एक परिचय >> सर्वभुत ह्रदय धर्म सम्राट स्वामी श्री करपात्री जी महाराज :
धर्म सम्राट स्वामी श्री करपात्री जी महाराज का प्राकट्य सन १९०७ ई. को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के ग्राम भटनी में हुआ था ! आपका मूल नाम हर नारायण ओझा था ! आप विवाहित थे तथा जब १७ वर्ष की आयु में घर छोड़कर सन्यास लिया तब तक एक पुत्री भी जन्म ले चुकी थी !
आदि शंकराचार्य जी के बाद पुरे भारत वर्ष में वैदिक सनातन हिन्दू धर्म एवम भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के सार्वभोम सिद्धांतो की स्थापना हेतु जीवन पर्यंत दृढतापूर्वक तत्पर रहे ! विशेष साधना के क्रम में अपने कर कमलो में जितना भोजन आ जाए प्रसन्नता पूर्वक ग्रहण कर लेते थे , इसलिए आपको “करपात्री जी महाराज” के नाम से ख्याति प्राप्त हुई !
अपने अल्प जीवन काल में साहित्य सृजन के माध्यम से आपने जो चेतना जाग्रत की है वह सदैव इतिहास में अविस्मरनीय रहेगी ! पूंजीवाद , समाजवाद और रामराज्य आपके द्वारा लिखे ऐतिहासिक ग्रन्थ है ! इससे प्रेरणा मिलती है की लोकतंत्र में राष्ट्र को समृद्धशाली बनाने हेतु आध्यात्मवाद की आवश्यकता है ! वेदार्थ – पारिजात , भक्ति – सुधा , “मार्क्सवाद और रामराज्य” , विचारपीयुश और रामायण मीमांसा जैसे ग्रन्थ समाज के लिए अमूल्य निधि है ! इन दिव्य ग्रंथो से समाज , राष्ट्र , धर्म और राजनीती की दिशा में सबको उचित मार्गदर्शन प्राप्त होता है !
आपको गौमाता के प्रति अपार श्रद्धा थी ! आपके जीवन में गौहत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगे , इस हेतु १९६६ में आपके नेतृत्व में गौरक्षा अभियान समिति द्वारा सत्याग्रह पूर्वक विशाल आन्दोलन दिल्ली में हुआ , जिसमे १० लाख गौ भक्त उपस्थित थे ! इस पावन कार्य के लिए आप जीवन पर्यंत संघर्षरत थे ! इसके लिए जेल की भी कई कठोरतम यातनाए आपको सहन करना पड़ी , आपकी आँखों में शूल तक चुभोए गए जेल में ऐसा भी सुना है !
परतंत्र भारत में स्वामी जी ने देश की स्वतंत्रता के लिए विशाल वैदिक महायज्ञो के द्वारा लोगो में अद्भुत देशभक्ति का संचार किया ! इसी के फल स्वरुप प्रथम बार “अंग्रेजो भारत छोडो” का नारा पुरी के १४३ वे शंकराचार्य महाभाग स्वामी श्री भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज ने दिया था ! राजनेताओ को सफलता तब मिली जब इन महापुरुषों का त्याग-तपस्या की शक्ति उन्हें प्राप्त हुई !
स्वामी जी की मान्यता थी , धर्म की उपेक्षा..... जीवन , राष्ट्र और समाज के लिए उपयोगी नहीं है इसलिए उन्होंने रामराज्य परिषद् का गठन किया , जिसका उद्येश्य था .....धर्म नियंत्रित पक्षपात विहीन शोषण विर्मुक्त शासन तंत्र की स्थापना ! वे धर्म और राजनीती के महान समन्वयक थे ! धर्म के बिना राजनीती विधवा है एवम राजनीती के बिना धर्म विधुर है , यह करपात्री जी महाराज का कथन है !
स्वामी जी की स्मरण शक्ति 'फोटोग्राफिक' थी, यह इतनी तीव्र थी कि एक बार कोई चीज पढ़ लेने के वर्षों बाद भी बता देते थे कि ये अमुक पुस्तक के अमुक पृष्ठ पर अमुक रुप में लिखा हुआ है।
श्री करपात्री जी महाराज सन १९८१ में माघ शुक्ल चतुर्दशी को केदारघाट { वाराणसी } में परमात्मा में विलीन हुए !!