सन्जीव मिश्र's Album: Wall Photos

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राजनीति और बॉलीवुड का जेहाद में साथ ....!

#बॉलीवुड_के_चरणों_में_लोटती_मीडिया_और_चाकरी_करती_सरकारों_की_कहानी_दशकों_पुरानी_है.

यह 60 के दशक के प्रारम्भिक वर्ष की बात है. कलकत्ता में खुफिया एजेंसियों और कलकत्ता पुलिस ने पाकिस्तान के जासूस को गिरफ्तार किया था उसके पास बरामद हुई डायरी में एक तत्कालीन फिल्मी सितारे का नाम दर्ज था. उस जासूस से पूछताछ से मिली जानकारी के बाद कलकत्ता पुलिस हवाई जहाज से बम्बई पहुंच गई थी और सीधे उस सितारे के घर पहुंची थी. लेकिन तब तक इस पुलिस कार्रवाई की खबर दिल्ली की शीर्ष सत्ता के गलियारे तक पहुंच चुकी थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने हस्तक्षेप किया था. परिणामस्वरुप कलकत्ता पुलिस उस फिल्मी सितारे के घर से यह कहते हुए खाली हाथ वापस लौटी थी कि सम्भवतः वह जासूस उस फिल्मी सितारे का प्रशंसक मात्र था और फिल्मी सितारे का उससे कोई लेनादेना नहीं. आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि उस जासूस से गहन पूछताछ के बाद आनन फानन में फ्लाईट से पहुंची कलकत्ता पुलिस को यह दिव्य ज्ञान उस जासूस से की गई गहन पूछताछ के दौरान नहीं हुआ. लेकिन बम्बई में उस सितारे के घर पहुंच कर उसे वह दिव्य ज्ञान प्राप्त हो गया था. ज्यादा शोर मचा तो पूरे प्रकरण की जांच के लिए एक सरकारी जांच कमेटी बनी. उस कमेटी ने तथाकथित जांच के बाद वही बात उगली थी, जो बात कलकत्ता पुलिस ने उगली थी, कि वह जासूस उस फिल्मी सितारे का प्रशंसक मात्र था. इससे ज्यादा कुछ नहीं।

दिलीप कुमार और नेहरू एक ही थाली के चट्टे बट्टे थे , दिलीप कुमार ने समय समय पर इसकी कीमत भी चुकाई-

1962 के आम चुनाव में पहली बार किसी सुपरस्टार ने चुनाव का प्रचार किया था. तब उत्तरी मुंबई सीट पर कांग्रेस नेता कृष्ण मेनन का सामना उनके कट्‌टर विरोधी आचार्य जेबी कृपलानी से था ।

मेनन रक्षामंत्री थे और भारत चीन से युद्ध हार गया था. ऐसे में विपक्ष मेनन को हटाने की मांग कर रहा था लेकिन नेहरू तैयार नहीं थे.

ऐसे में जेबी कृपलानी सीतामढ़ी (बिहार) की अपनी सेफ सीट छोड़ मुंबई में मेनन के खिलाफ उतर आए. इसी दौरान मेेनन पर एक अखबार ने कविता छापी- ‘चीनी हमला होते हैं, मेनन साहब सोते हैं, सोना है तो सोने दो, कृपलानीजी को आने दो.’

मेनन की चुनौती को नेहरू ने खुद को चुनौती माना. दिलीप कुमार की आत्मकथा ‘वजूद और परछाई’ के अनुसार नेहरू ने उन्हें मेनन के प्रचार में आने को कहा. प्रचार ऐसा हुआ कि कृपलानी चुनाव हार गए.

लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती. 1965 के भारत पाक युद्ध के दौरान खुफिया एजेंसियों ने बम्बई में पाकिस्तान से सम्पर्क वाले एक रेडियो ट्रांसमीटर के सिग्नल पकड़े थे. ट्रांसमीटर बम्बई में ही सक्रिय था. खुफिया एजेंसियों की टीम सिग्नल का पीछा करते हुए जब उस स्थान पर पहुंची थी जहां वह रेडियो ट्रांसमीटर सक्रिय था, तो बुरी तरह चौंक गयी थी. जिस मकान में वह ट्रांसमीटर बरामद हुआ था, वह घर उस समय के बहुत नामी गिरामी उसी फिल्मी सितारे का ही था जिससे पूछताछ करने के लिए उसके घर कुछ वर्ष पूर्व कलकता पुलिस पहुंची थी.
इसबार भी सितारे पर दिल्ली मेहरबान हुई. रेडियो ट्रांसमीटर के विषय में उस फिल्मी सितारे ने बहुत मासूम सफाई दी कि उसे पाकिस्तानी गाने सुनने का शौक है और क्योंकि भारत में समान्य रेडियो पर पाकिस्तान रेडियो प्रतिबंधित है इसलिए उसने यह रेडियो ट्रांसमीटर अपने घर में रखा है ताकि पाकिस्तानी गाने सुनने का अपना शौक पूरा कर सके. आप यह जानकर आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि इस बार भी उस फिल्मी सितारे की ही बात को शाश्वत सत्य मान लिया गया. एक जांच कमेटी बनी और उसने भी फिल्मी सितारे के उस वक्तव्य को ही सत्य घोषित कर दिया. यह सवाल कभी पूछा ही नहीं गया, देश को कभी यह बताया ही नहीं गया कि सामान्य नागरिक के लिए पूर्णतया प्रतिबंधित और जिसे रखने पर कठोर दंड का प्रावधान था, वह रेडियो ट्रांसमीटर उस फिल्मी सितारे ने कहां से, कैसे और किस से प्राप्त किया था.?
जबकि सत्य यह है कि देश की सुरक्षा और गुप्तचर जांच एजेंसियों में जिम्मेदार पद पर कार्यरत किसी भी व्यक्ति के अतिरिक्त यदि किसी समान्य नागरिक के पास पाकिस्तान तक पहुंच वाला रेडियो ट्रांसमीटर यदि आज भी बरामद हो जाए तो पुलिस की लाठियों की बरसात उसकी हड्डियों का सत्कार पूरी लगन से करेंगी.
क्या आप जानते हैं कि कौन था वह फिल्मी सितारा, क्या नाम था उस फिल्मी सितारे का...?
तो अब जानिए कि उस फिल्मी सितारे का नाम था... दिलीप कुमार............ पर असल में वह "यूसुफ खान" था।

हिंदुओं को धोखा देने के लिए दुनिया को अपना नाम
दिलीप कुमार बताता था।

वही दिलीप कुमार मतलब यूसुफ खान जिसने उसे मिले सर्वोच्च पाकिस्तानी एवार्ड को वापस करने से उस समय साफ़ मना कर दिया था जब करगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना द्वारा की गई भारतीय सेना के सैकड़ों सैनिकों की हत्याओं के विरोध में उस फिल्मी सितारे से मांग की गई थी कि... वह पाकिस्तानी एवार्ड को भारतीय विरोध के प्रतीक के रूप में वापस कर दे.
लेकिन इनकी चर्चा कहीं किसी मीडिया में आजतक सुनी आपने.? जो इक्का दुक्का समाचार आप को काफी प्रयास के बाद मिलेंगे वो इसलिए मिलेंगे क्योंकि उनमें इस फिल्मी सितारे की वकालत की गयी है. प्रश्नों के कठघरे में नहीं खड़ा किया गया है. इसीलिए मैंने प्रारम्भ में ही लिखा है कि... बॉलीवुड के चरणों में लोटती मीडिया और चाकरी करती सरकारों की कहानी दशकों पुरानी है।

सौभाग्य से अबतक भारत इस्लामिक बनने और हिन्दु पारसियों की तरह मिटने से बच गया है अन्यथा 70 साल से पूरी रणनीति योजनाबद्ध चल रही थी....!
अब बैठना नहीं है , हमें भारत का पुनर्निर्माण में लगना होगा।
Satish Chandra Mishra जी की संसोधित पोस्ट।

By विवेकानन्द विनय