अंडमान द्वीप भारत का दक्कन का द्वार है इसका रणनीतिक महत्व कितना है इस बात का अंदाज़ा आप इससे लगाएं के इस छोटे से इलाके की रक्षा को भारत नौसेना के विशाल भाग के साथ कई बटालियन थल सेना, सुखोई 30MKI के जत्थे के साथ वायु सेना यहां रखता है.....
अब नेहरू की गलती के चलते वहां सिर्फ 20 किलोमीटर दूर कोको आइलैंड में चीनी बैठे हैं.... लेकिन वो इतिहास की गलती थी मान लेते हैं उन्ह तब चीन को लेकर कोई आसंका न थी .....
लेकिन सोचिए अंडमान के भारतीय सैन्य स्थापना के ठीक बीचों बीच चीन आकर अड्डा जमा ले...... और ऐसा वो लड़ाई झगड़े युद्ध के बगैर कर ले......
आप कहोगे संभव नहीं भारतीय सेना चीन को पैर न रखने देगी....... लेकिन ये बस होते होते रह गया..... अगर ये हो जाता आज चीन अंडमान के ठीक बीचों बीच बैठा होता और हम दक्षिण भारत को चीन के आक्रमण की जद में पाते......!
ये एक और कुकर्म है मोन मोहन सिंह नाम के दल्ले और उसकी मालकिन पतुरिया का....
साल 2012 के अंत में एक खिचड़ी पकाई गयी थी अंडमान में पर्यटन के विकास के नाम पर..
बेहद ही रणनीतिक और ऐतिहासिक महत्व रखने वाले वाईपर आइलैंड जो अंडमान निकोबार द्वीप समूह के ठीक मध्य में है और जहां से पूरे भारतीय सैन्य स्थापना को आराम से निशाने पर लिया जा सकता है को चीनियों को लगभग बेच दिया गया था.....
और तो और तब के रक्षा मंत्री A K एंटोनी ने भी इसे बिना ऑब्जेक्शन हरी झंडी दे दी...
द्वीप हाथ से निकल ही गया था और माइनो मनमोहन का एकाउंट नोटों से भर ही जाता अगर तब के वहाँ के सांसद श्री बिष्णुप्रदा इस मुद्दे पर संसद में अड़ न गए होते....
सांसद के हंगामे के बाद सेना की तरफ से भी ऑब्जेक्शन हुआ और ये डील खत्म हुई....
वाईपर आइलैंड को 3 स्टार होटल बनाने और साथ ही वहां अन्य तरह के निर्माण के नाम पर एक ऐसी मलयेशियाई कंपनी को देने की तैयारी थी जिसे हाल ही में चीनियों ने वहां स्थापित किया था और उसका इस तरह के कार्यों से कोई पूर्व में लेना देना नहीं रहा था...
इसे नाम दिया गया था प्रोजेक्ट याच मरीना
इस प्रोजेक्ट के लिए कोई प्रस्ताव आमंत्रित नहीं किये गए थे बस चुप चाप पूरे काम को अंजाम दिया गया..... खबर तब बनीं जब चीनी मलय कर्मी यहां निरीक्षण को पहुंचने लगे...
भारत की मुख्य भूमि के अखबारों ने इसे कोई जगह नहीं दी जबकि #बिष्णुप्रदा जी ने बाकायदा प्रेस के सामने भी मुद्दा उठाया था लेकिन अंडमान के अखबार अंडमान क्रोनिकल ने इसपर छापा था 2013 में.....
खबर दबा दी गयी थी..... माना के सरकार को ऐसे फैसले लेने का कानूनन अधिकार होता है अतः इसपर #माइनो_मनमोहन_कंपनी को आप अदालत नहीं ले जा सकते...... लेकिन इनकी नियत, नैतिकता और पैसे की भूंख का इससे पता चलता है.....
आपके मेरे जैसा सामान्य आदमी वाईपर आइलैंड के विदेशी हाथों में जाने की गंभीरता समझ लेता है...... क्या तब के रक्षामंत्री, प्रधानमंत्री, पर्यटन मंत्री ये नहीं समझते होंगे
माइनो की तो बात ही छोड़िए.....