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आज हिंदू धर्म पर जो लोग कलंक लगाते हैं वह पूर्ण ज्ञानी तो है नहीं अज्ञानता के कारण अर्धसत्य का परिचय देते रहते हैं।
इस देश की सभ्यता संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट करने का जो बुद्धि विहीन वादियों ने अभियान चला रखा है उसके तहत वो वेदों में नारी की अवमानना का ढोल पीटते रहते हैं।
वैदिक काल के जरा स्त्रियों की मर्यादाओं पर ध्यान दीजिए और सोचिए क्या हमारी संस्कृति इतनी खराब थी??

हमारे वेदो में स्त्रियों की शिक्षा, गुण, कर्तव्य, अधिकार और सामाजिक भूमिका का जो सुंदर वर्णन पाया जाता है वैसा संसार के किसी अन्य धर्म ग्रंथ में नहीं है।

वैदिक युग में नारी को ज्ञान, विद्या ,युद्धकला में निपुणता अर्जित करने की स्वतंत्रता थी और वेद उन्हें घर की सम्राज्ञी, देश का शासक, पृथ्वी की सम्राज्ञी तक बनने का अधिकार देते हैं।
इसके लिए स्त्रियों पर कोई प्रतिबंध नहीं है, हर काम में सहयोग और प्रोत्साहन की बात कहकर उन्हें विजयिनी कहा गया है।
"वेद" नारी को रणक्षेत्र में जाने और स्वयं पति चुनने का अधिकार देकर पुरुष से एक कदम आगे ही रखते हैं। इसके कई प्रमाण है जैसे महाराज दशरथ के साथ युद्ध में कैकेयी भी गई थी।

स्त्री को अपना मनपसंद योग्य पति मिले इसके लिए स्वयंवर जैसी सभा होती थी केवल राजघराने में ही नहीं प्रजायो में भी मेला उत्सव के दिन स्त्रियों को योग्य जीवनसाथी चुनने का अवसर दिया जाता था।

"वेद'' स्त्री की,, परिवार और पत्नी की महत्वपूर्ण भूमिका, सामाजिक, प्रशासकीय और राष्ट्र की सम्राज्ञी के रूप का वर्णन करते हैं।

अनेक ऋषिकाएं वेद मंत्रों की द्रष्टा हैं – अपाला, घोषा, सरस्वती, सर्पराज्ञी, सूर्या, सावित्री, अदिति- दाक्षायनी, लोपामुद्रा, विश्ववारा, आत्रेयी आदि |

अथर्ववेद_
सभा और समिति में जाकर स्त्रियां भाग ले और अपने विचार प्रकट करें।

अथर्ववेद_
कन्याओं के लिए भी ब्रह्मचर्य और विद्या ग्रहण करने के बाद ही विवाह करने को कहा गया है यह लड़कों के समान कन्याओं को भी शिक्षा देने का विशेष महत्व देता है।

अथर्ववेद_
हे वर! यह वधू तुम्हारे कुल की रक्षा करने वाली है।
यह स्त्रियां शुद्ध स्वभाव वाली, पवित्र, पूजनीय, सेवा योग्य, विद्वतापूर्ण, समाज को प्रजा, पशु और सुख पहुंचाती है।

स्त्रियां कभी दुख से रोयें नहीं, इन्हें निरोग रखा जाए और रत्न, आभूषण इत्यादि पहनने को दिए जाएं।

अथर्ववेद_
हे पत्नी! अपने सौभाग्य के लिए तेरा हाथ पकड़ता हूं।
हे पत्नी! मैं ज्ञानवान हूं तू भी ज्ञानवती है,
मैं सामवेद हूं तो तू ऋग्वेद है।

हे पत्नी! हमें ज्ञान का उपदेश करो।
पति को संपत्ति कमाने का तरीका बता धन और समृद्धि को बढ़ाओ‌।
संतानों को पालने वाली निश्चित ज्ञान वाली चारों ओर प्रभाव डालने वाली सुयोग्य पति की पत्नी अपने पति की संपत्ति के लिए आगे बढ़ाओ।

अथर्ववेद_
विदुषी, सम्माननीय, विचारशील, प्रसन्नचित्त पत्नी संपत्ति की रक्षा और वृद्धि करती है और घर में सुख़ लाती है।

अथर्ववेद_
यह वधू पति के घर जाकर रानी बने और वहां प्रकाशित हो।
यह वधू बड़े ऐश्वर्य वाली और पुरुषार्थिनी हो।

हे वधू ! तुम कल्याण करने वाली हो और घरों को उद्देश्य तक पहुंचाने वाली हो।

यजुर्वेद_
स्त्री और पुरूष दोनों को शासक चुने जाने का समान अधिकार है।

यजुर्वेद_
स्त्रियों की भी सेना हो और उन्हें युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें।

यजुर्वेद
शासकों की स्त्रियां अन्य को राजनीति की शिक्षा दें। जैसे राजा, लोगों का न्याय करते हैं वैसे ही रानी भी न्याय करने वाली हों।

ऋग्वेद_
पुत्रों की ही तरह पुत्री भी अपने पिता की संपत्ति में समान रूप से उत्तराधिकारी है।

माता पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धि और विद्या बल का उपहार दे।

जब कन्याएं बाहरी उपकरणों को छोड़ कर, भीतरी विद्या बल से चैतन्य स्वभाव और पदार्थों को दिव्य दृष्टि से देखने वाली और आकाश और भूमि से सुवर्ण आदि प्राप्त करने – कराने वाली हो तब सुयोग्य पति से विवाह करे।

ऋग्वेद_
स्त्रियां ‌परिवार, समाज की रक्षक हो और सेना में जाएं।

स्त्रियां रथ पर सवारी करें, वो वीर हो, तेजोमयी और यशस्वी हों, सुविज्ञ हों ।

ऋग्वेद_
एक गृह पत्नी प्रातः काल उठते ही अपने उद्गार कहती है,
"यह सूर्य उदय हुआ है, इसके साथ ही मेरा सौभाग्य वी ऊंचा चल निकला है मैं अपने घर और समाज की ध्वजा हूं, उसकी मस्तक हूं, मैं भारी व्यख्यात्री हूं, मेरे पुत्र शत्रु विजई है, मेरी पुत्री संसार में चमकती है, मैं स्वयं दुश्मनों को जीतने वाली हूं मेरे पति का असीम यश है मैंने वह त्याग किया है, जिससे इंद्र (सम्राट) की विजय पाता है मुझे भी विजय मिली है मैंने अपने शत्रु को निःषेश कर दिया है। मेरी इच्छा के अनुसार ही मेरा पति आचरण करे।

ओ प्रबुद्ध ! मैंने उस अर्ध्य को अर्पण किया है , जो सबसे अधिक उदाहरणीय है और इस तरह मैं सबसे अधिक प्रसिद्ध और सामर्थ्यवान हो गई हूं।

अब मैं प्रतिस्पर्धियों की विध्वंसक और विजेता हूं | मैंने दूसरों का वैभव हर लिया है। मैंने प्रतिस्पर्धियों पर विजय प्राप्त कर ली है | जिससे मैं इस नायक और उस की प्रजा पर यथेष्ट शासन चला सकती हूं |

इस मंत्र की ऋषिका और देवता दोनों हो शची हैं | शची इन्द्राणी है, शची स्वयं में राज्य की सम्राज्ञी है ( जैसे कि कोई महिला प्रधानमंत्री या राष्ट्राध्यक्ष हो ) | उस के पुत्र – पुत्री भी राज्य के लिए समर्पित है।

हिंदू धर्म में एक कलंक सुनने में आता है सती दहन प्रथा_

हिंदू धर्म में सती प्रथा नहीं था। राजा दशरथ जी के देहांत के बाद तीनों माताओं में कोई भी सती दहन नहीं हुई थी।
और माता कुंती ने भी पांडवों का पालन पोषण किया था सती दहन नहीं हुई थी।
हां अगर स्त्री को अपने पति के अनुपस्थिति में जीवन विषैला लगे या पति की मृत्यु के बाद संरक्षण ना मिले तो अपनी स्वेच्छा से स्त्री सती होती थी पति कि चिता पर ही खुद को भस्म कर देती थी पर इसमें कोई जबरदस्ती नहीं थी।
जौहर प्रथा भी हम सभी जानते हैं कैसे मुगलों से बचने के लिए स्त्री जोहर करके अपने सतीत्व की रक्षा करती थी।
इसी से सती प्रथा की शुरूवात हुई। कालांतर में जबरजस्ती यह नियम करवाया गया।
इस समाज संस्कार को ब्रिटिश काल में इस पर काम किया ।

दूसरा कलंक कौलिन्य प्रथा_
कुलीन ब्राह्मण चाहे उनका उम्र जो भी हो उनसे ही ब्राह्मण स्त्री को विवाह करना होगा।
इस प्रथा का हिंदू धर्म ग्रंथ में कहीं भी उल्लेख नहीं है।
यहां तक की ऋषि अवतार "परशुराम जी" की माता क्षत्रिय और पिता ब्राह्मण थे।
प्रश्न आता है फिर कौलिन्य प्रथा का प्रचलन कैसे शुरू हुआ?

राजा "वल्लाल सेन" ने इसकी व्यवस्था की थी। उनका उद्देश्य केवल शुद्ध सन्तान की उत्पत्ति थी। लेकिन भविष्य में इसका क्या दुष्प्रभाव होगा उन्होंने इस बारे में नहीं सोचा।

फिर मुगल काल में ब्राह्मणों की हत्या, धर्मांतरण कर दिया गया जनेऊ जला दिया ब्राह्मण संख्या में कम हो गए बंगाल की प्रथा अनुसार ब्राह्मण को ब्राह्मण से ही विवाह करना होता चाहे उसका उम्र जितना भी हो जाए तो भी स्त्री को बचपन में ही विवाह करा देते ताकि युवा अवस्था में मुगल बादशाह की हरम में ना भेजा जाए इसलिए।

बेचारे "वल्लाल" सेन को क्या पता था कि हमारी संस्कृति पर ऐसी चोट आएगी।