मंदिर के अहाते के एक कोने के कमरे में पड़ी बोलने-चलने में लाचार एक बुढ़िया की दीनदशा देख वहां दोपहर विश्राम करने पहुंचे किसी गांव के मास्टरजी और उनके छात्र से रहा ना गया। पूछने पर पता चला कि बुढ़िया का धन और घर हड़पकर उसे यहां छोड़ दिया गया है। घरवालों को अभी भी उम्मीद है कि बुढ़िया के पास गड़ा धन है और इसलिए धन का पता पाने की आशा में वे दिन में एक बार मिलने आ जाते हैं। अब तो बुढ़िया भगवान का एक चित्र छाती से चिपकाये अपने मुक्त होने की प्रतीक्षा कर रही है।
मास्टर ने क्षणभर सोचा और बुढ़िया की चारपाई पर रखे चित्र के नीचे कुछ लिखा और सांझ होने पर अपने छात्र के साथ अपने गंतव्य की ओर चल दिया।
रास्ते में उन्हें परिजनों के साथ वही बुढ़िया घर जाती दिखी। छात्र को बहुत आश्चर्य हुआ,
‛मास्टरजी! बुढ़िया ने आपसे कुछ भी नहीं कहा था फिर आपने ऐसा क्या लिखा कि उसके घरवाले उसे सम्मानपूर्वक घर ले जा रहे हैं?’
मास्टर ने चारपाई पर लेटी बुढ़िया के हाथ में पकड़े चित्र की ओर इशारा किया, जिस पर लिखा था,
‛यदि तुम सब मानते हो कि मेरे पास देने के लिए बहुत कुछ है तब विश्वास रखो,,जो मेरी सेवा करेगा.. अंत समय में उसे मेरा सब कुछ मिलेगा’।
‛देखो, गड़े धन के लालच में यह परिजन जब तक बुढ़िया जीवित रहेगी कम से कम उसकी सेवा करते रहेंगे।’
‛लेकिन यह तो धोखा है मास्टरजी, अंत समय वह धन मांगेंगे तब बुढ़िया क्या करेगी?’
मास्टर ने शांत भाव से कहा,
‛जो उन्होंने बुढ़िया के साथ किया क्या वह धोखा नहीं था? मैंने ईश्वर की तरफ से संदेश लिखा है बुढ़िया की तरफ से नहीं। संदेश में कहीं बुढ़िया का नाम नहीं है। फिर भी यदि यह नासमझ गड़े धन के लालच में उसकी सेवा करते रहेंगे और बदले में कुछ न मिले, तब इसे उनके दुष्ट कर्मों का फल समझना चाहिए न कि धोखा....