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. ॐ श्री परमात्मने नमः

श्री गणेशाय नम:

राधे कृष्ण

अभी श्रीकृष्ण ने कहा था कि प्राप्ति के पश्चात कर्म करने से न कोई लाभ है और न छोड़ने से कोई हानि ही है, फिरभी लोक संग्रह, लोकहित व्यवस्था के लिए वे भली प्रकार नियत कर्म का ही आचरण करते हैं |

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥
( श्रीमद्भागवत गीता अ० ३- २१ )

हिन्दी अनुवाद -
श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करता है, अन्य पुरुष भी वैसा-वैसा ही आचरण करते हैं। वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त मनुष्य-समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है (यहाँ क्रिया में एकवचन है, परन्तु 'लोक' शब्द समुदायवाचक होने से भाषा में बहुवचन की क्रिया लिखी गई है।)

व्याख्या-
श्रेष्ठ व्यक्ति का जो-जो आचरण होता है, अन्य भी उसका आचरण करते हैं | वह जो कुछ कर देता है, संसार उसका अनुसरण करता है |

पहले श्रीकृष्ण ने स्वरूप में स्थित, आत्मतृप्त की रहनी पर प्रकाश डाला कि उसके द्वारा कर्म करने से न कोई लाभ है और न छोड़ने से कोई हानि, फिर भी जनकादि कर्म में भली भाँति बरतते थे |

हरी ॐ तत्सत् हरि:।

राधे राधे राधे, बरसाने वाली राधे, तेरी सदा हि जय हो माते।

शुभ हो दिन रात सभी के।