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#आर्यभट्ट_जन्मदिवस

हमारे जीवन में विज्ञान के साथ-साथ गणित का भी महत्व बहुत है। पुरातन काल में हमारे देश से यानी कि केरल और गुजरात के साथ पूर्ण विश्व के लोग व्यापार वाणिज्य से जुड़े हुए थे। तब हमारे यहां की गिनती १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ ० अरबस्तान में हिंदसा के नाम से पहचानी जाती थी। और अरबस्तान में इसका उपयोग व्यापार में किया जाता था । जो बाद में समग्र विश्व में फैल गया। भारत का वह समय गुप्त काल स्वर्ण युग के नाम से विख्यात है । इस युग में भारत में साहित्य, कला और विज्ञान के क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति हुई थी। विज्ञान के क्षेत्र में गणित रसायन और ज्योतिष में भी विशेष प्रगति हुई थी। इसी समय हमारे देश में आर्यभट्ट का विशेष रूप से उल्लेख है।

आर्यभट्ट बिहार राज्य की राजधानी पटना के निकट कुसुमपुर के रहने वाले थे। भट् का अर्थ होता है योद्धा । वे गुप्तकाल के प्रसिद्ध गणितज्ञ थे। उनके तीन ग्रंथों का पता चलता है दशगीतिका , आर्यभट्टिय तथा तंत्र ।

उनके प्रसिद्ध ग्रंथ "आर्यभट्टिय "में ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांतों का संक्षिप्त में वर्णन किया गया है । इस ग्रंथ को चार खंडों में विभाजित किया है । १ .गीत पादिका अथवा दशगीतिकापाद ,२. गणित पाद , ३. काल क्रियापाद और
४. गोल पाद ।

उन्होंने बड़ी संख्याओं को लिखने के लिए सरल शब्दों का प्रयोग किया था। आर्यभट्ट पहले आचार्य हुए कि जिन्होंने अपने ज्योतिष गणित में अंकगणित और रेखा गणित के प्रश्नों का समावेश किया। उन्होंने कठिन प्रश्नों को श्लोकों में समाविष्ट कर दिया है ।एक ही श्लोक में श्रेणी गणित के ५ नियम समा गये है। उनकी एक श्लोक में उल्लेख है कि परिधि तथा व्यास का सम्बंध दशमलव के चौथे स्थान तक शुद्ध आ सकता है। उन्होंने परिधि और व्यास के अनुपात यानी कि पाई का मान आसान मानते हुए इसे ३.१४१६ स्थापित किया । आगे त्रिभुज तथा चतुर्भुज बनाने की विधि लंबक प्रयोग करने की विधि किसी दीपक तथा उससे बने शंकु की छाया दीपक की ऊंचाई तथा दूरी जानने की विधि एक ही रेखा पर स्थिर छाया तथा दीपक की दूरी में संबंध ज्ञात किया जा सकता है।

श्लोकों में वर्ग का क्षेत्रफल, त्रिभुज का क्षेत्रफल, शंकु का घनफल, वृत्त का क्षेत्रफल, गोले का घनफल ,विषम चतुर्भुज के क्षेत्र के कोणों के संपात से दूरी और क्षेत्रफल तथा सब प्रकार के क्षेत्र की मध्यम लंबाई और चौड़ाई ज्ञात कर क्षेत्रफल ज्ञात करने के साधारण नियमों का उल्लेख मिलता है।

उस समय देश में व्याप्त अंधविश्वासों का आर्यभट्ट ने खंडन किया उन्होंने सर्वप्रथम लोगों को यह बताया कि पृथ्वी गोल है, जो अपनी धुरी पर चक्कर लगाती रहती है। उन्होंने पृथ्वी के आकार गति और परिधि का अनुमान लगाया था ।सूर्य और चंद्र ग्रहण के विषय में अनुसंधान किया था उन्होंने इस धारणा को गलत सिद्ध किया कि सूर्य और चंद्र के ग्रहण राहु और केतु के प्रकोप से होते हैं ।उन्होंने सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण का सही कारण बताया और कहा चंद्रमा और पृथ्वी की परछाईं पड़ने से ग्रहण पड़ता है ।चंद्रमा स्वयं नहीं चमकता बल्कि सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है । ज्योतिष के अतिरिक्त गणित शास्त्र में भी आर्यभट्ट ने नये सिद्धांत प्रतिपादित किए। भारत में सर्वप्रथम उन्होंने ही बीजगणित का ज्ञान विस्तार से प्रकट किया। शून्य सिद्धांत और दशमलव प्रणाली का कुशलता से प्रयोग किया।

भारत सरकार ने अपने पहले उपग्रह का नाम उनके नाम पर आर्यभट्ट रखकर उनके प्रति आभार प्रकट किया है।