तेरा रूठना मनाना यूँही चलता रहे |
तुझे साथ रखकर उम्र यूँ ढ़लता रहे |
अति संवेदनशील कवि हृदया खूबसूरत दिलों की मल्लिका श्रीमती Meenakshi Singh मीनाक्षी सिंह के काव्य संग्रह #बस_तुम्हारे_लिए की दूसरी कविता #अनकही_सी_वो_डोर पढ़नें का आज सौभाग्य प्राप्त हुआ |जिसमें कवयित्री नें अपनें बालसखा के साथ बचपन की यादों को अपनी खूबसूरत लेखनी से मनभावन मूर्त रूप दिया है |कैसे इनका बाल सखा जब रूठकर जाता है तो वो उसे मनाती हैं और इनकी चिरौरी देखकर वो चिढ़ाकर भागता है फिर जब ये चिढ़कर लंगड़ी फँसा कर उसे गिराती थी और जब वो रोता था तब वो फिर उसे चुप कराती थी |सच में कवयित्री के इस कविता नें बचपन की यादों को ताजा कर दिया |
बचपन हीं तो है जो सबकी यादों के पिटारे में स्वर्णिम चमक बनाए रखता है |हम कितना भी अभावग्रस्त परिवार में जन्म क्यों न लें पर बचपना शहंशाह के जीवन से भी हमेशा खूबसूरत होती है |जब वो बालसखा बचपन की दहलीज पार कर जवानी में भी साथ बना रहता है तो जिंदगी सबसे खूबसूरत हो जाती है और बचपना कायम रहता है ऐसा लगता है कि कुछ नहीं बदला और हम साथ साथ उन यादों को यादकर हँसते मुस्कुराते है एक अजब सी गुदगुदाहट दिलों दिमाग पर हावी रहती है जब हम आज की भागदौड़ को भूलकर उन यादों को जीते हैं |एक दूसरे से दूर रहनें के बावजूद एक अनकही अनदेखी सी कड़ी हमें हमेशा एक दूसरे से जोड़े रखती है |
बहुत बहुत धन्यवाद कवयित्री का जिनकी रचना नें मुझे फिर से बचपन की उन हसीन वादियों में पहूँचाया |