फैज खान क़ुरान मजीद सूरह बकरा आयत 67 से 73 तक पढो उसमे गौहत्या का हुक्म दिया है अल्लाह ने मूसा को।
तुम कहते हो तुम क़ुरान को भी मानते हो यानी मुस्लिम हो और फिर कहते हो गौरक्षक भी हु। ए कौन सी बात हुई? कहावत है अवधी में गुड़ खाए गुलगुला(गुड़ की मिठाई) से परहेज। या तो क़ुरान की बात को मान लो या गौरक्षा कर लो।
अब आते है राम मंदिर पर। मन्दिर सेक्युलर जगह नही होती ये धार्मिक जगह होती है। मन्दिर के अपने नियम होते है। जैसे मस्जिद के अपने नियम होते है। मस्जिद में आप शराब नही पी सकते पर चर्च में red wine पी जाती है ब्रेड के टुकड़े के साथ। उसी तरह मन्दिर का भी अपना विधान है कि इसमें आने वाला व्यक्ति सनातन धर्म को मानता हो। वो दूसरे मजहब का न हो। तुम कहते हो कि तुम राम जी को मानते हो जबकि क़ुरान कहती है अल्लाह के सिवा दूसरा कोई माबूद नही। इसलिए तुमने राम जी को अल्लाह से बड़ा या बराबर नही बल्कि एक छोटा इमाम बता दिया जो खलीफा से भी छोटा है और पैगम्बर,जिब्राइल,मिकाइल से भी छोटा है।
जबकि हिन्दू राम जी को इमाम नही बल्कि विष्णु भगवान का अवतार मानता है। चालाकी और धोखेबाजी कूट कूट के भरी है तुममें। अगर नही भरी है तो वैदिक धर्म स्वीकार करो। तुम संगम टॉक्स पर कहे थे कि लड़की कौन देगा। तो एक सज्जन लड़की विवाह करने तक को तैयार हो गए। तुमको विवाह की दिक्कत ही है तो आर्यसमाजियों को मैरिज के लिए सम्पर्क करो बहोत से मुस्लिम आर्यसमाज से शुद्धि कर के हिन्दू बने है वो विवाह कर देंगे। आजकल तो वैसे भी लव मैरिज का जमाना है।
तुम्हारे घर मे भी 4 लव मैरिज वाले मिलेंगे और पड़ोसी के घर भी, कर लेना तुम भी। पण्डित महेंद्र पाल आर्य को देखो। उनको कौन सी दिक्कत हो गयी आखिर मुस्लिम से हिन्दू बन ही गए न वो।
राम मंदिर के लिए हिन्दुओ ने युद्ध लड़ा है और संघी भी जो लड़े सभी हिन्दू थे। बकवास कम किया करो पाखंडी। कलाम बनने की नौंटकी मत करो। कलाम के पैर की धूल भी नही हो।