DEVENDRA SINGH BAIS's Album: Wall Photos

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हम सनातन हिन्दूधर्मी बचपन से ही एक बात सुनते आ रहे हैं कि....

हमारी पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी हुई है... और, जब वो (शेषनाग) थोड़ा सा हिलते है... तो, भूकंप आता है..!

और, अंग्रेजी स्कूलों के पढ़े... तथा, हर चीज को वैज्ञानिक नजरिये से देखने वाले आज के बच्चे.... हमारे धर्मग्रंथ की इस बात को हँसी में उड़ा देते हैं...
एवं, वामपंथियों और मलेच्छों के प्रभाव में आकर इसका मजाक उड़ाते हैं..!

दरअसल, हमारी "पृथ्वी और शेषनाग वाली बात" महाभारत में इस प्रकार उल्लेखित है...

"अधॊ महीं गच्छ भुजंगमॊत्तम; सवयं तवैषा विवरं परदास्यति।
इमां धरां धारयता तवया हि मे; महत परियं शेषकृतं भविष्यति।।"

(महाभारत आदिपर्व के आस्तिक उपपर्व के 36 वें अध्याय का श्लोक )

इसमें ही वर्णन मिलता है कि... शेषनाग को ब्रह्मा जी धरती को धारण करने को कहते हैं... और, क्रमशः आगे के श्लोक में शेषनाग जी आदेश के पालन हेतु पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर लेते हैं.

लेकिन इसमे लिखा है कि... शेषनाग को.... हमारी पृथ्वी को... धरती के "भीतर से" धारण करना है... न कि, खुद को बाहर वायुमंडल में स्थित करके पृथ्वी को अपने ऊपर धारण करना है.

इसमें शेषनाग की परिभाषा है:

[ विराम प्रत्ययाभ्यास पूर्वः संस्कार शेषोअन्यः ]

अर्थात.... रुक - रुक कर, विशेष अभ्यास , पूर्व के संस्कार [चरित्र /properties] हैं ...तथा, शेष माइक्रो/सूक्ष्म लहर हैं.

परिभाषा के अनुसार... कुल नाग (दीर्घ तरंग) और सर्प (सूक्ष्म तरंग) की संख्या 1000 हैं.

जिसमें से... शेषनाग {सूक्ष्म /दीर्घ तरंग} या शेषनाग की कुण्डलिनी उर्जा की संख्या 976 हैं... तथा, 24 अन्य नाग या तरंग हैं.

और, यह जानकर आपके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहेगा कि...

आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार भी....
यांत्रिक लक्षणों के आधार पर पृथ्वी को स्थलमण्डल, एस्थेनोस्फीयर , मध्यवर्ती मैंटल , बाह्य क्रोड और आतंरिक क्रोड में बांटा गया है.

एवं, रासायनिक संरचना के आधार पर भूपर्पटी , ऊपरी मैंटल , निचला मैंटल , बाह्य क्रोड और आतंरिक क्रोड में बाँटा जाता है.

समझने वाली बात यह है कि...

पृथ्वी के ऊपर का भाग... भूपर्पटी प्लेटों से बनी है... और, इसके नीचे मैन्टल होता है.... जिसमें मैंटल के इस निचली सीमा पर दाब ~140 GPa पाया जाता है.

और, मैंटल में संवहनीय धाराएँ चलती हैं.... जिनके कारण स्थलमण्डल की प्लेटों में गति होती है.

और, इन गतियों को रोकने के लिए एक बल काम करता है... जिसे, भूचुम्बकत्व कहते है.

इसी भूचुम्बकत्व की वजह से ही... टेक्टोनिक प्लेट जिनसे भूपर्पटी का निर्माण हुआ है... और, वो स्थिर रहती है...तथा, उसमें कहीं भी कोई गति नही होती.

हमारे शास्त्रों के अनुसार....
शेषनाग के हजारो फन हैं...

अर्थात, भूचुम्बकत्व में हजारों मैग्नेटिक वेब्स है.

और... शेषनाग के शरीर अंत में एक हो जाते हैं.... मतलब एक पूंछ है...

मतलब कि... भूचुम्बकत्व की उत्पत्ति का केंद्र एक ही है.

इसी तरह ये कहना कि... शेषनाग ने पृथ्वी को अपने फन पे टिका रखा है का मतलब हुआ कि.... भूचुम्बकत्व की वजह से ही पृथ्वी टिकी हुई है.

और, शास्त्रों का ये कहना कि...

शेषनाग के हिलने से भूकंप आता है से तात्पर्य है कि.... भूचुम्बकत्व के बिगड़ने (हिलने) से भूकंप आता है।

ध्यान रहे कि.... हमारे वैदिक ग्रंथो में इसी ""भूचुम्बकत्व को ही शेषनाग कहा गया"" है.

जानने लायक बात यह है कि... क्रोड का विस्तार मैंटल के नीचे है अर्थात 2890 किमी से लेकर पृथ्वी के केन्द्र तक.

किन्तु यह भी दो परतों में विभक्त है - बाह्य कोर और आतंरिक कोर.

जहाँ, बाह्य कोर तरल अवस्था में पाया जाता है... क्योंकि यह द्वितीयक भूकंपीय तरंगों (एस-तरंगों) को सोख लेता है.

इसीलिए, हमारे धर्मग्रंथों का यह कहना कि.... पृथ्वी शेषनाग के फन पे स्थित है... मात्र कल्पना नहीं बल्कि एक सत्य है कि... पृथ्वी शेषनाग (भू-चुम्बकत्व) की वजह से ही टिकी हुई है या शेषनाग के फन पे स्थित है.... और, उनके हिलने से ही भूकंप आते हैं.

अब चूंकि, इतने गूढ़ और वैज्ञानिक रहस्य सबको एक एक समझाना बेहद दुष्कर कार्य था... इसीलिए, हमारे पूर्वजों ने इसे एक कहानी के रूप में पिरो कर हमारे धर्मग्रंथों में संरक्षित कर दिया...!

और, विडंबना देखें कि... आज हम अपने पूर्वजों द्वारा संचित ज्ञान को समझ कर उसपर गर्व करने की जगह उसकी खिल्ली उड़ाने को अपनी शान एवं आधुनिकता समझते हैं.

जय महाकाल...!!!