चीन ने कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए भारतीयों की एंट्री पर रोक लगा दी ।
लगा भी सकते है, भाई आखिर कैलाश मानसरोवर उनके इलाके में जो आता है पर क्यों आता है और कब से आता है ।
1962 से पहले कैलाश मानसरोवर भारत का ही हिस्सा था, जब तक चीन ने भारत पर हमला कर के उसे हथिया नही लिया ।
इस के लिए हम सभी नेहरु का दोषी ठहराते है, और वो थे भी, क्यों की प्रधान मंत्री तो वो ही थे तब ।
पर क्या पता है चाइना के पास इतनी हिम्मत आई कहां से की वो भारत पर हमला कर सके ।
असल में उस वक़्त भारत के एक महामूर्ख रक्षा मंत्री थे V K मेनन ।
जी हाँ मूर्ख ही नही महामूर्ख , ये थे तो रक्षा मंत्री पर इन्हें, देश की रक्षा और सेना से कोई मतलब नहीं था ।
ये भारत में कम और विदेशो में ज्यादा रहते थे, इनकी काबिलियत बस यही थी की ये नेहरु के दोस्त थे और इस कारण ये रक्षा मंत्री बने वर्ना इनकी बातें सुन कर आप इन्हें अपने घर का नौकर भी न रखो ।
ये जनाब लोकसभा में प्रस्ताव रखते थे की, अब भारत का कोई भी मुल्क दुश्मन नही है, तो हमें अपनी फौज हटा देनी चाहिए ।
जी बिलकुल, इनको महामूर्ख ऐसे ही नहीं कहा मैंने, इनका कहना था चीन हमारा दोस्त है और पाकिस्तान से हमारे दुश्मनी 1948 में ही खत्म हो गई , तो हम पर हमला ही कौन करेगा ।
इन महानुभाव ने न सिर्फ सेना में कटौती की बल्कि जो शस्त्र बनाने वाले कारखाने थे उन्हें भी बंद करवा दिया था, जिस से चीन समझ गया था की पड़ोस में मूर्खों की सरकार है, और उसने हमला कर दिया ।
इस हमले में भारत की न सिर्फ 72000 वर्ग मील ज़मीन गई बल्कि, लाखो लोगो की जान भी गई ।
हमले के बाद भी ये इतने सतर्कता का ये आलम था कि हफ्ते भर तक तो इन्होने चीन की सेना का जवाब देने के लिए अपनी सेना ही नही भेजी ।
और नेहरु ने जब अमेरिका के कहने पर चीन से संधी की तो वो 72000 वर्ग ज़मीन उन्हें दान में देकर की हार कर संधि की ।
उसी हारी हुई ज़मीन का एक हिस्सा था कैलाश मानसरोवर, जो तीर्थ तो हमारा है पर उस पर कब्ज़ा है चाइना का ।
और जब युद्ध हारने पर विपक्ष के महावीर त्यागीजी ने नेहरु से पुछा की ये ज़मीन वापस कब ली जाएगी, तो नेहरु का जवाब था की वो बंज़र ज़मीन थी, उस पर एक घास का तिनका भी नही होता था , क्या करेंगे उस ज़मीन का ?
इतने महान थे हमारे चाचा नेहरु और उनके सिपहसालार......