manoj Jaiswal's Album: Wall Photos

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*ले.जनरल नाथूसिंह राठौड़* ----
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नेहरु का ये मानना था की देश की सेना को सँभालने के लिए भारतीयों के पास काबिलियत और अनुभव नहीं है इसलिए भारतीय सेना का अध्यक्ष कोई विदेशी होना चाहिए क्योकि अंग्रेजो की सेना में भारतीय निचले तबके पर ही रहे। और उन्होंने आजाद भारत की सेना का पहला अध्यक्ष बनाया एक अंग्रेज जनरल रॉब लॉकहार्ट को |

1948 के अंत में रॉब लोकहार्ट ने इस्तीफा दे दिया क्योकि वो इंग्लैंड में ही रहना चाहते थे और सेना अध्यक्ष का पद खाली हो गया |
एक नए अंग्रेज सेना अध्यक्ष को नियुक्त करने के लिए नेहरु ने मंत्रिमंडल की मीटिंग बुलाई , उस मीटिंग में कुछ भारतीय लेफ्टिनेंट रैंक के ऑफिसर भी थे |

नेहरु ने बोलना शुरू किया, क्योकि भारतीयों के पास सेना सँभालने का अनुभव नहीं है इसलिए इन नामो में से आपको कौन सा विदेशी जनरल ठीक लगता है पर अपनी राय दे |

इस पर *कर्नल नाथू सिंह राठोर* खड़े हुए और नेहरु से बोले, किसी भारतीय को प्रधानमंत्री होने का अनुभव नहीं है, तो आप यहाँ क्यों बैठे है इस पद पर भी किसी अंग्रज को बिठाइये, दुनिया में एसा कौन सा देश है जो अपनी सेना का अध्यक्ष विदेशी को बनाता है |

ये सुनते ही नेहरु तिलमिला गए और उनको बाहर कर दिया | रक्षा मंत्री बलदेव *सिंह नाथू सिंह राठौर* के इस साहस से खुश हुए और उन्होंने उनके पुरे रिकॉर्ड मंगवाए, तो पता चला नाथू सिंह बर्मा में और विश्व युद्ध में सेना की टुकड़ी का सफल नेतृत्व कर चुके थे और उन्होंने नेहरु को *नाथू सिंह राठौर* को ही सेना अध्यक्ष बनाने की शिफारिश कर दी | पर क्योकि नेहरु नाराज थे उन्हें नहीं बनाया गया लेकिन दुसरे भारतीय "सी.एम्. करिअप्पा" को सेना अध्यक्ष बनाया | हालाँकि *नाथू सिहं राठौड़* ने ही करिअप्पा का नाम प्रस्तावित किया था तथा सेना के दुसरे बड़े पद पर लेफ्टिनेंट जनरल के पद को सुशोभित किया।
*ले.जनरल नाथूसिंह राठौड़* की शिक्षा मेयो कालेज, अजमेर(राज.) से हुई थी तथा सेना में प्रवेश परीक्षा का तरीका उन्हीं के पाठ्यक्रम की देन हैं। सेना की आक्रामक कार्य शैली तथा 1962 में भारत - चीन युद्ध में सेना की भुमिका को लेकर तथा सेना के पीछे हटने से इंकार करने को लेकर ले.जनरल नाथूसिंह व नेहरू के मध्य विवाद बढ़ गया। जिसके बाद से नेहरू और देश में 70 वर्षो से राज कर रहे राजनीतिक दल को यह बात पसंद नहीं आयी तथा एक साजिश के तहत हमेंशा के लिए उन्हें गुमनामी के अंधेरों मे धकेल दिया गया। किंतु पिछले कुछ वर्षों में ले. जनरल नाथूसिंह का नाम पुनः चर्चा में आया जब मेयो कालेज मिलिट्री सेरिमोनीयल फंक्शन के दौरान मातृभूमि के इस सपूत नें अपनी अंतिम सांस ली तथा देश को अलविदा कह दिया।

ये नाथू सिंह राठोर, उन्ही महाराणा प्रताप के वंशज थे जिन्हें मुग़ल कभी हरा नहीं पाए। धन्य हैं ऐसे वीर जिनकी वजह से तिरंगा सदैव लहराता रहा है
और सदैव लहराता रहेगा।