Jitendra nagvanshi chaurasia's Album: Wall Photos

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जब सरकारी स्कूल तबाह हो रहे थे.... जब सरकारी अस्पताल बर्बाद हो रहे थे। आप खामोश थे। हम खामोश थे। आपको "स्टेटस" चाहिए था ना ? करप्शन के कमाए धन से रुतबे की चाहत थी ना ? विशेष दिखने का पागलपन सवार था ना ?
आज प्राइवेट स्कूल की मनमानी पर रोना-पीटना क्यों भाई ?

एक वक्त था, मेरी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से देश के बहुसंख्य आईएएस निकलते थे। याद रखें, पढ़ाई से ज्यादा महत्वपूर्ण "परिवेश" होता है। तब सेंट मेरी या सेंट जोसफ के बच्चे भी हम सरीखे छंगामल इंटर कालेज के निकले छात्रों के साथ पढ़ने को मजबूर थे, और छंगामल के बच्चे बाजी मार ले जाते। मेरे तमाम आईएएस अधिकारी मित्र ऐसे ही सरकारी स्कूलों की पैदाइश है। हम "परिवेश" की लड़ाई हार चुके हैं। घर के भीतर भी, घर के बाहर भी।

दरअसल, पिछले तीन दशकों में हिंदी पट्टी में रियल इस्टेट से राजनीति की जो "दलाल संस्कृति" उठी, उदारवादी अर्थ व्यवस्था की वजह से बहुत तेजी से जो अनाप-शनाप धन आया... उसने कारोबारियों के बीच एक बड़े बाजार को हड़पने की होड़ मचा दी। क्या अफसर ? क्या शिक्षक ? सभी कारोबारी बन बैठे ? गलत-सलत, जैसे-तैसे हर हाल में "माल" चाहिए।

आज आप प्राइवेट स्कूल, प्राइवेट हॉस्पिटल के मकड़जाल में फंस चुके है। पीछे की रक्षापंक्ति ध्वस्त कर चुके हैं आप। कोई रक्षक नहीं बचा।

यही हाल एक दिन #हिन्दू_इकॉनमी का होगा। आपको ब्रांडिंग चाहिए ? आपको पैकेजिंग चाहिए ? आपको विज्ञापन चाहिए ? आपको तमाम तरह के सर्टिफिकेशन चाहिए ? आपको कंपटीटिव प्राइज के नाम पर सस्ता चाहिए ? इत्मीनान रखिए, सब कुछ मिल रहा है! सब कुछ ऐसे ही मिलेगा! पर वह दिन दूर नहीं, जब इन सब की पाई आपसे ही वसूली जाएगी! लेकिन तब शायद रोने के लिए आंखों में आंसू भी ना बचे हों।

कीमत आप नहीं, आपकी सन्तान अदा करेगी। श्रीराम भी नहीं बचा सकते। मुतमइन रहिए।
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