श्रावण मास और नागपञ्चमी
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जनमेजय-परीक्षित कथा में सर्पनाश के लिए जनमेजय द्वारा किया जाने वाला यज्ञ आस्तिक मुनि के आग्रह पर आज ही के दिन समाप्त हुआ था ।
भारत के प्रायः प्रत्येक ग्राम के प्रवेश द्वारों पर नाग मन्दिर या चबूतरे पर नागदेव की प्रतिमाएँ स्थापित रहती है । जहाँ बोवनी के पूर्व पूजा की जाती है ।
हिन्दू धर्म में विज्ञान को धर्म से जोड़कर देखा गया है । प्रकृति की विभिन्न रूपों में पूजा इसके उदाहरण हैं । साँप भी भारतीय कृषि संस्कृति का एक अभिन्न अंग है । फसलों को क्षति पहुँचाने वाले चूहों, जहरीले कीड़ों आदि को साँप खाता है ।
वर्षा ऋतु में निरन्तर वर्षा से साँप के बिलों में पानी भर जाता है। जिसके कारण वे बिल से निकलकर सुरक्षित ऊँचे स्थान या पेड़ों की कोचरों पर आश्रय ले लेते हैं । आजकल पेड़ों की संख्या कम होने से वे कच्चे घरों आदि में घुस जाते हैं । इसी कारण सर्पदंश की घटनाएँ इस समय ज्यादा होती है । आज के दिन धरती भी नहीं खोदी जाती । हल आदि कार्य आज नहीं किये जाते । आधुनिक भाषा में कहें तो आज कृषि कार्य का लॉकडाउन है । पहले अमावस्या/पूर्णिमा को कृषि कार्य लगभग बन्द ही रहते थे । खैर, सर्प पूजा की जो भी कथाएँ समाज में प्रचलित हो, हमारे पूर्वजों ने श्रावणमास में सर्प पूजा का विधान रखा है । कथाओं के माध्यम से सर्पभय से मुक्ति के विभिन्न विधानों का उल्लेख भी आज होता है ।
साँपों की चार-पाँच प्रजातियाँ ही जहरीली होती है । जिसके काटने से अगर समय पर उपचार नहीं किया तो मृत्यु भी हो जाती है । इस भय के कारण अनजाने में कुछ लोग सभी सर्पों को देखते ही मार देते हैं ।
हम प्रकृति के उपासक हैं । प्रकृति में सभी को जीने का अधिकार है । नागपञ्चमी का यह पर्व हमें यही सन्देश देता है ।