एक दिन पुरी के राजा भगवान जगन्नाथ जी के दर्शनार्थ मंदिर गए शाम हो चुकी थी मंदिर बन्द होने को था। मंदिर के सामने एक फूल वाली जो सभी कुछ बेच चुकी थी केवल एक सुगन्धित फूल बच रहा था राजा ने उससे वह फूल मांगा वह उसे दाम बता कर बेचने को थी उसी समय शहर के सबसे बड़े पैसे वाले और रईस व्यक्ति ने आकर उसे दुगने दाम देकर खरीदना चाहा उसपर नीलामी की प्रक्रिया होने लगी डैम बढ़ाते बढ़ाते राजा ने अपना पूरा राज्य दांव पर लगा दिया (जिसकी बराबरी व्यापारी नही कर सकता या हरा सकता ) राजा फूल भगवान जगन्नाथ को चढ़ाकर आम आदमी की तरह गांव के बड़े से हाल में सो जाता है।
उस रात भगवान जगन्नाथ राजा के सपने में आते हैं और कहते है उस फूल को मेरे सिर से उतार दो उसके वजन के कारण असहनीय पीड़ा प्रभु को हो रही थी , राजा ने उनसे पूछा " फूल कैसे भारी हो सकता है आपके लिए आपने उंगली के एक अंश से पूरी सृष्टि को उठा रखा है ?" प्रभु ने कहा " में पूरी सृष्टि का भार उठा सकता हूँ पर आपकी भक्ति का वजन पूरी राज्यसत्ता से भी भारी है जिस फूल को पाने के लिए आपने पूरा राज्य दे दिया।(यह चित्र उसी हाल का है)