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रानी को नहीं पकड़ पा रहे थे अंग्रेज, साई के अब्बू बहरुद्दीन ने की थी रानी से गद्दारी

*साई का इतिहास-* अवश्य पढ़ें

बीरगति को प्राप्त हुई रानी लक्ष्मी बाई को मरवाने वाले गद्दारो के बारे मे इतिहास लोगों में
अब तक यही धारणा है कि झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई अँग्रेजों से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुई थी और यह बात सत्य भी है।

परंतु कितने लोगों को पता है कि इस विरांगना को पकड़ना अँगरेजों के लिए दुष्कर ही नहीं बल्कि असंभव था ।

सालों से अँगरेजों के नाक में दम करने वाली रानी को पकड़ने के लिए जब अंग्रेजों को कुछ उपाय नहीं सुझा तब उन्होंने पुराने तरीके आजमाए ।
यानी कि किसी गद्दार सैनिक की खोज जो रानी की सेना में हो और रानी के बारे में काफी कुछ जानता हो गद्दारों का इतिहास देखें तो सिर्फ दो नाम ऐसे हें जिन्होंने भारत के इतिहास को बदल कर रख दिया था।

पहला गद्दार सोलंकी राजा भीमदेव उर्फ माला भीम
जिसने जयचंद को बदनाम किया था और जो हिन्दू साम्राज्य के विनाश का कारण बना
जिनके बादआठ सौ वर्षों तक मुस्लिमों ने शासन किया।

दूसरा गद्दार मीर जाफर हुआ।
जो बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला का सेनापति था।
वह महत्वाकांक्षी एवं लालची था भारत में अंग्रेजी राज्य की नींव बंगाल से ही पड़ी थी जब प्लासी की लड़ाई में अँगरेजों(रॉबर्टक्लाइव) ने नवाब को हराया था और उसी लड़ाई में गद्दार मीर जाफर अँग्रेजों से मिल गया था।
बाद में यानी 1757 में अँग्रेजों ने उसे बंगाल का नवाब बनाया ।

अब आते है तीसरे गद्दार पर
जो रानी लक्ष्मीबाई की मौत का कारण बना
वह था बहरूद्दीन यानी कि चाँद मियाँ ( साँईंबाबा) का बाप बहरूद्दीन,जो कि एक अफगानी पिंडारी मुसलमान था।
रानी लक्ष्मीबाई की सेना में लगभग 500 पिंडारी सैनिक थे ।
जिसमें साँईं के पिता का स्थान रानी के निकटतम एवं विश्वस्त सैनिको में था ।
अब अँग्रेजों ने बहरूद्दीन को लालच देकर रानी से गद्दारी करने को तैयार कर लिया।
इसी के निशान देही पर अँग्रेजों ने रानी को घेरा।
रानी अपने इकलौते बेटे को पीठ पर बाँधे भागती रही। अंग्रेज पीछा करते रहे पर रानी हाथ नहीं लगी।
अब रानी का पीछा करने का जिम्मा पाँच पिंडारियों को दिया गया जिसमें एक शिर्डी वाले चाँद मिया उर्फ़ साईँ का पिता भी था।
उसे रानी के छिपने के स्थानों का पता था।
अन्ततः रानी को घेर लिया गया।

रानी रणचण्डी की तरह माँ भारती की शान को ना झुकने का प्रण लिए अपनी तलवार से कत्लेआम मचाती रही ।

अंग्रेज सेनापति हैरान था कि कैसे एक अकेली महिला उसके सैनिकों को काट रही है ।
रानी गिरती फिर उठती फिर गिरती फिर उठकर लड़ती कईयों की गर्दनें उड़ा देने के पश्चात अंत में वो गिरी। तलवार उसके हाथों से दूर जा गिरा ।
हार फिर भी ना मानी वो अपनी तलवार लेने के लिए अंतिम बार उठी , निहत्था पाकर पिंडारी सैनिकों ने रानी पर जोरदार वार किया , रानी फिर कभी नहीं उठी।
रानी वीर गति को प्राप्त कर चुकी थी भारत की इस बेटी ने अपनी अंतिम साँस तक अपनी मातृभूमि की , अपने देश की रक्षा की इस महान विरांगना के चरणों में मैं शीष नवाती हूँ------------------------------

->>यह रहा साईं बाबा का कच्चा चिट्ठा

साईं का जन्म 1838 में हुआ था,
पर कैसे हुआ और उसके बाद की पूरी कथा बहुत ही रोचक है,
साईं के पिता का असली नाम था बहरुद्दीन,
जो कि अफगानिस्तान का एक पिंडारी था,
वैसे इस पर एक फिल्म भी आई थी जिसमे पिंडारियो को देशभक्त बताया गया है,
ठीक वैसे ही जैसे गाँधी ने मोपला और नो आखली में हिन्दुओ के हत्यारों को स्वतंत्रता सेनानी कहा था.

औरंगजेब की मौत के बाद मुग़ल साम्राज्य ख़त्म सा हो गया था।
केवल दिल्ली उनके अधीन थी, मराठा के वीर सपूतो ने एक तरह से हिन्दू साम्राज्य की नीव रख ही दी थी, ऐसे समय में मराठाओ को बदनाम करके उनके इलाको में लूटपाट करने का काम ये पिंडारी करते थे,
इनका एक ही काम था लूटपाट करके जो औरत मिलती उसका बलात्कार करना,
आज एक का बलात्कार कल दूसरी का, इस तरह से ये मराठाओ को तंग किया करते थे,
पर समय के साथ साथ देश में अंग्रेज आये और उन्होंने इन पिंडारियो को मार मार कर ख़तम करना शुरू किया.

साईं का बाप जो एक पिंडारी ही था,
उसका मुख्य काम था अफगानिस्तान से भारत के राज्यों में लूटपाट करना।
एक बार लूटपाट करते करते वह महाराष्ट्र के अहमदनगर पहुचा।जहा वह एक वेश्या के घर रुक गया
उम्र भी जवाब दे रही थी, सो वो उसी के पास रहने लग गया।
कुछ समय बाद उस वेश्या से उसे एक लड़का और एक लड़की पैदा हुई,
लड़के का नाम उसने चाँद मियां रखा और
उसे लेकर लूटपाट करना सिखाने के लिए उसे अफगानिस्तान ले गया.
उस समय अंग्रेज पिंडारियो की ज़बरदस्त धर पकड़ कर रहे थे,
इसलिए बहरुद्दीन भेष बदल कर लूटपाट करता था. उसने अपने सन्देश वाहक के लिए चाँद मिया को रख लिया,

चाँद मिया आज कल के उन मुसलमान भिखारियों की तरह था जो चादर फैला कर भीख मांगते थे,
जिन्हें अँगरेज़ Blanket Begger कहते थे,
चाँद मिया का काम था लूट के लिए सही वक़्त देखना और सन्देश अपने बाप को देना,
वह उस सन्देश को लिख कर उसे चादर के नीचे सिल कर हैदराबाद से अफगानिस्तान तक ले जाता था,
पर एक दिन ये चाँद मियां अग्रेजो के हत्थे लग गया और उसे पकडवाने में झाँसी के लोगो ने अंग्रेजो की मदद की जो अपने इलाके में हो रही लूटपाट से तंग थे.

उसी समय देश में पहली आजादी की क्रांति हुई और पूरा देश क्रांति से गूंज उठा,
अंग्रेजो के लिए विकट समय था और इसके लिए उन्हें खूंखार लोगो की जरुरत थी,
बहर्दुद्दीन तो था ही धन का लालची, सो उसने अंग्रेजो से हाथ मिला लिया और झाँसी चला गया।
उसने लोगो से घुलमिल कर झाँसी के किले में प्रवेश किया और समय आने पर पीछे से दरवाजा खोल कर रानी लक्ष्मी बाई को हराने में अहम् भूमिका अदा की

यही चाँद मिया आठ साल बाद जेल से छुटकर कुछ दिन बाद शिर्डी पंहुचा और
वहां के सुलेमानी लोगो से मिला जिनका असली काम था गैर-मुसलमानों के बीच रह कर चुपचाप इस्लाम को बढ़ाना.

चाँद मियां ने वही से अलतकिया का ज्ञान लिया और हिन्दुओ को फ़साने के लिए साईं नाम रख कर शिर्डी में आसन जमा कर बैठ गया।

मस्जिद को जानबूझ कर एक हिन्दू नाम दिया और उसके वहा ठहराने का पूरा प्रबंध सुलेमानी मुसलमानों ने किया,
एक षड्यंत्र के तहत साईं को भगवान का रूप दिखाया गया और पीछे से ही हिन्दू मुस्लिम एकता की बाते करके स्वाभिमानी मराठाओ को मुर्दा बनाने के लिए उन्हें उनके ही असली दुश्मनों से एकता निभाने का पाठ पढाया गया.

पर पीछे ही पीछे साईं का असली मकसद था लोगो में इस्लाम को बढ़ाना,

इसका एक उदाहरण साईं सत्चरित्र में है कि साईं के पास एक पुलिस वाला आता है जिसे साईं मार मार भगाने की बात कहता है,
अब असल में हुआ ये की एक पंडित जी ने अपने पुत्र को शिक्षा दिलवाने के लिए साईं को सौप दिया,
पर साईं ने उसका खतना कर दिया.

जब पंडितजी को पता चला तो उन्होंने कोतवाली में रिपोर्ट कर दी,
साईं को पकड़ने के लिए एक पुलिस वाला भी आया जिसे साईं ने मार कर भगाने की बात कही थी,
एक फोटो है जब पुलिस वाला साईं को पकड़ने गया था और साईं बुरका पहन कर भागा था.

मेरी साई बाबा से कोई निजी दुश्मनी नही है,
परतुं हिन्दू धर्म को नाश हो रहा है,
इसलिए मै कुछ सवाल करना चाहती हूँ.

हिन्दू धर्म एक सनातन धर्म है,
लेकिन आज कल लोग इस बात से परिचित नही है क्या?
जब भारत मे अंग्रेजी सरकार अत्याचार और सबको मौत के घाट उतार रहे थे
तब साई बाबा ने कौन से ब्रिटिश अंग्रेजो के साथ आंदोलन किया ?
जिदंगी भीख मांगने मे कट गई?
मस्जिद मे रह कर कुरान पढना जरूरी था.
बकरे हलाल करना क्या जरूरी था ?
सब पाखंड है,
लोगो को मुर्ख बना कर पैसा कमाने का जरिया है।

ऐसा कौन सा दुख है कि उसे भगवान दूर नही कर सकते है.
श्रीमद भगवत गीता मे लिखा है कि
श्मशान और समाधि की पूजा करने वाले मनुष्य राक्षस योनी को प्राप्त होते हैं.

साई जैसे पाखंडी की आज इतनी ज्यादा सेल्स मार्केटिंग हो गयी है कि हमारे हिन्दू भाई बहिन आज अपने मूल धर्म से अलग होकर साई मुल्ले कि पूजा करने लगे है।

आज लगभग हर मंदिर में इस जिहादी ने कब्जा कर लिया है।
हनुमान जी ने हमेशा सीता राम कहा और
आज के मूर्ख हिन्दू हुनमान जी का अपमान करते हुए सीता राम कि जगह साई राम कहने लग गए ।

बड़ी शर्म कि बात है।
आज जिसकी मार्केटिंग ज्यादा उसी कि पूजा हो रही है। इसी लिए कृष्ण भगवान ने कहा था कि कलयुग में इंसान पथ और धर्म दोनों से भ्रष्ट हो जाएगा।

100 मे से 99 को नहीं पता साई कौन था,
इसने कौन सी किताब लिखी,
क्या उपदेश दिये पर
फिर भी भगवान बनाकर बैठे है !

साई के माँ बाप का सही सही पता नहीं ,
पर मूर्खो को ये पता है कि ये किस किस के अवतार है !

अंग्रेज़ो के जमाने मे मूर्खो के साई भगवान पैदा होकर मर गए पर किसी भी एक महामारी भुखमरी मे मदद नहीं की।
इनके रहते भारत गुलाम बना रहा पर
इन महाशय को कोई खबर नहीं रही।

शिर्डी से कभी बाहर नहीं निकले पर पूरे देश मे अचानक इनकी मौत के 90-100 साल बाद इनके मंदिर कुकुरमुत्ते की तरह बनने लगे।

चालीसा हनुमान जी की हुआ करती थी,
आज साई की हो गयी !
राम सीता के हुआ करते थे,
आज साई ही राम हो गए !
श्याम राधा के थे,
आज वो भी साई बना दिये गए !

बृहस्पति दिन विष्णु भगवान का होता था,
आज साई का मनाया जाने लगा!
भगवान की मूर्ति मंदिरो में छोटी हो गयी और साई विशाल मूर्ति मे हो गए !

प्राचीन हनुमान मंदिर दान को तरस गए और
साई मंदिरो के तहखाने तक भर गए!

मूर्ख हिन्दुओ अगर दुनिया मे सच मे कलयुग के बाद भगवान ने इंसाफ किया तो याद रखना मुह छुपाने के लिए और अपनी मूर्ख बुद्धि पर तरस खाने के लिए कही शरण भी न मिलेगी !

इसलिए भगवानो की तुलना मुल्ले साई से करके पाप मत करो।
इस लेख को पढ़ने के बाद भी न समझ मे आए तो अपना खतना करवा के मुसलमान बन जाओ !
क्या करोगे शेयर करके...⁉--------------

>>>साईं की मृत्यु के बाद दशकों तक सांई का कहीं कोई नाम लेवा नहीं था।
हो सकता है कि मात्र थोड़ी दूर तक के लोग जानते होंगे। पर अब कुछ तीस या चालीस वर्षों में उनकी उपस्थिति आम हो गई है और लोगों की आस्था का पारा अचानक से उबाल करने लगा है।

अच्छा मैं एक बात पूछती हूँ...
आप किसी भी साठ या सत्तर साल के व्यक्ति से पूछ लें कि वे साईं बाबा का नाम पहली बार अपने जीवन में कब सुना था?..
निश्चित ही वो कहेगा कि वो पहले नहीं सुना था...
कोई नब्बे या कोई अस्सीे के दशक में हीं सुना हुआ कहेगा।
इत्ती जल्दी ये इत्ता बड़ा भगवान कैसे बन गया ?

एक बात और...
हिन्दुओं के भगवान बनाने के पहले इनके चेले चपाटों ने इन्हें कुछ इस प्रकार से पेश किया था जैसे कि सभी धर्मों के यही एक मात्र नियंता हों।
हिन्दू , मुस्लिम, सिक्ख ईसाई...सभी के इष्ट यही थे।और इन्हें पेश किया कौन?..

जरा ये भी समझिए...
सत्तर - अस्सी के दशक में जो फिल्में बनती थी या गाने होते थे उसमें या तो हिन्दूओं के भगवान या फिर मुस्लिमों के अल्लाह का जिक्र होता था।

भगवान वाला सीन मुस्लिमों को स्वीकार नहीं थाऔर अल्लाह वाला हिन्दूओं को।
पर नायक को अलौकिक शक्ति देने के लिए इनका सीन डालना भी जरूरी ही था।..

किया क्या जाय?... तो....यह किसी निर्देशक की सोच रही होगी कि.. किसी ऐसे व्यक्ति को अलौकिक शक्ति से लैस करके दिखाया जाय ताकि किसी भी धर्म के लोगो का विरोध ना झेलनी पड़े और वे अपनी फिल्म को सफल बना लें।
ऐसा ही कुछ उनके दिमाग में आया होगा... और अचानक से उनके दिमाग की बत्ती जल गई होगी जब किसी ने साईं का नाम सुझाया होगा।

इस नये भगवान का सफल परीक्षण उस ऐतिहासिक दिन को किया गया जो साईं भक्तों के लिए एक पवित्र दिन से कम नहीं है।
7 जनवरी 1977 को रूपहले पर्दे पर एक फिल्म आई ""अमर अकबर एंथोनी""इस फिल्म में एक गाना बजा "शिर्डी वाले साई बाबा आया हूँ तेरे दर पे सवाली"??

बस क्या था.. संयोगवश फिल्म भी हिट... बाबा भी हिट....।

साई बाबा के चेले चपाटों के पैर अब तो जमीन पर पड़ ही नहीं रहे थे
साई की स्वीकार्यता को देखकर।

उससे पहले तक ना कहीं तस्वीर, ना कहीं मूर्ति और ना ही कोई चर्चा और उसके बाद तो हर जगह साई ही साई। फोटोशॉप करके आग से भी निकाले गए साई, जो कई भक्तों के घरों की शोभा बढ़ा रहे हैं।

धीरे धीरे, चुपके चुपके हिन्दुओं के मंदिरों में मुर्तियां बैठने लगी... इनके अपने मंदिर भी बनने लगे।

एक और मजे की बात कि किसी अन्य धर्मों के लोगों ने इन्हें स्वीकार किया ही नहीं सिवाय हिन्दुओं के।

अब देखिए, हमारा सनातनी हिन्दू समाज अब धीरे धीरे उस मोड़ पर जा रहा है जहाँ से दो धड़े साफ साफ दिखेंगे... एक विधर्मी साईं को मानने वाले हिन्दू और दूसरे अपने सनातनी मार्ग पर चलने वाले हिन्दू।

इनमें अब दूरियां बढ़ती जाएंगी और आने वाले समय में इस समाज में दो फाड़ होगा।

एक "सनातनी हिन्दू" और दूसरा "साईं पूजक हिन्दू"। सनातनी वाले साईं को मान्यता नहीं देंगे और साईं वाले साईं भक्ति नहीं छोड़ेंगे।

बात और आगे जाएगी... ये दोनो एक दूसरे के मंदिरों में जाना बंद कर देंगे.... यदि नहीं तो फिर सनातनी उन्हें अपने मंदिरों में आने से रोकेंगे।
कोई हार मानने को तैयार नहीं होगा।
और यही वो समय होगा जब हिन्दू समाज दो खेमे में बँट जायेगा।

बिल्कुल उसी तरह जैसे...
मुस्लिम बंटकर शिया - सुन्नी हुए....
ईसाई बंटकर कैथोलिक प्रोटेस्टेन्ट हुए.....
जैन बंटे तो श्वेतांबर - दिगम्बर हुए.....
बौद्ध बंटे तो हीनयान - महायान हुए।

हो सकता है ये सुनकर आपको अचम्भा लगे पर हिन्दू धर्म में पड़ रही यही दरार ही विभाजन का कारण बनेगी।

"मेरा यह मानना है कि साईं बाबा को एक षडयंत्र की तरह हमारे बीच रोपा गया है और मैं प्राण प्रण से इसका विरोध करती रहूँगी।"

शिरडी में सांई की कब्र यानि मजार पर मन्दिर बना दिया।
"ना मैं पूर्वाग्रही हूँ.. ना ही दुराग्रही हूँ....और ना ही किसी से चिढ़ है। एक सनातनी हिन्दू होने के नाते अपने धर्म को दूषित और विभाजित होते नहीं देख सकती हूँ।""
इसके गुनाहगार वे लोग भी होंगे जो सिर्फ़ तमाशा देख रहे हैं और आवाज नहीं उठा रहे हैं।
सनातन धर्म की जय.......!
जय श्री राम
जय श्री कृष्ण