‘कवित्त विवेक एक नहिं मोरे..सत्य कह्हूँ लिख कागद कोरे’.. जिस महाकवि ने श्री रामचरितमानस लिख कर भी ये स्वीकार किया कि उनको कविता की समझ नहीं है, उनकी विनम्रता को मेरा प्रणाम, और उस अवधी भाषा को भी जिसके गर्भ में ऐसे अद्भुत शब्द पले, कि मानस लिखना सम्भव हो पाया.
#TulsidasJayanti P.S.
मेरे बुद्धिजीवी साथी इसका ये अर्थ न निकालें कि मैं #Ghalib #Meer या #Tagore को कम आँकता हूँ या फिर अवधी के अलावा बाक़ी भाषाओं का सम्मान नहीं करता. एहतियातन लिख रहा हूँ, क्यूँकि दो दिन पहले कुछ लोग अपनी छोटी ज़हनियत का सुबूत दे चुके हैं. #JiyoTiwariJaneudhari