प्रमोद गुप्ता's Album: Wall Photos

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सिन्धुताई सपकाल को वो राष्ट्रीय सम्मान मिलना चाहिए जो एक विदेशी चर्च पोषित महिला को धर्म परिवर्तन के फलस्वरुप दिया गया है कांग्रेसीयों के राज में क्योंकि हिंदुओं के अनाथ बच्चों का व्यापार कर उस ने बहुत सम्पत्ति अर्जित की।मैं सरकार से माँग करती हूँ कि कोलकाता का Missionary of charity का अध्यक्ष इनको बनाया जाए।यदि Missionary of charity केवल अनाथों की देखभाल के लिए है तो इस देश की कोई भी समाज सेविका मातृशक्ति उसे संभालने को सक्षम क्यों नहीं है।मुझे लगता है हमें ऐसी नारियों के नाम पर बाल दिवस मानना चाहिए जो गौरव उत्पन्न करें भारतीयों के मन में।आपके विचार आमंत्रित हैं

सिन्धुताई सपकाल अनाथ बच्चों के लिए समाजकार्य करनेवाली मराठी समाज कार्यकर्ता है। उन्होने अपने जीवन मे अनेक समस्याओं के बावजूद अनाथ बच्चों को सम्भालने का कार्य किया है।

जन्म: 14 नवंबर 1948,वर्धा,महाराष्ट्र
आवास: हडपासर ,पुणे
अन्य नाम: अनाथों की माँ
प्रसिद्धि कारण: अनाथ बच्चों का पालन पोषण
धार्मिक मान्यता: हिन्दू
जीवनसाथी: ‌श्रीहरि सपकाल
बच्चे: ‌One Biological Girl and 3 Male Child
1042 Adopted
जन्म और बचपन --
सिन्धुताई का जन्म १४ नवम्बर १९४८, महाराष्ट्र के वर्धा जिले में 'पिंपरी मेघे' गाँव मे हुआ। उनके पिताजी का नाम 'अभिमान साठे' है, जो कि एक चरवाह (जानवरों को चरानेवाला) थे। क्योंकि वे घर मे नापसंद बच्ची (क्योंकि वे एक बेटी थी; बेटा नही) थी, इसलिए उन्हे घर मे 'चिंधी'(कपड़े का फटा टुकड़ा) बुलाते थे। परन्तु उनके पिताजी सिन्धु को पढ़ाना चाहते थे, इसलिए वे सिन्धु कि माँ के खिलाफ जाकर सिन्धु को पाठशाला भेजते थे। माँ का विरोध और घर की आर्थिक परस्थितीयों की वजह से सिन्धु की शिक्षा मे बाधाएँ आती रही। आर्थिक परस्थिती, घर की जिम्मेदारियां और बालविवाह इन कारणों की वजह से उन्हे पाठशाला छोड़नी पड़ी जब वे चौथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण हुई।

विवाह और समाजसेवा की शुरुआत --
जब सिन्धुताई १० साल की थी तब उनकी शादी ३० वर्षीय 'श्रीहरी सपकाळ' से हुई। जब उनकी उम्र २० साल की थी तब वे ३ बच्चों की माँ बनी थी। गाँववालों को उनकी मजदुरी के पैसे ना देनेवाले गाँव के मुखिया की शिकायत सिन्धुताईने जिल्हा अधिकारी से की थी। अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए मुखियाने श्रीहरी (सिन्धुताई के पती) को सिन्धुताई को घर से बाहर निकालने के लिए प्रवृत्त किया जब वे ९ महिने की पेट से थी। उसी रात उन्होने तबेले मे (गाय-भैंसों के रहने की जगह) में एक बेटी को जन्म दिया। जब वे अपनी माँ के घर गयी तब उनकी माँ ने उन्हे घर मे रहने से इनकार कर दिया (उनके पिताजी का देहांत हुआ था वरना वे अवश्य अपनी बेटी को सहारा देते)। सिन्धुताई अपनी बेटी के साथ रेल्वे स्टेशन पे रहने लगी। पेट भरने के लिए भीक माँगती और रात को खुद को और बेटी को सुरक्षित रखने हेतू शमशान मे रहती। उनके इस संघर्षमय काल मे उन्होंने यह अनुभव किया कि देश मे कितने सारे अनाथ बच्चे है जिनको एक माँ की जरुरत है। तब से उन्होने निर्णय लिया कि जो भी अनाथ उनके पास आएगा वे उनकी माँ बनेंगी। उन्होने अपनी खुद की बेटी को 'श्री दगडुशेठ हलवाई, पुणे, महाराष्ट्र' ट्र्स्ट मे गोद दे दिया ताकि वे सारे अनाथ बच्चों की माँ बन सके।

समाजकार्य और सिन्धुताईका परिवार--

सिन्धुताई ने अपना संपूर्ण जीवन अनाथ बच्चों के लिए समर्पित किया है। इसलिए उन्हे "माई" (माँ) कहा जाता है। उन्होने १०५० अनाथ बच्चों को गोद लिया है। उनके परिवार मे आज २०७ दामाद और ३६ बहूएँ है। १००० से भी ज्यादा पोते-पोतियाँ है। उनकी खुद की बेटी वकील है और उन्होने गोद लिए बहुत सारे बच्चे आज डाक्टर, अभियंता, वकील है और उनमे से बहुत सारे खुदका अनाथाश्रम भी चलाते हैं। सिन्धुताई को कुल २७३ राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए है जिनमे "अहिल्याबाई होऴकर पुरस्कार है जो स्रियाँ और बच्चों के लिए काम करनेवाले समाजकर्ताओंको मिलता है महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा। यह सारे पैसे वे अनाथाश्रम के लिए इस्तमाल करती है। उनके अनाथाश्रम पुणे, वर्धा, सासवड (महाराष्ट्र) मे स्थित है। २०१० साल मे सिन्धुताई के जीवन पर आधारित मराठी चित्रपट बनाया गया "मी सिन्धुताई सपकाळ", जो ५४ वे लंडन चित्रपट महोत्सव के लिए चुना गया था।

सिन्धुताई के पति जब 80 साल के हो गये तब वे उनके साथ रहने के लिए आए। सिन्धुताई ने अपने पति को एक बेटे के रूप में स्वीकार किया ये कहते हुए कि अब वो सिर्फ एक माँ है। आज वे बड़े गर्व के साथ बताती है कि वो (उनके पति) उनका सबसे बड़ा बेटा है। सिन्धुताई कविता भी लिखती है। और उनकी कविताओं मे जीवन का पूरा सार होता है। वे अपनी माँ के आभार प्रकट करती है क्योंकि वे कहती हैं कि अगर उनकी माँ ने उनको पति के घर से निकालने के बाद घर में सहारा दिया होता तो आज वो इतने सारे बच्चों की माँ नहीं बन पाती। सिंधुताई ने अन्य समकक्ष संस्था की स्थापना की वह निम्नलिखित हैं
बाल निकेतन हडपसर ,
पुणे सावित्रीबाई फुले लडकियों का वसतिगृह,
चिखलदरा अभिमान बाल भवन ,
वर्धा गोपिका गाईरक्षण केंद्र ,
वर्धा ( गोपालन) ममता बाल सदन,
सासवड सप्तसिंधु महिला आधार बालसंगोपन व शिक्षणसंस्था, पुणे आंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिंधुताई ने अपनी संस्था के प्रचार के लिए और कार्य के लिए निधी संकलन करने के हेतु प्रदेश दौरे किए अंतरराष्ट्रीय मंच पर उन्होंने अपनी वाणी और काव्य से समाज को प्रभावित किया है। विदेशी अनुदान आसानी पूर्वक मिले इस उद्देश से उन्होंने मदर ग्लोबल फाउंडेशन संस्था की स्थापना की।

पुरस्कार व गौरव

पुरस्कार

कुल २७३ पुरस्कार,
अहिल्याबाई होळकर पुरस्कर (महाराष्ट्र राज्य द्वारा),
राष्ट्रीय पुरस्कार "आयकौनिक मदर",
सह्यद्री हिरकणी पुरस्कार्,
राजाई पुरस्कार,
शिवलीला महिला गौरव पुरस्कार,
दत्तक माता पुरस्कार,
रियल हिरोज पुरस्कार (रिलायन्स द्वारा),
गौरव पुरस्कार सिंधुताईं को लगभग ७५० राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले है उसमें के कुछ उस प्रकार है:-
महाराष्ट्र शासन का डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर समाज भूषण पुरस्कार (२०१२) पुणे का अभियांत्रिकी कॉलेज का 'कॉलेज ऑफ इंजिनिअरिंग पुरस्कार' (२०१२) महाराष्ट्र शासन का 'अहिल्याबाई होलकर पुरस्कार' (२०१०) मूर्तिमंत माँ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार (२०१३) आयटी प्रॉफिट ऑर्गनायझेशनचा दत्तक माता पुरस्कार (१९९६) सोलापूर का डॉ. निर्मलकुमार फडकुले स्मृती पुरस्कार राजाई पुरस्कार शिवलीला महिला गौरव पुरस्कार. श्रीरामपूर-अहमदगर जिले में सुनीता कलानिकेतन न्यासातर्फे स्वर्गीय सुनीता त्र्यंबक कुलकर्णी इनके स्मृति में दिया जानेवाला 'सामाजिक सहयोगी पुरस्कार' (१९९२) सीएनएन-आयबीएन और रिलायन्स फाउंडेशनने दिया 'रिअल हीरो पुरस्कार' (२०१२). २००८ - दैनिक लोकसत्ता का'सह्याद्री की हिरकणी पुरस्कार'. प्राचार्य शिवाजीराव भोसले स्मृती पुरस्कार (२०१५) डॉ. राम मनोहर त्रिपाठी पुरस्कार (२०१७)

प्रकाशन

आत्मचरित्र मी वनवासी (नवरंग प्रकाशन)