#मिखाइल_गोर्बाचेव ने अपनी बायोग्राफी में लिखा है...
यूरोप में #अध्ययन के दौरान उन के साथ कुछ #जापानी भी पढते थे।
2nd वर्ल्ड वॉर के बाद जापान का पतन हो चुका था। आर्थिक प्रतिबंध थे।
जब क्लास चल रही होती थी तो ये दो जापानी छात्र बारी बारी से लिखते थे क्योंकि एक लिखता था तो दूसरा पेंसिल छील कर तैयार करता था क्योकि जापानी पेंसिल उस समय तक अच्छी गुणवत्ता की नही थी इसलिये पेंसिल बार बार टूट जाती थी।
दूसरे छात्रों ने कहा तुम #अच्छी_पेंसिल (इंग्लैंड वाली /अमेरिका) क्यो नही काम लेते इतनी महंगी भी नही।
#जापानी_छात्र_बोले_आंखोंमें_आंसू_थे। जब #हमारी_चीज_को_हमहीनही_खरीदेंगे तो दूसरा क्यो खरीदे। भले ही आज हम अच्छे नही फिर भी एक दिन ऐसी पेंसिल बनाएंगे की दुनिया उपयोग करेंगी।
स्वयं पर गर्व करना ही पड़ेगा तभी दुनिया तुम पर गर्व करेंगी ।
बिना उपयोग के कैसे अच्छे product बना लोगे।
उपयोग होता है वही research व Development की संभावनाए ज्यादा होती है ।
काश ऐसी पवित्र भावना प्रत्येक भारतवासियों के दिल में पल्लवित हो जाए #आत्मनिर्भर_भारत के धरातल का कार्य यही से शरू होता हे ✊✊
जय माँ भारती