आप तुर्की या ईरान या मिस्र में कहीं चले जाइए , मजारें मिल जाएँगीं ।
मज़ारों के बाहर , किस क्वालिटी की चद्दर चढ़ाना है , कितने बड़ी माला हो या कितनी बड़ी आपकी टोकरी हो उस पर ज़ोर रहता है ।
जितनी बड़ी टोकरी , मुर्दा , उतना खुश ।
अब आपको दूत पूत के पहले के सनातन धर्म के स्वरूप को समझा देता हूँ ।
स्वंयम आदि शंकर ने कहा है की जिस देवता को जो भी चढ़ाने का विधान हो वह नंगे पैर ( धरती से संपर्क पैर का बना रहे ) जाकर , उस देवता को अर्पित करे ।
पर यह कहीं नहीं कहा की बहुत बड़ी वाली थाली में भरकर , बग़ल वाले को दिखाकर ले जाना की तुम बहुत बड़े वाले भक्त हो ।
अब आप आज के भारत में आ जाइए । भौतिक ख़तना नहीं हुआ पर मानसिक ख़तना तो बहुतों का हो ही चुका है क्योंकि हम में से बहुत से लोग कई बार मंदिर न जाकर यदा कदा जाएँगे और सबसे बड़ी वाली थाली ख़रीदेंगे ।
बड़ी वाली थाली से समस्या नहीं है पर उसके दिखावे से है । हम मंदिर अपने अंत: करण को शुद्ध करने के लिए जाते हैं । बड़ी वाली थाली नहीं ख़रीद पाए उसकी ग्लानि भरने के लिए नहीं ।जितनी आपकी श्रृद्धा हो उतना करिए , बगल वाले की थाली मत देखिए ।
अपने धर्म का मूल समझिए , उनका ही देखकर नकलची बंदर बनना है तो बनते रहिए ।