अन्याय का कुफल
एक गांव मेें दो व्यापारी थे एक का नाम धर्मबुद्धि और दूसरे का दुष्टबुद्धि था । वे दोनों एक बार व्यापार करने विदेश गये और वहाँ से दो हजार अशर्फियाँ कमा लाये। अपने नगर में आकर सुरक्षा के लिये उन्हे एक वृक्ष के नीचे गाड़ दिया और केवल सौ अशर्फियों को आपस में बाँटकर काम चलाने लगे।
दुष्टबुद्धि बहुत शातिर था। एक बार चुपके से उस वृक्ष के नीचे से सारी अशर्फियाँ निकाल लाया और बुरे कामों में उसने उनको खर्च कर डाला।
एक महीना बीत जाने पर वह धर्मबुद्धि के पास गया और बोला-
‘मित्र! चलो, उन अशर्फियों को हम लोग बाँट लें; क्योंकि मेरे यहाँ खर्च अधिक है।’
उसकी बात मानकर जब धर्मबुद्धि उस स्थान पर गया और जमीन खोदी तो वहाँ कुछ भी न मिला। यह देखकर दुष्टबुद्धि ने धर्मबुद्धि से कहा- ‘मालूम होता है तुम्ही सब अशर्फियाँ निकाल ले गये हो, अतः मेरे हिस्से की आधी अशर्फियाँ तुम्हें देनी पडेंगी।’
धर्मबुद्धि ने कहा-‘नहीं मित्र! मैं तो नहीं ले गया; तुम्हीं ले गये होगे।’
इस प्रकार दोनों में झगड़ा होने लगा। इसी बीच दुष्टबुद्धि अपने सिर पर चोट करके राजा के यहाँ पहुँचा, धर्मबुद्धि को भी बुलवाया गया और उन दोनों ने अपना-अपना पक्ष राजा को सुनाया। किंतु उनकी बातें सुनकर राजा किसी निर्णय पर नहीं पहुँच सका।
उन दोनों को दिन भर रोका गया। अन्त में दुष्टबुद्धि ने सलाह दी-‘वह वृक्ष ही इसका साक्षी है, जो कहता है कि यह धर्मबुद्धि सारी अशर्फियाँ ले गया है।’ यह सुनकर राज्य के अधिकारी आश्चर्यचकित हुए और बोले-‘प्रातःकाल हम लोग चलकर वृक्ष से पूछेंगे।’ इसके बाद जमानत देकर दोनों मित्र घर आ गये।
इधर दुष्टबुद्धि ने अपनी सारी स्थिति अपने पिता को समझायी तथा उसे पर्याप्त धन देकर अपनी ओर मिला लिया ओर कहा कि ‘तुम वृक्ष के कोटर में छिपकर बोलना।’ अतः वह रात में ही जाकर उस वृक्ष के कोटर में बैठ गया।
प्रातःकाल दोनों मित्र राज्यसैनिकों और अधिकारियों के साथ उस स्थान पर पहुँचे। वहाँ उन्होंने वृक्ष से पूछा कि ‘अशर्फियों को कौन ले गया है?’ कोटर ने आवाज आयी-‘धर्मबुद्धि’। इस असम्भव तथा आश्चर्यजनक घटना को देख-सुनकर चतुर अधिकारियों ने सोचा कि अवश्य ही दुष्टबुद्धि ने यहाँ किसी को छिपा रखा है। उन लोगों ने कोटर में आग लगा दी। गर्मी के मारे उसमें से दुष्टबुद्धि का पिता कूदा, परन्तु पृथ्वी पर गिरके मर गया। उसे देखकर राजपुरुषों ने सारा माजरा जान लिया और धर्मबुद्धि को हजार अशर्फियाँ दिला दी। धर्मबुद्धि का सत्कार भी हुआ और दुष्टबुद्धि को कठोर दण्ड देकर राज्य से निर्वासित कर दिया गया।