कुमार विनय सिंह's Album: Wall Photos

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भारत के पांच बड़े संत जो
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! किसी भी शङ्कराचार्य के विषय में कुछ भी कहने के लिए मैं स्वयं को अतितुच्छ समझता हूँ। फिर भी प्रभु श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए ५ अगस्त २०२० को होने जा रहे शिलान्यास-भूमि पूजन कार्यक्रम को अशुभ मुहूर्त में होना बताकर एक बार पुनः इन्होंने विवाद और विघ्न डालने का असफल प्रयास किया है। जबकि काशी विद्वत परिषद, काशी व देश के मान्य विद्वत वरेण्य ज्योतिषाचार्यों ने ही देश के विभिन्न प्रामाणिक पञ्चाङ्गों व शास्त्रोक्त प्रमाणों के आधार पर इस मुहूर्त का शोधन किया है। काशी के ही मूर्धन्य विद्वत वरेण्य वैदिक ब्राह्मण इस कार्यक्रम में साङ्गोपाङ्ग विधिवत पूजन-अर्चन कराने आ रहे हैं। रामानंदाचार्य व रामानुजाचार्य परम्परा के विशिष्टतम पूज्य आचार्य संत चरण कार्यक्रम में सम्मिलित भी होंगे। समुद्रों का जल, सभी तीर्थों व पवित्र मंदिरों की रज, सभी नदियों का जल, चांदी की पञ्च शिलाओं जैसी वैदिक शास्त्रोक्त परम्पराओं व रामार्चन विधान सहित ३ अगस्त से आरंभ होने वाला त्रि-दिवसीय यह पवित्र महाकार्यक्रम सुसम्पन्न होगा। अब इन्हें नहीं बुलाया तो विरोध करना बस इसीकारण शङ्कराचार्य स्वरूपानंद जी के विषय में कुछ बोलने का दुस्साहस कर रहा हूँ।

मैंने स्वरूपानंद जी को सदैव ही श्रीराम मंदिर आंदोलन के विपरीत ही बोलते देखा है। यहां तक कि वह सदैव हिन्दू हितों के भी विपरीत खड़े होते हैं। हिन्दुओं के हितों में होने वाले किसी भी कार्य का सबसे पहला विरोध स्वामी स्वरूपानंद जी की ओर से ही होता है। शङ्कराचार्य स्वरूपानंद जी की कांग्रेस अध्यक्षा एन्टोनिया मायनो और मिशनरियों से विशेष नजदीकी जगजाहिर है।

स्वरूपानंद जी सनातन संत परम्परा के शङ्कराचार्य जैसे सर्वोच्च आसन पर बैठकर भी किसी तुच्छ विधर्मी पादरी से आशीर्वाद प्राप्त कर लेते हैं और हिंदुओं का मस्तक झुका देते हैं।

ये वही स्वरूपानंद जी हैं जिन्होंने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्रन्यास के गठन को अदालत में चुनौती देने का फैसला भी कर लिया था। एकबार तो इन्होंने विवादित भूमि पर अस्पताल बनाने का प्रस्ताव भी स्वमर्जी से प्रस्तावित कर दिया था।

हिन्दुओं की धार्मिक सत्ता की एकजुटता में सबसे बड़े अवरोधक स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ही रहे हैं, जिन्होंने बद्रीकाश्रम की ज्योतिष पीठ पर अवैध और गैरकानूनी तरीके से कब्जा करने की कोशिश भी की थी। शङ्कराचार्य पीठों को भी अदालती लड़ाई में घसीटा। स्वयं आदिगुरु शङ्कराचार्य जी के मूल सिद्धांतों को भी पदों के लालच में ताक पर रख दिया। जिसके कारण आज तक सभी पीठों के पूज्य शङ्कराचार्य महाभाग इन स्वरूपानंद जी के द्वारिका के शङ्कराचार्य बनने के बाद कभी भी एकजुट नहीं हो पाये। यदि सभी पीठों के शङ्कराचार्य धर्म से सम्बन्धित किसी भी प्रश्न पर एकमत से कोई निर्णय दे दें तो हमें पूर्ण विश्वास है कि कोई भी राजनीतिक सत्ता उस निर्णय के विरुद्ध जाने की हिम्मत तक नहीं कर सकती है किन्तु हिन्दुओं की धार्मिक सत्ता राजनीति की पिछलग्गू बनी रहे, यह षड्यंत्र वैटिकन सिटी के इशारे पर स्वामी स्वरूपानंद जी प्रारंभ से ही करते रहे हैं।

उड़ीसा में ईसाई मिशनरियों के द्वारा कराए जा रहे धर्मांतरण को रोक देने वाले संत स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती जी की कंधमाल में हत्या कर दी गई, तब ये चुप रहे।

दक्षिण भारत में धर्मांतरण का धन्धा बंद करा देने वाले काँची पीठ के शङ्कराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी की सोनिया गाँधी के इशारे पर मूल दीपावली के दिन गिरफ्तारी हुई, तब ये चुप रहे। उस समय ये केवल चुप ही नहीं रहे बल्कि इन्होंने काँची के पूज्य शङ्कराचार्य जी को सार्वजनिक रूप से कुत्ता तक कहा।

ये वही स्वरूपानंद जी हैं जिन्होंने कहा था कि "नरेंद्र दामोदर दास मोदी कभी भी भारत देश के प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे" .....
अब ये शङ्कराचार्य हैं तो निश्चित ही इन्होंने कुछ शुभ मुहूर्त, ज्योतिष गणना या दैवीय शक्ति के आधार पर ही ऐसी भविष्यवाणी की होगी! किन्तु हास्यास्पद ये कि जब नरेंद्र मोदी पूर्ण बहुमत से देश के प्रधानमंत्री बन गए तब जब एक पत्रकार ने इनसे ये सवाल पूंछा तो इन्होंने झल्लाकर क्रोध में उस पत्रकार को तमाचा मारकर भगा दिया। अब क्या यह महानुभाव शङ्कराचार्य जैसे सर्वोच्च धार्मिक पद पर आसीन रहने के योग्य हैं❓इस तरह का छिछोरापन सड़क छाप व्यवहार क्या शङ्कराचार्य जैसे पद पर बैठे महानुभाव को शोभा देता है❓

यह वही स्वरूपानंद जी हैं जो CAA के विरोध में भी खुलकर उतर आए थे। शेष आगे आप स्वयं सभी विवेकशील हैं, निर्णय लीजिए कि इनके ऐसे वक्तव्यों, आचरण व कृत्यों को कितना महत्त्व देना है या नहीं...............

पुनश्च धृष्टता के लिए सभी सनातनधर्मावलम्बियों से क्षमाप्रार्थी हूँ। मेरा उद्देश्य किसी की भी भावनाओं व श्रृद्धा को ठेस पहुंचाना कदापि नहीं है। प्रभु श्रीराम सब मङ्गल ही करेंगे। बिना प्रभु कृपा व इच्छा के पत्ता भी नहीं हिलता है फिर ये तो स्वयं राम का काज है सो उनकी बिना सदिच्छा व कृपा के संभव ही नहीं है। अस्तु निश्चित ही सब हरि इच्छा से ही संभव हुआ है और आगे भी होगा। अतः हम सभी सनातनधर्मावलम्बियों को इसप्रकार के वितण्डावाद से दूर रहना है। इस पवित्र कार्यक्रम का सीधा प्रसारण दिल्ली दूरदर्शन पर होगा सो सब अपने-अपने घरों में पूर्ण आनंद और हर्षोल्लासपूर्वक दर्शन लाभ के साथ राम काज में मानसिक रूप से सहभागी बनकर पुण्य लाभ लें।

विनम्र अनुरोध -- ५ अगस्त को अपने-अपने घरों में व द्वारों पर प्रसन्न मनोभाव के साथ अधिकाधिक "दीप प्रज्ज्वलित" अवश्य करें।

"""""जय श्री सीताराम"""""