सन्जीव मिश्र's Album: Wall Photos

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सत्ता के गलियारे में सरगर्मी बढ़ चुकी थी। देश के सबसे बड़े सूबे में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका था। यूपी के दो लड़कों ने गठबन्धन कर लिया था। सत्ता से दूर हाथी भी हुंकार भरने लगा। सबके पास चेहरे थे लेकिन भाजपा फिर से मोदी के चेहरे पर निर्भर हो गई। लोग कहने लगे कि भाजपा जीत भी गई तो मोदी तो सीएम बनेंगे नहीं। कोई बीजेपी को पूर्ण बहुमत भी नहीं दे रहा था।

फिर चुनाव जीतने के जादूगर ने एक चाल चल दी,
टीवी पर न्यूज थी, "दिल्ली ने गोरखपुर लंबी बात की"

पहला चरण खतम हो रहा था और हलचल मचनी शुरू हुई। क्या सच में ? नहीं नहीं.. इतना एक्सट्रीम चेहरा! मोदी रिस्क नहीं लेगा।

फिर अचानक सुमित अवस्थी से सुधीर चौधरी सबको एक साधु का इंटरव्यू चाहिए था। मंदिर के प्रांगण में रोज किसी न किसी चैनल की ब्रॉडकास्ट वैन खड़ी हो जा रही थी।

जनता ने भांप लिया कि दिल्ली की पहली चॉइस कौन है।
जनता ने तुरन्त सपना भी देख लिया कि यदि एक सन्यासी को सत्ता मिलती है तो क्या क्या हो सकता है।
दूसरे चरण से स्टार प्रचारक की लिस्ट में पहले नंबर पर एक साधु बैठ गया, हर प्रत्याशी उनकी रैली मांगने लगा। और भगवाधारी का हेलीकॉप्टर इस विधानसभा से उस विधानसभा उड़ने लगा।

चुनाव खतम हुआ और फिर आया 11 मार्च 2017.
12 बजते बजते विरोधियों के 12 बज चुके थे। लखनऊ विधानभवन पर कमल खिलने की आहट आ चुकी थी।
लेकिन अंदर फिर उथल पुथल मच गई कि सीएम कौन? प्रयाग से लखनऊ, मेरठ से कानपुर कई लोग दावेदारी करने लगे।
फिर नागपुर और दिल्ली में बातचीत हुई और फोन घुमाया गया, "महाराज दिल्ली आ जाओ"। नागपुर का प्रश्न था, कि जिम्मेदारी संभाल लेंगे?
दो टूक जवाब था, "रामकाज करने का अवसर मिला तो जरूर करूंगा, बाकी चीजें दिल्ली संभाले या मै.. लेकिन रामकाज तो होगा ना!".. और डील डन।

17 मार्च 2017 स्मृति उपवन लखनऊ से हम सुन रहे थे, मंच पर खड़ा एक भगवाधारी बोल रहा था,
"मै आदित्यनाथ योगी, ईश्वर की शपथ लेता हूं............"

एक वो दिन था और एक आने वाला दिन है 5 अगस्त 2020 का जब रामलला के भव्य मंदिर का भूमिपूजन होगा।
हालांकि टांग खींचने और गिराने की बहुत कोशिश हुई, लेकिन वो हिला नहीं... न जाने कितने अन्तर्द्वन्द और अंतरघात सहकर भी वो डटा रहा क्योंकि उसका उद्देश्य स्पष्ट था।
मै मानता हूं कि आज भी यूपी की शासन प्रशासन व्यवस्था में बहुत सी खामियां हैं, उनका विरोध और उस पर सरकार से सवाल होते रहेंगे, लेकिन रामकाज के प्रति समर्पण का सम्मान तो होगा ही। वरना सेक्युलरिजम का चूरन चाटकर पागल हो चुके देश में आज किसी राजनेता की हिम्मत नहीं कि वो खुले मन से राम का नाम ले, लेकिन इनका हर काम आज भी राम के नाम से ही शुरू होता है, सांप्रदायिक कहने वाले कहते रहें।
राजनीतिक विरोधी इनके शासन और इनकी कार्यशैली पर लाख सवाल उठाए लेकिन राम के प्रति योगी के समर्पण पर तो दुश्मन भी प्रश्न चिन्ह नहीं खड़ा कर सकता।

पक्ष हो या विपक्ष सब जानते हैं कि आज अगर,
दिल्ली की गद्दी पर मोदी न होते,
लखनऊ के सिंहासन पर योगी न होते,
तो 5 अगस्त 2020 की खुशी हमारे जीवन न आई होती।

मंदिर निर्माण के यज्ञ में अपनी आहुति देने वाली सभी पुण्यात्माओं को शत शत नमन।

बोलिये जयकारा वीर बजरंगी जय जय श्री राम।