"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, तत्र देवता रमन्ते"
1857 की वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म 18 नवम्बर 1828 को तथा निधन 18 जून 1858 को हुआ था। उनकी पुण्यतिथि में हम उन पर लिखी एक बहुत प्रचलित कविता पेश करने जा रहे हैं। जो हर बार पढ़ने पर नई लगती है।
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।