नरहरि बाबा के साथ बालक तुलसी ने पूरी अयोध्या घूम ली लेकिन उसकी चंचल आँखें बता रही थीं कि उसका अयोध्या दर्शन अभी पूर्ण नहीं हुआ है । नरहरि बाबा उसके हृदय की बात जान गए थे शायद , उसे मिठाई खिलौने आदि वस्तुएं दिला कर उसके मन को भटकाने का प्रयास किया लेकिन चेहरे पर जो असंतुष्टि एक बार विराजमान हो चुकी थी वह टस से मस न हुई । जब अयोध्या से वापसी का समय आया तो संकोच त्याग कर पूछ ही लिया - " बाबा ! तुम तो कहते थे कि अयोध्या में राम जी का महल है , फिर मुझे दिखाए बिना ही वापस क्यों जा रहे हो ?"
नरहरि दास का हृदय बालक के इस प्रश्न पर फफक कर रो पड़ा , तुलसी यदि बड़ा होता तो सम्भवतः उनके चेहरे का भाव देख दुबारा प्रश्न न करता , किन्तु फिलहाल तो वह इस प्रश्न पर अड़ ही गया कि आखिर अयोध्या आने के बाद भी हम भगवान राम का महल देखे बिना वापस क्यों जा रहे हैं । फिर पूछा - " बताओ न बाबा ! राम जी का महल क्यों नहीं दिखा रहे ?"
- " महल तो था बेटा लेकिन पुराना और जर्जर हो जाने के कारण टूट गया ।"
-"टूट गया ? तो दुबारा नहीं बनेगा ?"
-"जरूर बनेगा ।"
-"और राम जी तब तक कहाँ रहेंगे ?"
-"मेरे और तुम जैसे भक्तों के हृदय में ।"
तुलसी के चेहरे पर एक संतोषजनक मुस्कुराहट आई , उसे गुरु के शब्दों पर विश्वास था "जरूर बनेगा" । उसने गुरु की उंगली पकड़ी और सोत्साह चल पड़ा ।
हम भाग्यशाली हैं जो नरहरि दास के कथन , तुलसी के विश्वास और असंख्य रामभक्तों की प्रार्थना को पाँच अगस्त के दिन साकार होते देखेंगे ।