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ज्ञान मुद्रा की विधि


संस्कृत में ज्ञान का मतलब होता हैं - बुद्धिमत्ता। ज्ञान मुद्रा का नियमित अभ्यास करने से अभ्यासक की बुद्धिमत्ता में वृद्धि होती है और इसीलिए इसे अंग्रजी में मुद्रा ऑफ़ नॉलेज  भी कहा जाता हैं। ध्यान करते समय और प्राणायाम करते समय योग से अधिक लाभ मिलने हेतु इस मुद्रा का अभ्यास किया जाता हैं।

ज्ञान मुद्रा की विधि

सबसे पहले एक स्वच्छ और समतल जगह पर एक दरी / चटाई या योगा मैट बिछा दे।

अब सुखासन, पद्मासन या वज्रासन में बैठ जाये।

ज्ञानमुद्रा हम खड़े रहकर ताड़ासन में या खुर्ची पर बैठ कर भी कर सकते हैं। ज्ञान मुद्रा का अधिक लाभ मिलने हेतु इसे सुखासन या पद्मासन में बैठ कर करना चाहिए।

अपने हाथों को घुटनों पर रखे और हाथों की हथेली ऊपर की ओर आकाश की तरफ होनी चाहिए।

अब तर्जनी उंगली (इंडेक्स फिंगर) को गोलाकार मोडकर अंगूठे (थम्ब) के अग्रभाग को स्पर्श करना हैं।

अन्य तीनों उंगलियों को सीधा रखना हैं।

यह ज्ञान मुद्रा दोनों हाथो से करना हैं।

आँखे बंद कर नियमित श्वसन करना हैं।

आप चाहे तो साथ में ॐ का उच्चारण भी कर सकते हैं। मन से सारे विचार निकालकर मन को केवल ॐ पर केन्द्रित करना हैं।

दिनभर में कम से कम 30 मिनिट से 45 मिनिट करने पर लाभ मिलता हैं। एक साथ इतना समय न मिलने पर आप 10-10 मिनिट के 3 टुकड़ों में इसका अभ्यास कर सकते हैं।

ऐसे तो इस मुद्रा का अभ्यास हम किसी भी समय कर सकते हैं पर सुबह के समय और शाम के समय यह मुद्रा का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता हैं।

ज्ञान मुद्रा के लाभ

बुद्धिमत्ता और स्मरणशक्ति में वृद्धि होती हैं।

एकाग्रता बढती हैं।

शरीर की रोग प्रतिकार शक्ति बढती हैं।

ज्ञान मुद्रा का नियमित अभ्यास करने से सारे मानसिक विकार जैसे क्रोध, भय, शोक, ईर्ष्या इत्यादि से छुटकारा मिलता हैं।

ध्यान / मेडीटेसन करने के लिए उपयुक्त मुद्रा हैं।

आत्मज्ञान की प्राप्ति होती हैं।

मन को शांति प्राप्त होती हैं।

अनिद्रा, सिरदर्द और माइग्रेन से पीड़ित लोगो के लिए उपयोगी मुद्रा हैं।

ज्ञान मुद्रा से वायु महाभूत बढ़ता है इसलिए इसे वायु वर्धक मुद्रा भी कहा जाता हैं। वात प्रवुत्ति वाले लोगो ने इसका अभ्यास मर्यादित प्रमाण में करना चाहिए।