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. ॐ श्री परमात्मने नमः

श्री गणेशाय नम:

राधे कृष्ण

अभी तक श्रीकृष्ण ने बताया कि यज्ञ परमश्रेय देता है और उसकी रचना महापुरुष द्वारा होती है | किन्तु वे महापुरुष प्रजा की रचना में क्यों प्रवृत्त होते हैं? इस पर कहते हैं--

अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः॥
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्‌।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्‌॥
( श्रीमद्भागवत गीता अ० ३- १४,१५ )

अनुवाद-
सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति वृष्टि से होती है, वृष्टि यज्ञ से होती है और यज्ञ विहित कर्मों से उत्पन्न होने वाला है। कर्मसमुदाय को तू वेद से उत्पन्न और वेद को अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ जान। इससे सिद्ध होता है कि सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सदा ही यज्ञ में प्रतिष्ठित है |

व्याख्या-
'अन्नं ब्रह्मेति व्यजायत् |' ( तैत्तरीयोपनिषद्, भृगुवल्ली २ ) अन्न परमात्मा ही है | उस ब्रह्मपियूष को ही उद्देश्य बनकर प्राणी यज्ञ की ओर अग्रसर होता है | अन्न की उत्पत्ति वृष्टि से होती है | बादलों से होने वाली वर्षा नहीं अपितु कृपावृष्टि | पूर्वसंचित यज्ञ-कर्म ही इस जन्म में, जहाँ से साधन छूटा था, वहीं से इष्टकृपा के रूप में बरस पड़ता है | आज की आराधना कल की कृपा के रूप में मिलेगी | इसीलिये वृष्टि यज्ञ से होती है | स्वाहा बोलने और तिल-जौ जलाने से ही वृष्टि होती तो विश्व की अधिकांश मरुभूमि ऊसर क्यों रहती, उर्वरा बन जातीं | यहाँ कृपावृष्टि यज्ञ की देन है | यह यज्ञ कर्मो से ही उतपन्न होने वाला है | कर्म से यज्ञ पूर्ण होता है |

इस कर्म को वेद से उतपन्न हुआ जान | वेद ब्रह्मस्थित महापुरुषों की वाणी है | जो तत्व विदित नहीं हैं, उनकी प्रत्यक्ष अनुभूति का नाम वेद है, न कि कुछ श्लोक संग्रह | वेद अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ जान | कहा तो महात्माओं ने; किन्तु वे परमात्मा के साथ तद्रूप हो चुके हैं, उनके माध्यम से अविनाशी परमात्मा ही बोलता है इस लिए वेद को अपौरुषेय कहा जाता है | महापुरुष वेद कहाँ से पा गये? तो वेद अविनाशी परमात्मा से उत्पन्न हुआ है | वे महापुरुष उसके तद्रूप हैं, वे मात्र यन्त्र हैं इस प्रकार वही उनके माध्यम से बोलता है | क्योंकि यज्ञ के द्वारा ही मन के निरोधकाल में वह विदित होता है, इससे सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा सर्वदा यज्ञ में ही प्रतिष्ठित है | यज्ञ ही उसे पाने का एकमात्र उपाय है |

हरी ॐ तत्सत् हरि:।

ॐ गुं गुरुवे नम:

राधे राधे राधे, बरसाने वाली राधे, तेरी सदा हि जय हो माते |

शुभ हो दिन रात सभी के।