Sushil Chaudhary's Album: Wall Photos

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व्यक्ति विशेष... #वाचस्पति_मिश्रजी

शुक्लयजुर्वेद ,महर्षि याज्ञवल्क्य ,भगवती सीता,महराज जनक आदि मनीषियों की उद्भव स्थली मिथिला जिसके पावन धरा पर वेदों, दर्शन शास्त्रों व धर्म-शास्त्रों की रचना से संस्कृत वाड्मय की श्रीवृद्धि की गई, उसका एक महत्वपूर्ण केन्द्र है मिथिलांचल के मधुबनी जिला अंतर्गत अंधराठाढ़ी ग्राम ।

दर्शन शास्त्र के नभोमण्डल पर उद्भासित सबसे चमकदार नक्षत्रों में से एक सर्वतंत्रस्वतंत्र षडदर्शन टीकाकार वाचस्पति मिश्रजी के जन्म व कर्मभूमि होने के कारण इस ग्राम स्थिति रेलवे स्टेशन का नाम वाचस्पति नगर है। मधुबनी जिलान्तर्गत अंधराठाढ़ी विद्या, विद्वानों और दर्शनशास्त्रज्ञों का धवल धाम रहा है। इस विशाल ग्राम में अनेक देदीप्यमान सारस्वत मनीषियों ने जन्म लेकर इस गुलशन के प्रसून की सुरभि को विश्व के साहित्यिक मंच पर सुरभित किया है, जो आज पर्यन्त निर्मल रूप में अवाध गति से महमहाती चली आ रही है।

उपलब्ध ऐतिहासिक स्त्रोतों के आधार पर हम निःसंदेह दावा कर सकते हैं कि दसवीं सदी के प्रारम्भ से लेकर इक्कीसवीं सदी (आज पर्यन्त) के मध्य मिथिला के इस पावन गुलशन में एक से बढ़कर एक विलक्षण सुरभि सुसज्ज प्रसूनों ने अपनी अपनी सुगंधों को चारों तरफ बिखेरा है। इनकी विभिन्न विधाओं (यथा दर्शन, न्याय, मीमांसा, व्याकरण, धर्म शास्त्र, तंत्र-मंत्र विद्या, आगम शाश्त्र, ज्योतिष षास्त्र, कर्म काण्ड, मैथिली पदावली, मैथिली गीत, मैथिली राग-रागिनी आदि) में अमर रचनाएँ इनके यशस कीर्ति हैं।

इनमें से कुछ मनीषियों के कीर्ति चाँदनी की स्निग्ध ज्योत्सना को आप सबके समक्ष प्रस्तुत करने का भगीरथी प्रयास कर रहा हूं। प्रारम्भ करते हैं अंधराठाढ़ी के विद्या वैदुष्य परम्परा के महानतम् हस्ताक्षर षडदर्शन टीकाकार वाचस्पति मिश्रजी से।

वाचस्पति मिश्र
ऽ वाचस्पति मिश्र 10वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में (920 से 976-77 के आसपास) हुए।

ऽ पं. मिश्र नृगनामक मिथिला के राजा के यहाँ पण्डित थे।

ऽ गोवर्द्धन मठ पुरी के जगतगुरू शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती द्वारा 13.03.1994 में ग्राम ठाढ़ी के वाचस्पति मिश्र के डीह पर आकर पं. मिश्र की स्मृति में श्रद्धा सुमन अर्पित करना तथा भारत सरकार के तत्कालीन रेल मंत्री मैथिल पुत्र श्री ललित नारायण. मिश्र द्वारा अंधराठाढ़ी ग्राम के रेलवे स्टेशन का नाम वाचस्पति नगर के रूप में नामकरण करने की मंजूरी दी, मिथिला के इसी भूभाग पर षड्दर्शन टीकाकार पं. वाचस्पति मिश्र अवतरित हुए थे।
ऽ अनश्रुति है कि वृहस्पति के पुत्र ‘‘कच’’ मनुष्य रूप धारण करके वाचस्पति से पढ़ने के लिए आया करते थे।

ऽ पं. वाचस्पति मिश्र द्वारा रचित आठ टीकाएँ है, जो इस प्रकार हैं :-

(1) न्याय दर्शन :- (क) न्याय वार्तिक तात्पर्य टीका (ख) न्याय सूत्री निबंध

(2) वेदान्त :- (क) मण्डन मिश्र के अद्वैत वेदान्त ‘‘ब्रह्मसिद्धि’’ पर टीका- ब्रह्म तत्व समीक्षा
(ख) जगत् गुरू शंकराचार्य के द्वारा रचित ब्रह्मसूत्र – शांकर भाष्यम् पर टीका- ‘‘भामती’’ (भामती – पं. मिश्र की अंतिम रचना थी जो सर्वाधिक मान्य व आदरणीय है।)

(3) मीमांसा दर्शन :- (क) न्याय कर्णिका
(ख) तत्व विन्दुः

(4) सांख्य दर्शन :- (क) सांख्य तत्व कौमुदी

(5) योग दर्शन :- (क) योग वैशारदी
वे अपनी अंतिम पुस्तक ‘‘भामती टीका’’ जो कि ब्रह्मसूत्र पर शांकर भाष्यम् (अर्थात् ब्रह्मसूत्र पर जगत्गुरू शंकराचार्य द्वारा व्याख्या जिसे भाष्य कहते हैं) है, उस पर टीका लिखकर अपनी पत्नी भामती मिश्रजी के नाम ‘‘भामती’’ के रूप में समर्पित कर दिए।

‘भामती टीका’ का महत्व :-
यदि पं. वाचस्पति मिश्र ब्रह्मसूत्र पर शंकराचार्य के भाष्यम (व्याख्या) पर भामती टीका नहीं लिखते तो शंकराचार्य का यह ग्रंथ समय के प्रवाह में विलुप्त हो जाता। और सच्चिदानन्द (सत्$चित्$आनन्द) का वह दिव्य स्वरूप एक रहस्य ही रह जाता। भामती ग्रंथ मिथिला, मैथिल के अद्वैत वेदान्त रूपी सनातन विचार रूपी दस्तावेज को अक्षुण्ण रखेगा, जिसकी अमिट छाप हजारों वर्षों से चलता आ रहा है।