पीरा राम बिश्नोई एक मैकेनिक हैं और नेशनल हाईवे-65 पर अपनी एक छोटी-सी टायर पंक्चर की दुकान से अपना घर चलाते हैं। लेकिन इस साधारण आदमी की कहानी बहुत ही असाधारण है। पिछले एक दशक में, उन्होंने 1,180 घायल और बेसहारा जंगली जीवों को बचाया है!
जब हमने उनसे पूछा कि ऐसा क्या है, जो उन्हें लगातार यह काम करने के लिए प्रेरित करता है, तो वह एक कहावत दोहराते हैं। वह कहावत जो बिश्नोई समुदाय के हर बच्चे को बचपन में ही याद करा दी जाती है, “सर सान्टे रूख रहे तो भी सस्तो जाण।“ मतलब, अगर किसी के सिर के बदले एक पेड़ को बचाया जाए तब भी यह बहुत बड़ी बात नहीं है।
"जीव दया पालनी" (सभी प्राणियों के प्रति दया का भाव रखो), बिश्नोई समुदाय से होने के नाते इन विचारों को पीरा राम को सिर्फ सिखाया ही नहीं गया, बल्कि इनका पालन करते हुए जीवन जीने की प्रेरणा भी उन्हें मिली है।
आखिर यह सब आखिर कैसे शुरू हुआ?
हर सामान्य दिन की तरह, उस दिन भी पीरा राम हाईवे पर अपनी टायर पंक्चर की दुकान की तरफ जा रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि एक गाड़ी तेजी से आई और एक चिंकारा को रौंदते हुए चली गई। वे बताते हैं, "
चिंकारा गंभीर रूप से घायल हो गया था और जैसे-तैसे सड़क के इस पार आया। मैंने देखा कि उसकी सांसे भारी हो रही थीं, वह दर्द में मदद के लिए रो रहा था। मैं भागकर उस जगह पर गया और उस घायल जानवर को अपनी गोद में उठाया, जल्दी से एक गाड़ी में बैठा और उसे जानवरों के अस्पताल लेकर गया।" पीरा राम ने इलाज के पैसे अपनी जेब से दिए, और जब इलाज के बाद अस्पताल ने चिंकारा को किसी आश्रय गृह में ले जाने के लिए कहा तो वह उसे अपने घर ले आए।
अगले पाँच सालों तक यह काम चलता रहा, जहां वह हर तरह के घायल जानवरों और पक्षियों को घर ले आते और घरेलू नुस्खों से उन्हें स्वस्थ करते। उनके काम ने उनके गाँव, धामना और आसपास के गाँवों के लोगों को भी प्रेरित किया। अगर बाकी गाँव वालों को भी कोई घायल जानवर मिलता तो वे उसे लेकर पीरा राम के पास पहुँचते।
लेकिन सराहना के साथ-साथ उन्हें शिकारियों और तस्करों के गुस्से का भी शिकार होने पड़ा। कई बार उनके जीवन को भी खतरा हुआ है। लेकिन जन हमनें उनसे पूछा कि क्या वह डरते हैं तो उन्होनें कहा, "अगर मैं किसी को जंगली जीवों पर गोली चलाते हुए देखूँगा तो मैं उनकी निर्मम हत्या देखने की बजाय उन्हें बचाते हुए मरना पसंद करुँगा। मैं उन शिकारियों और तस्करों के सामने नहीं झुकूंगा। ये जीव हमारी अपनी ज़िंदगी से ज्यादा कीमती हैं।"
आप सच्चे नायक हैं, पीरा राम जी।
इस #विश्व_पर्यावरण_दिवस पर, हम देश के उन अनसुने आदिवासी नायक/नायिकाओं को सलाम करते हैं जो आज के सामाजिक संगठनों के अस्तित्व में आने के सालों पहले से प्रकृति की रक्षा कर रहे हैं!