प्रमोद गुप्ता's Album: Wall Photos

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करीबन दो दशक पहले मैं बास्केटबॉल के एक स्टेट लेवल ट्रेनिंग कैम्प में चयनित हुआ था।

कैम्प में सुबह शाम प्रैक्टिस होती थी।

एक दिन सुबह प्रैक्टिस के लिये पहुंचे तो बास्केटबॉल कोर्ट पर चटाईयां बिछी हुई थी। सारे खिलाड़ियों को चटाइयों पर बिठा दिया गया।

हेड कोच साहब ने खिलाड़ियों को संबोधित करते हुये कहा के आज बास्केटबॉल प्रैक्टिस नहीं होगी।

आज योग सिखाया जायेगा।

इतने में वहां एक योगाचार्य पहुंचे। कोच साहब ने उनका परिचय करवाया। योगाचार्य ने योग शुरू करवाने से पहले सभी खिलाड़ियों को बताया के योगासन का हमारे खेल की परफॉर्मेंस पर क्या असर होगा।

उन्होंने कहा के योग करने से हमारी कन्सन्ट्रेशन यानि एकाग्रता बढ़ेगी।

हमारी शारीरिक ताकत बढ़ेगी।

स्टेमिना बेहतर होगा .....आदि इत्यादि।

हममें से अधिकतर खिलाड़ियों ने कभी योग नहीं किया था।

योगाचार्य ने ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ करवाई। सांस लेने और छोड़ने को कहा। फिर सूर्य नमस्कार और अन्य आसन करवाये।

योगा सेशन खत्म हुआ और योगाचार्य चले गये।

उनके जाते ही सारे खिलाड़ी ज़ोर से हंसने लगे।
योगाचार्य का खूब मज़ाक बनाया गया।
कहा गया के सांस अंदर बाहर खींचने से या शरीर को आड़ा टेढ़ा करने से शरीर कैसे सुगठित हो सकता है।

कुल मिला कर योगाचार्य हमारे लिये एक उपहास का विषय बन गये।

वह अगले दिन फिर आये तो कई खिलाड़ी उनका उपहास करते दिखे। वह प्रतिक्रिया देने की बजाय शांत भाव से योग सिखाते रहे।

कुछ दिन योग करने के पश्चात हमें महसूस होने लगा के एक खिलाड़ी के लिये योग कितना लाभदायक सिद्ध हो सकता है।

शारीरिक क्षमता बढ़ाने से लेकर मानसिक एकाग्रता बढ़ने लगी थी। जिसे क्रिया को हम श्वास अंदर बाहर खींचने तक सीमित समझ रहे थे उसके शारीरिक और मानसिक प्रभाव अद्वितीय थे।

योग करते थे तो ऐसा लगता था के चित्त एकाग्र हो गया है।

कुछ ही दिनों में योगाचार्य के प्रति खिलाड़ियों का नज़रिया पूरी तरह से बदल गया। उपहास की जगह अब सम्मान होने लगा।

देर से ही सही .......परंतु हम सब समझ पाये के हज़ारों वर्ष पुरानी विद्या किसी चमत्कार से कम नहीं है।

आज राष्ट्र भर में योग सिखाने वाले ट्रेनर्स की भारी कमी है।
धनाढ्य परिवार तो घर आकर योग सिखाने वाले परिवारों को मुँह मांगी फीस दे रहे हैं।

सारा विश्व आज योग सीखने को आतुर है। अंतरराष्ट्रीय मनोवैज्ञानिक चित्त की शांति के लिये योग की अनिवार्यता पर ज़ोर दे रहे हैं।

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आयुर्वेद के दम को भी दुनिया मानेगी। वह समय आयेगा जब इस प्राचीन विद्या को वैश्विक स्तर पर पहचान मिलेगी। आज की तारीख में आयुर्वेद के नुस्खों का मज़ाक बिल्कुल उसी तरह से बनाया जा रहा है जैसे सारे खिलाड़ी योगाचार्य का मज़ाक बनाते थे।

आज आयुर्वेद अगर विश्व कल्याण हेतु कोई दवा विकसित करता है तो उपहास का विषय बन जाता है।

परंतु वह दिन भी आयेगा जब योग की तरह आयुर्वेद के प्रति भी विश्व भर में स्वीकारिता बढ़ेगी।
वह दिन भी आयेगा जब भारतभूमि में जन्मी यह विद्या वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त करेगी।