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रसायन-धातु कर्म विज्ञान के प्रणेता - नागार्जुन। रसायन विज्ञान और सुपर धातुशोधन के जादूगर - नागार्जुन

सनातन कालीन विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में रसायन एवं धातु कर्म विज्ञान के सन्दर्भ में नागार्जुन का नाम अमर है ... ये महान गुणों के धनी रसायनविज्ञ इतने प्रतिभाशाली थे की इन्होने विभिन्न धातुओं को सोने (गोल्ड) में बदलने की विधि का वर्णन किया था। एवं इसका सफलतापूर्वक प्रदर्शन भी किया था।

इनकी जन्म तिथि एवं जन्मस्थान के विषय में अलग-अलग मत हैं। एक मत के अनुसार इनका जन्म द्वितीय शताब्दी में हुआ था। अन्य मतानुसार नागार्जुन का जन्म सन् 9 31 में गुजरात में सोमनाथ के निकट दैहक नामक किले में हुआ था,

रसायन शास्त्र एक प्रयोगात्मक विज्ञान है। खनिजों, पौधों, कृषिधान्य आदि के द्वारा विविध वस्तुओं का उत्पादन, विभिन्न धातुओं का निर्माण व परस्पर परिवर्तन तथा स्वास्थ्य की दृष्टि में आवश्यक औषधियों का निर्माण इसके द्वारा होता है।

नागार्जुन ने रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किया। रसायन शास्त्र पर इन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिनमें 'रस रत्नाकर' और 'रसेन्द्र मंगल' बहुत प्रसिद्ध हैं। रसायनशास्त्री व धातुकर्मी होने के साथ साथ इन्होंने अपनी चिकित्सकीय सूझबूझ से अनेक असाध्य रोगों की औषधियाँ तैयार की। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें 'कक्षपुटतंत्र', 'आरोग्य मंजरी', 'योग सार' और 'योगाष्टक' हैं।

रस रत्नाकर ग्रंथ में मुख्य रस माने गए निम्न रसायनों का उल्लेख किया गया है-

(1) महारस (2) उपरस (3) सामान्यरस (4) रत्न (5) धातु