सन्जीव मिश्र's Album: Wall Photos

Photo 61 of 1,617 in Wall Photos

गद्दारी का वो इतिहास जिसे हर हिन्दु को याद रखना चाहिए!

तिरंगा क्या चीज़ है... इसी देश में मुसलमानों ने अपने मुँह में घास भरकर वफादारी की कसम खाई थी ज़िंदा रहने की भीख माँगी थी कि हम गाय हैं हमें बख्श दो और फिर ऐसा धोखा दिया कि लाखों का कत्ल हुआ ।
आज मुसलमानों के हाथ में तिरंगा देखकर पानीपत के तीसरे युद्ध की महत्वपूर्ण घटना याद आ गई । अब्दाली ने कुंजपुरा के किले में भारी रसद और गोला बारूद जमा कर रखा था । उसके हिंदुस्तानी दोस्त रूहेले मुसलमान उस किले की हिफ़ाज़त कर रहे थे । मराठों ने किले पर हमला बोला और कुछ घंटों के अंदर रूहेले मुसलमानों ने हथियार डाल दिए । उस वक्त 4 हजार मुसलमान अपने मुँह में घास भरकर किले से गाय बनकर बाहर आए । रूहेले और अफगान मुसलमानों ने मराठों से कहा कि हम गाय हैं आप लोग हिंदू हैं गाय को नहीं मारते हैं हमें भी बख्श दो । मराठे धोखेबाज़ी में फँस गए, उनको दया भी आ गई । शरणागत की रक्षा करने का धर्मसंकट भी आ गया और उन्होंने सारे अफ़ग़ानी और रूहेले मुसलमानों की जान बख्श दी ।
14 जनवरी 1761 को जब पानीपत का तीसरा यु्द्ध शुरू हुआ तो मराठों ने इन्हीं 4 हजार मुसलमान सैनिकों को विट्ठल शिवदेव के मोर्चे के पीछे खड़ा कर दिया । मराठों ने इनके सिरों पर भगवा पट्टियाँ बँधवाई थीं ताकी ये आसानी से पहचाने जा सकें ताकी ऐसा ना हो कि मराठे गलती से इनका ही कत्ल कर दें ।
लेकिन जैसे ही पेशवा के बेटे विश्वास राव को छोटी तोप जंबूक का गोला लगा और उनकी मृत्यु हुई... इन मुसलमानों ने अपने सिर से भगवा पट्टियाँ उतार दी और मराठों के कैंप के अंदर घुसकर लूटपाट शुरू कर दी । इन लोगों ने ज़ोर ज़ोर से ये शोर मचाना शुरू कर दिया कि पेशवा के बेटे की मौत हो गई है । मराठों के मोर्चों में हड़कंप मंच गया । किसी को लगा कि अब्दाली ने पीछे से हमला कर दिया है और किसी को लगा कि मराठा मोर्चा टूट गया और अब्दाली के सैनिक अंदर घुस आए हैं । मराठा सेना की हार की एक वजह ये भी बनी । दया की क़ीमत इतिहास में हिंदुओं ने ऐसे ही चुकाई है । इसके बाद जो कत्लेआम हुआ... इतिहास गवा है ।
मुनव्वर राणा के एक शेर के बिना बात खत्म नहीं हो सकती है । मुनव्वर साहब सूफ़ियों के प्रिय शायर हैं तो सूफियों का मनोरंजन करना भी हमारा फर्ज है... तो ये मुनव्वर का शेर है...
ये दीवाना ज़माने भर की दौलत छोड़ सकता है
मदीने की गली दे दो तो जन्नत छोड़ सकता है
और ऐसे शायर मदीने और मोहम्मद के लिए तिरंगा भी छोड़ सकते हैं ।
निष्कर्ष ये है कि शाहीनबाग के नाट्य मंचन से कन्फ्यूज होने की जरूरत नहीं है ।
मुसलमानों की आस्था सिर्फ मदीने और मोहम्मद के प्रति होती है बाकी सब अल तकैया होता है ।
साभार -

==============

Click my page विवेकानन्द विनय