लगाव था, आना-जाना था और स्वाभाविक है गोरखपुर #गीता_प्रेस के नाम पर जाना जाता है। सम्पूर्ण विश्व में कहीं भी जाइये गोरखपुर का नाम आते ही तुरन्त व्यक्ति गीता प्रेस की चर्चा करता है। देश में ही नहीं विश्व में प्रेस तो हजारों होंगे लेकिन यह शुद्ध रूप से भारत की आत्मा को जानने वाला, समझने वाला, उसके ज्ञान-विज्ञान के साहित्य को प्रकाशित करने वाला अधिकृत, आधुनिकतम और प्रमाणिक जहाँ किसी भी प्रकार के क्षेपक जुड़ने की संभावनाएँ नहीं है, ऐसे साहित्य का दर्शन कराता है अपने प्रकाशन के माध्यम से।

चूंकि भारत की आत्मा को बिना सनातन धर्म को समझे, बिना हिन्दुत्व को जाने समझा ही नहीं जा सकता। डॉ0 राम मनोहर लोहिया जी ने कहा था- ‘भगवान राम, श्रीकृष्ण, शिव और माँ जगदम्बा के बिना भारत की कल्पना भी नहीं हो सकती।’ अर्थात् गीता प्रेस ने श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भगवतगीता, श्रीमद्भागवतपुराण सहित 18 पुराण, सभी उपनिषद्, वेद और छोटी-छोटी पूज्य स्वामी राम सुखदास जी महाराज, पूज्य हनुमान प्रसाद पोद्धार जी, श्री जय दयाल गोयंका जी के द्वारा लिखित, रचित भास से भी ग्रंथाकार एवं छोटी-छोटी पुस्तिकाएँ जो सामान्य बालक भी पढ़ सके नैतिक शिक्षा की दृष्टि से, पूजन की दृष्टि से। जिसको विद्वान भी पढ़ सके और सामान्य बालक भी पढ़ सके ऐसे गीता प्रेस ने 1878 से ज्यादा प्रकाशन के द्वारा अपनी पुस्तकें प्रकाशित की। जिसमें लगभग 872 तो केवल हिन्दी और संस्कृत की हैं। शेष प्रकाशन गुजराती, मराठी, तेलगू, बंग्ला, उड़िया, तमिल, कन्नड़, अंग्रेजी एवं श्रीरामचरितमानस का प्रकाशन तो नेपाली में भी किया है।

इसके पीछे जिन महापुरूषों की तपस्चर्या है वे हैं पूज्य हनुमान प्रसाद जी पोद्धार, पूज्य राधा बाबा, स्वामी राम सुखदास जी महाराज। आधुनिक तथाकथित फिल्मकारों ने नारद जी को एक विदुषक चुगलखोर बना दिया, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि मैं देवर्षियों में नारद हूँ। जब हनुमान प्रसाद जी पोद्धार जी नारद भक्तिस्रोत की व्याख्या में अपने को असहाय समझ रहे थे तब गोरखपुर में उनके समक्ष दिन में देवर्षि नादर जी और अंगिरा जी ने प्रकट होकर नारद भक्तिस्रोत का प्रत्यक्ष उपदेश दिया है अर्थात् इस गीता प्रेस के लिए कितनी तपश्चर्या लगी है। ऋषियों का आज भी अदृश्य जगत में है, हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं, कृपा कर रहे हैं ऐसे ऋषियों का प्रत्यक्ष आशीर्वाद जिस प्रेस को उपलब्ध है। ऐसे गीता प्रेस का #कल्याण_अंक है जोे प्रथम अंक होता है जो एक विशेष विषय का विशेषांक होता है। जिस विशेषांक में किसी भी चीज को गहराई तक उस अंक को पढ़ने से समग्रता के साथ कोई बात छूटी नहीं ऐसा मेरी मान्यता है। उसको देखने से, पढ़ने से समझ में आता है। आज कल्याण अंक की 2 लाख से ज्यादा प्रतियाँ सम्पूर्ण संसार में जा रही है। उसके साथ में #कल्याण_कल्पतरू भी जा रहा है और जिसके सन्दर्भ में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधाी जी ने कहा था कि यह ऐसी ज्ञान की, विज्ञान की, सनातन धर्म की पुस्तिका है, पत्रिका है जिसमें किसी पुस्तक की समालोचना एवं किसी प्रकार का विज्ञापन नहीं होता। जिसका आज भी पालन वह आदर्श पत्रिका कर रही है।

अभी तक कुल मिलाकर प्रमुख अंकों की ही चर्चा करें तो श्रीमद्भगवतगीता के 1365 लाख अंक, श्रीरामचरितमानस एवं तुलसी सहित्य के 1049 लाख अंक, पुराण उपनिषद् आदि ग्रंथ 247 लाख, महिलाओं एवं बालकोपयोगी साहित्य 1089 लाख, भक्त चरित्र एवं भजनमाला 1553 लाख, अन्य प्रकाशन 1337 लाख कुल मिलाकर अभी तक 66 करोड़ 40 लाख अंक सनातन धर्म की सेवा के लिए प्रकाशित हो चुके हैं। गीता प्रेस किसी भी प्रकार के दान की, चंदे की समाज से अपेक्षा नहीं रखता, याचना नहीं करता और सम्पूर्ण साहित्य कम से कम लागत में उपलब्ध हो, सस्ता हो इस पर प्रयास आज भी है।

एक सामान्य सी बात अगर देखें वित्तीय वर्ष 2017-18 में गीता प्रेस ने 5729 लाख की पुस्तकें समाज को उपलब्ध करायी। जिसमें 4350 टन कागज का उपयोग होता है। यह संसार की विशालतम प्रेस में से एक है जो आत्मनिर्भर है, स्वावलम्बी है और भारत की मूल आत्मा को जो प्रकट करने वाला सनातन धर्म हिन्दू धर्म की सेवा में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। मैं परमपिता परमेश्वर से ऐसी कामना करता हूँ कि जिस लिए गीता प्रेस की स्थापना की गई है वह सतत् इसी प्रकार से अपनी अनुसंधानपूर्ण सनातन धर्म की सेवा करते रहें। धन्यवाद!