चाइना को जमीन पर नहीं लड़ना वो हमारी इकॉनमी पर हमला कर रहा है। जो सेना की बड़ी तैनाती हमने की है उस से सैकड़ो करोडो का हमारा रोज का खर्चा बढ़ गया है। इकॉनमी ठंडी है सरकार की टैक्स से आय आधी हो चुकी है ऐसी स्थिति में पेट्रोल डीजल पर टैक्स बढ़ाने के अलावा कुछ और विकल्प बचता नहीं है।
अगर ये लम्बा चला तो १०० के पार भी पहुचेगा और ये मोदी को दबाव में लाएगा क्योकि सत्ता जाने का भय यहाँ से शुरू हो जाएगा। चाइना चाहता है की बातचीत की टेबल पर हम झुक जाए, और वो सत्ता जाने के भय से ही होगा।
मजबूत इकॉनमी के कारन चाइना की ताकत लड़ाई को लम्बा खीचने की हम से पांच गुना ज्यदा है और येही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है | चाइना सुन जू की बिना लड़ के लड़ाई जीतने की नीति पर चलता है।
इस इकोनोमिक हमले का जवाब देने के लिए कुछ सीमित उपाय ही है। जो इन्फ्रा का काम हमारा चल रहा था उसकी स्पीड बढाए , पांच महीने का काम एक महीने में करे ताकि सामरिक रूप से कमजोर हम बिलकुल भी न हो। सरकार ये करने की कोशिश कर रही है , हेलिकॉप्टरो से मजदूर सामान पहुचाया जा रहा है , दिन रात काम हो रहा है , और काम करने वालो २०% ज्यदा पैसा भी दिया जा रहा है।
हमें ये मान के चलना चाहिए की चाइना इस ड्रामे को १-२ साल खीच सकता है , इसलिए अब ये बहुत जरुरी है की सरकार अपने खर्चे कम करने पर जोर दे , और इसमें राज्यों का सहयोग बहुत जरुरी है। सब फालतू की वोट बैंक वाली स्कीम बंद की जाए।
अगर राज्यों से सहयोग न मिले तो मोदी जी को आर्टिकल 360 का इस्तेमाल करने से बिलकुल नहीं हिचकना चाहिए।