शिखा बन्धन (चोटी) रखने का महत्त्व
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शिखा का महत्त्व विदेशी जान गए हिन्दू भूल गए।हिन्दू धर्म का छोटे से छोटा सिध्दांत, छोटी-से-छोटी बात भी अपनी जगह पूर्ण और कल्याणकारी है। छोटी सी शिखा अर्थात् चोटी भी कल्याण, विकास का साधन बनकर अपनी पूर्णता व आवश्यकता को दर्शाती है। शिखा का त्याग करना मानो अपने कल्याण का त्याग करना है। जैसे घड़ी के छोटे पुर्जे की जगह बडा पुर्जा काम नहीं कर सकता, क्योंकि भले वह छोटा है परन्तु उसकी अपनी महत्ता है।
शिखा न रखने से हम जिस लाभ से वंचित रह जाते हैं, उसकी पूर्ति अन्य किसी साधन से नहीं हो सकती।
'हरिवंश पुराण' में एक कथा आती है.... हैहय व तालजंघ वंश के राजाओं ने शक, यवन, काम्बोज पारद आदि राजाओं को साथ लेकर राजा बाहु का राज्य छीन लिया। राजा बाहु अपनी पत्नी के साथ वन में चला गया। वहाँ राजा की मृत्यु हो गयी। महर्षि और्व ने उसकी गर्भवती पत्नी की रक्षा की और उसे अपने आश्रम में ले आये। वहाँ उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर राजा सगर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राजा सगर ने महर्षि और्व से शस्त्र और शास्त्र विद्या सीख ली। समय पाकर राजा सगर ने हैहयों को मार डाला और फिर शक, यवन, काम्बोज, पारद, आदि राजाओं को भी मारने का निश्चय किया। ये शक, यवन आदि राजा महर्षि वसिष्ठ की शरण में चले गये। महर्षि वसिष्ठ ने उन्हें कुछ शर्तों पर अभयदान दे दिया। और सगर को आज्ञा दी कि वे उनको न मारे। राजा सगर अपनी प्रतिज्ञा भी नहीं छोड़ सकते थे और महर्षि वसिष्ठ जी की आज्ञा भी नहीं टाल सकते थे। अत: उन्होंने उन राजाओं का सिर शिखा सहित मुँडवाकर उनको छोड़ दिया।
प्राचीन काल में किसी की शिखा काट देना मृत्युदण्ड के समान माना जाता था। बड़े दु:ख की बात है कि आज हिन्दू लोग अपने हाथों से अपनी शिखा काट रहे हैं। यह गुलामी की पहचान है।
शिखा हिन्दुत्व की पहचान है। यह आपके धर्म और संस्कृति की रक्षक है। शिखा के विशेष महत्व के कारण ही हिन्दुओं ने यवन शासन के दौरान अपनी शिखा की रक्षा के लिए सिर कटवा दिये पर शिखा नहीं कटवायी।
डा॰ हाय्वमन कहते हैं ''मैने कई वर्ष भारत में रहकर भारतीय संस्कृति का अध्ययन किया है, यहाँ के निवासी बहुत काल से चोटी रखते हैं , जिसका वर्णन वेदों में भी मिलता है। दक्षिण भारत में तो आधे सिर पर 'गोखुर' के समान चोटी रखते हैं। उनकी बुध्दि की विलक्षणता देखकर मैं अत्यंत प्रभावित हुआ हूं। अवश्य ही बौध्दिक विकास में चोटी बड़ी सहायता देती है। सिर पर चोटी रखना बड़ा लाभदायक है। मेरा तो हिन्दूधर्म में अगाध विश्वास है और मैं चोटी रखने का कायल हो गया हूँ ।
*"प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा॰ आई॰ ई क्लार्क एम॰ डी ने कहा है"* मैंने जब से इस विज्ञान की खोज की हैं तब से मुझे विश्वास हो गया है कि हिन्दुओं का हर एक नियम विज्ञान से परिपूर्ण है। चोटी रखना हिन्दू धर्म ही नहीं, सुषुम्ना के केद्रों की रक्षा के लिये ऋषि-मुनियों की खोज का विलक्षण चमत्कार है।
*इसी प्रकार पाश्चात्य विद्वान मि॰ अर्ल थामस लिखते हैं कि* "सुषुम्ना की रक्षा हिन्दू लोग चोटी रखकर करते हैं जबकि अन्य देशों में लोग सिर पर लम्बे बाल रखकर या हैट पहनकर करते हैं। इन सब में चोटी रखना सबसे लाभकारी है। किसी भी प्रकार से सुषुम्ना की रक्षा करना जरुरी है।
"वास्तव में मानव-शरीर को प्रकृति ने इतना सबल बनाया है की वह बड़े से बड़े आघात को भी सहन करके रह जाता है परन्तु शरीर में कुछ ऐसे भी स्थान हैं जिन पर आघात होने से मनुष्य की तत्काल मृत्यु हो सकती है। इन्हें मर्म-स्थान कहा जाता है।
शिखा के अधोभाग में भी मर्म-स्थान होता है, जिसके लिये *सुश्रुताचार्य ने लिखा है...... * मस्तकाभ्यन्तरोपरिष्टात् शिरासन्धि सन्निपातो।
रोमावर्तोऽधिपतिस्तत्रपि सद्यो मरणम्।
अर्थात् मस्तक के भीतर ऊपर जहाँ बालों का आवर्त(भँवर) होता है, वहाँ संपूर्ण नाड़ियों व संधियों का मेल है, उसे 'अधिपतिमर्म' कहा जाता है।यहाँ चोट लगने से तत्काल मृत्यु हो जाती है(सुश्रुत संहिता शारीरस्थानम् : ६.२८)
सुषुम्ना के मूल स्थान को 'मस्तुलिंग' कहते हैं। मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों कान, नाक, जीभ, आँख आदि का संबंध है और कामेन्द्रियों - हाथ, पैर, गुदा, इन्द्रिय आदि का संबंध मस्तुलिंग से है। मस्तिष्क व मस्तुलिंग जितने सामर्थ्यवान होते हैं उतनी ही ज्ञानेन्द्रियों और कामेन्द्रियों - की शक्ति बढती है। मस्तिष्क ठंडक चाहता है और मस्तुलिंग गर्मी मस्तिष्क को ठंडक पहुँचाने के लिये क्षौर कर्म करवाना और मस्तुलिंग को गर्मी पहुँचाने के लिये गोखुर के परिमाण के बाल रखना आवश्यक होता है।
बाल कुचालक हैं, अत: चोटी के लम्बे बाल बाहर की अनावश्यक गर्मी या ठंडक से मस्तुलिंग की रक्षा करते हैं।
*शिखा रखने के अन्य निम्न लाभ बताये गये हैं........*
१-शिखा रखने तथा इसके नियमों का यथावत पालन करने से सद्बुद्धि, सद्विचारादि की प्राप्ति होती है।
२-आत्मशक्ति प्रबल बनती है।
३-मनुष्य धार्मिक, सात्विक व संयमी बना रहता है।
४-लौकिक - पारलौकिक कार्यों में सफलता मिलती है।
५-सभी देवी देवता मनुष्य की रक्षा करते हैं।
६-सुषुम्ना रक्षा से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु होता है।
७-नेत्रज्योति सुरक्षित रहती है।
इस प्रकार धार्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक सभी दृष्टियों से शिखा की महत्ता स्पष्ट होती है। परंतु आज हिन्दू लोग पाश्चात्यों के चक्कर में पड़कर फैशनेबल दिखने की होड़ में शिखा नहीं रखते व अपने ही हाथों अपनी संस्कृति का त्याग कर डालते हैं।
लोग हँसी उड़ायें, पागल कहें तो सब सह लो पर धर्म का त्याग मत करो। मनुष्य मात्र का कल्याण चाहने वाली अपनी हिन्दू संस्कृति नष्ट हो रही है। हिन्दु स्वयं ही अपनी संस्कृति का नाश करेगा तो रक्षा कौन करेगा।
वेद में भी शिखा रखने का विधान कई स्थानों पर मिलता है, देखिये...... ।
*शिखिभ्यः स्वाहा* (अथर्ववेद १९-२२-१५)
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