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. ॐ श्री परमात्मने नमः

श्री गणेशाय नम:

राधे कृष्ण

यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥

उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम्‌।
संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः॥

( श्रीमद्भागवत गीता अ० ३-२३,२४ )

हिन्दी अनुवाद -
क्योंकि हे पार्थ! यदि कदाचित्‌ मैं सावधान होकर कर्मों में न बरतूँ तो बड़ी हानि हो जाए क्योंकि मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं |

इसलिए यदि मैं कर्म न करूँ तो ये सब मनुष्य नष्ट-भ्रष्ट हो जाएँ और मैं संकरता का करने वाला होऊँ तथा इस समस्त प्रजा को नष्ट करने वाला बनूँ |

व्याख्या-
क्योंकि मैं सावधान हो कर कदाचित् कर्म में न बरतूँ तो मनुष्य मेरे बर्ताव के अनुसार बरतने लग जायेंगे | तो क्या आपका अनुकरण भी बुरा है? श्रीकृष्ण कहते हैं- हाँ!

यदि मै सावधान हो कर कर्म न करूँ तो यह सब लोक भ्रष्ट हो जायँ और मैं 'संकरस्य'- वर्णसंकर का करने वाला होऊँ तथा इस सारी प्रजा का हनन करने वाला, मारने वाला बनूँ |

स्वरूप में स्थित महापुरुष सतर्क रह कर यदि आराधना-क्रम में न लगे रहें तो समाज उनकी नकल करके भ्रष्ट हो जाएगा | महापुरुष ने तो आराधना पूर्ण करके परम नैष्कर्म्य की स्थिति को पाया है | वे न करें तो उनके लिए कोई हानि नहीं है; किन्तु समाज ने तो अभी आराधना आरम्भ ही नहीं की है | पीछे वालों के मार्गदर्शन के लिये ही महापुरुष कर्म करते हैं, मैं भी करता हूँ अर्थात् श्रीकृष्ण एक महापुरुष थे, न कि बैकुण्ठ से आये हुये कोई विशेष भगवान | उन्होंने कहा कि-- महापुरुष लोकसंग्रह के लिये कर्म करता है, मेरे गुरू भी करते हैं | यदि न करें तो लोगों का पतन हो जाय, सभी कर्म छोड़ बैठेगे | शेष अगले सत्र में अगले सत्र में इसी पर शेष व्याख्या |

हरी ॐ तत्सत् हरि:।

ॐ गुं गुरुवे नम:

राधे राधे राधे, बरसाने वाली राधे, तेरी सदा हि जय हो |

शुभ हो दिन रात सभी के।