ग्रहण का अर्थ खाना होता है ग्रहण के समय सूर्य और चन्द्र की सकारात्मक ऊर्जा को राहु केतु ग्रहण(खाया) करते है। चन्द्र और सूर्य दोनो ही सकारात्मक ऊर्जा के प्रतीक है और सृष्टि में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। राहु ग्रह एक नकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है क्योकि राहु एक दानव थे लेकिन अमृतपान की कारण ग्रहों में स्थान प्राप्त हो गया।
जब राहु ग्रह सूर्य या चन्द्र को ग्रहण करता है तब सकारात्मक ऊर्जा का ह्रास होता है और नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ जाता है। नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ने के कारण ही सभी सकारात्मक ऊर्जाओं सबंधित मन्दिर, यज्ञ आदि के विधि विधान बन्द कर दिए जाते है। इस समय केवल मानसिक जाप किया जाता है।
सृष्टि में ऊर्जा का संतुलन बनाने के लिए सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के लिये साधक, भक्त आदि मानसिक रूप से देव देवियों का मन्त्र जाप आदि करते है जिससे देवो को बल मिलता है। सभी भक्त साधक अधिक से अधिक मानसिक जाप आदि करे इसलिए ग्रहण काल में जाप का फल भी 100 गुना कर दिया गया। यही कारण है ग्रहण काल साधक के लिए सिद्धि शक्तियों की प्राप्ति के लिए विशेष समय होता है क्योकि एक बार मन्त्र जाप करने से ही उसका 100 गुना फल मिल जाता है। इससे सृष्टि का संतुलन भी बना रहता है और साधको के कार्य भी सिद्ध हो जाते है।
ग्रहण काल में नकारात्मक ऊर्जाएं बढ़ जाने के कारण घर से बाहर नही निकलना चाहिए, गर्भवती स्त्री और छोटे बच्चो को इसका विशेष रूप से पालन करना चाहिए ताकि नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव ना पड़े। बहुत से लोग इसको अंधविस्वास समझते है और अपने आपको सही सिद्ध करने के लिए ग्रहण काल में बाहर घूमते है उनसे हम कहना चाहेंगे की सभी कर्मो का फल तुरन्त नही मिलता वो जीवन में आने वाले समय में दिखाई देता है।