brijendrakumar199607's Album: Wall Photos

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#भूल_गए_न
2018 में खुलासा हुआ था इस घटना का ।
क्या निष्कर्ष निकाला गया अब तक ।अब भी हजारों ऐसी संस्थाएं ।
नारियों के संरक्षण में ही नारी के मौलिक अधिकारों का हनन कर रहे हैं। ।

⁃ आंटी कहती थी ‘कीड़े की दवाई’ है और खाना में मिला कर देती थी. दवा खाते ही नींद आने लगती थी. सुबह को जब आँख खुलती थी तो हमारे कपड़े फ़र्श पर फेंके हुए दिखते थे. हम नंगे होते थे बिस्तर पर.
⁃ ब्रजेश अंकल हम को अपने ऑफ़िस में ले जाते थे. वहाँ जा कर हमारे प्राइवेट पार्ट को इतने ज़ोर से स्क्रैच करते थे कि ख़ून निकल आता था.
⁃ खाना खिला कर हमें ब्रजेश अंकल के रूम में ज़बरदस्ती भेजा जाता था. वहाँ रात को कोई मेहमान आने वाला होता था.
⁃ जब हम गन्दा काम (सेक्स) के लिए मना करते थे तो हमारे पेट पर आंटी लात से मारती थी.
⁃ हमें कई रोज़ भूखा रखा जाता था. खाना माँगने पर गर्म तेल और गर्म पानी हम पर फेंक देती थी आंटी.

ऊपर लिखी बातें किसी कहानी का हिस्सा नहीं है. ये कल यानि शनिवार को मुज़फ़्फ़रपुर के ‘सेवा संकल्प बालिका गृह’ में हुए बलात्कार पीड़िता बच्चियों ने अपने टेस्टिमोनी में कहा है. जिन बच्चियों ने बातें कहीं हैं उनकी उम्र सात से दस साल के बीच है.

जब भी सोचती हूँ कि बलात्कार पर अब एक शब्द लिख कर ख़ुद को जाया नहीं करूँगी तब कुछ न कुछ ऐसा घटता है कि मन चित्कार कर उठता है.

मैं सोच नहीं पा रही हूँ कि वो बच्चियाँ जो माँ-बाप से बिछड़ गयी या जो अनाथ हैं, उन्हें आप एक सुरक्षित माहौल देने का वादा कर एक घर में ले आते हैं और फिर उनका बलात्कार. छी!

और बलात्कार भी कहाँ हो रहा था?

एक ऐसे कैंपस में जिसके बग़ल से क्रांति के ‘प्रातःकमल’ अख़बार छप कर निकल रहा है.

बलात्कार कर कौन रहा था?

‘प्रातः कमल’ का मालिक ब्रजेश ठाकुर.

कौन हैं ये ब्रजेश ठाकुर आइए आपको इनके बारे में थोड़ा डिटेल से बताते हैं.

आदरणीय ब्रजेश ठाकुर जी मालिक हैं, हिंदी अख़बार ‘प्रातःकमल’ उर्दू अख़बार ‘हालात-ए-बिहार’ और अंग्रेज़ी अख़बार ‘न्यूज़ नेक्स्ट’ के.

इसके अलावा वो समाज सेवा के लिए लड़कियों और महिलाओं के उत्थान के लिए पाँच ‘शेल्टर होम’ चलाते हैं.

जिसके लिए उन्हें बिहार सरकार से एक करोड़ रुपए की अनुदान राशि मिलती है.

जिसमें से मुज़फ़्फ़रपुर शॉर्ट स्टे होम के लिए उन्हें 40 लाख अलग से मिलता है.

इतना ही नहीं ठाकुर जी एक वृद्धाश्रम भी चलाते हैं जिसके लिए 15 लाख सरकार की तरफ़ से मिलता है. और ‘सेल्फ़ हेल्प कम रहबिटेशन’ के नाम पर 32लाख ऊपर से और.

अब आप ख़ुद ही अंदाज़ा लगाइए कि ऐसे रसूखदार आदमी के सामने किसी की भी हिम्मत कैसे हो सकती है। कोई भी सरकार या कानून इस गन्दगी को समाज से नही मिटा सकता और जब तक आसमानी किताब जैसी पुस्तके बच्चे पढ़ते रहेंगे तब तक तो बिल्कुल भी नही ।

देश भी पहली आवश्यकता जनसंख्या नियंत्रण।