manoj Jaiswal's Album: Wall Photos

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#बारगेनिंग
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खरीदारी के लिए मोलभाव,दाम दर,कम बेसी जैसे शब्दों का स्थान अब #बारगेनिंग ने ले लिया है। अमीर-गरीब,छोटे-बड़े,पढ़े-अनपढ़े सबके बीच यह शब्द समान रूप से लोकप्रिय है।अंग्रेजी शब्द होने के कारण वजनदार है और इसे बोलने वाले का भी वजन बढ़ता है।फिर इसी कारण भाषाई झगड़े से भी मुक्त है।पूरब-पश्चिम,उत्तर-दक्षिण देश के हर हिस्से और सभी प्रकार के भाषा-भाषियों के बीच यह शब्द समान रूप से प्रचलित है।

बारगेनिंग करना एक कला है।बड़े-बड़े शहरों में ऐसे कई मार्केट हैं जहाँ बारगेनिंग का बोलबाला है। कलकत्ते के #धर्मतला से बारगेनिंग कर मनचाहे दाम पर समान खरीद लेना बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।दिल्ली में सरोजिनी मार्केट,पालिका बाजार जैसी जगहों पर अच्छी खासी बारगेनिंग चलती है।दिल्ली से ललितपुर जाना था।बेटा अड़ गया-"आपको एक नया जैकेट लेना ही होगा।"

उसके साथ पालिका बाजार गया। बेटे ने पहले चेता दिया-"वहां खूब बारगेनिंग होती है।"जो जैकेट पसंद आया उसकी कीमत दुकान वाले ने साढ़े तीन हजार बताया। मैंने कहा-"एक हजार दूंगा।"थोड़ी झिकझिक के बाद ग्यारह सौ में बात बन गई।बेटा देखता रह गया।मैंने समझाया-"इतने में भी उसको अच्छा मुनाफा मिल गया।घाटा सह कर ऐसे कोई बिक्री नहीं करता।"

बारगेनिंग का एक अघोषित सिद्धांत है।एक बार दाम कर लेने के बाद उसमें कमी नहीं की जा सकती और सामान खरीदना अनिवार्य होता है। ऐसा नहीं करने पर गाली-गलौज,छीछालेदर, मारपीट तक की गुंजाइश रहती है।साहित्य में इस विषय पर अब तक पठित मेटेरियल के अनुसार #चाचा_छक्कन बारगेनिंग के सूरमा कहे जायेंगे।छः आने दर्जन के केले बारगेनिंग कर चार आने दर्जन पर लेना तय किया।फिर तिकड़म कर तीन आने का भाव लगाया।केले वाला इस पर भी मान गया।इतना जरुर बोला-"या बेईमानी तेरा आसरा।" हालाँकि यह सारी कवायद नौकर के मार्फत हुई।

हमारे मित्र वर्मा जी के रिश्ते के एक बड़े भाई हावड़ा की जूट मिल में मैनेजर थे।छुट्टियों में अक्सर उनके पास चले जाते।कलकत्ते में छिटपुट खरीदारी करते और अपनी बारगेनिंग की कला का ऑफिस में बखान करते।एक दिन गांगुली ने कह दिया-"चाहे जेतना भी बारगेनिंग कर लो,जोदी धर्मोताला से बारगेनिंग कर खोरीद नेही किया तो कुछ नेही किया।"

बात वर्मा जी को लग गई।अगली बार बड़े भाई के यहाँ गए तो हावड़ा के शिवपुर से बस पकड़ सीधा धर्मतल्ला उतरे । उन्होंने निश्चय किया-एक हैंडबैग खरीदूंगा,बारगेनिंग करूंगा और अपनी दक्षता की कहानी गांगुली के मुँह पर मारूंगा।फुटपाथ पर बैग वालों का मुआयना करने लगे।एक जगह हैंडबैग पसंद आया तो दाम पूछा।बैग वाले ने बताया 35 रुपये।वर्मा जी सीधे 20 रुपये पर आ गए। आखिरकार 22 रुपये में फैसला हो गया। एक आदमी वर्मा जी के बगल में खड़ा था।धीरे से उनके कान में बोला-"बीस में दे देगा।"वर्मा जी उसकी बातों में आ गए।दाम तय करने के बाद फिर कम करने की बात अर्थात सिस्टम का घोर उल्लंघन।वर्मा जी और दुकानदार में हुज्जत होने लगी।अंततः दुकानदार 20 रुपये में ही मान गया।वर्मा जी ने पर्स निकालने के लिए पॉकेट टटोला तो पर्स गायब पाया।साथ ही बगल में खड़ा अवैतनिक सलाहकार भी अंतर्ध्यान हो गया था। बैग वाले ने वर्मा जी के हाथ से बैग लिया और टहलते हुए दूर निकल गया।

वर्मा जी बड़े दुखी थे।बारगेनिंग का नशा उतर चुका था।अब वापस शिवपुर जाने की समस्या थी। कमीज की ऊपरी पॉकेट में चार रुपये थे। लोगों से पूछते-पाछते #डलहौजी पहुंचे।वहां से शिवपुर की डायरेक्ट बस मिल गई।कोलकाता में सार्वजनिक यातायात के साधन काफी सस्ते थे। अन्य महानगरों की तुलना में अब भी हैं।

भाड़े में एक रुपया खर्च होना था तो वर्मा जी निश्चिंत बस की भीड़ में छत से लगा डंडा पकड़े खड़े थे।बस #हावड़ा_ब्रिज पार करने लगी और #हुगली की ठंडी हवा लगी तो वर्मा जी की वाणी मुखर हो गई ।साथ खड़े सहयात्री को धर्मतला में घटी दुर्घटना के बारे में बताने लगे।पास में ही कंडक्टर खड़ा था।बोला-"दादा सावधान!बस में भी पॉकेटमारी होने सकता है।भाड़ा निकालिए।"

शर्मा जी ने कमीज के पॉकेट में हाथ दिया तो बचे हुए चार रुपये भी गायब थे।उनका चेहरा पीला पड़ गया।आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा।कंडक्टर समझदार था।जानता था,ऐसे ही नरश्रेष्ठों की बदौलत कलकत्ते के पॉकेटमारों की जीविका चलती है।बिना भाड़ा लिए ही शिवपुर पहुँचा दिया।

वर्मा जी बड़े दुखी हुए।बारगेनिंग तो उन्होंने क्या सीखा,वही जानें लेकिन फीस अलबत्ता लग गई थी।वह भी दो बार।

कोपिपेस्ट
02-07-2020