जगबीर सिंह's Album: Wall Photos

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अपने 120 जवानों को लेकर चीन के 1800 सैनिकों की पूरी बटालियन को खत्म करने वाला भारत का वीरपुत्र मेजर शैतान सिंह भाटी।

मेजर शैतान सिंह भाटी का जन्म 1 दिसंबर 1924 को राजस्थान के जोधपुर में एक सैन्य परिवार में हुआ था। सेना के एक अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह भाटी के पुत्र, मेजर शैतान सिंह को 01 अगस्त 1949 को कुमाऊं रेजिमेंट में नियुक्त किया गया था। 1962 के भारत-चीन युद्ध ने मेजर शैतान सिंह को लद्दाख के चुशुल सेक्टर में अपनी वीरता दिखाने का अवसर दिया। चुशूल सेक्टर जो सीमा से 15 मील की दूरी पर था, चीन के साथ अक्साई चिन के सीमा विवाद के संदर्भ में बहुत महत्व रखता है। युद्ध के दौरान मेजर शैतान सिंह की इकाई को उस सेक्टर में रेजांग ला पोस्ट पर 17000 फीट की ऊंचाई पर तैनात किया गया था।

हमारे इतिहास में गिने-चुने लोग हैं जिन्हें #परमवीर_चक्र से नवाजा गया है लेकिन भारत मां के इन सपूतों को आज भी उतने लोग नहीं जानते जिसके वो हकदार है। ऐसे ही वीर सपूतों में एक नाम है शैतान सिंह का।

मेजर शैतान सिंह की बहादुरी के किस्से आज भी किसी के खून में उबाल ला सकते हैं और हमारे देश के युवाओं में देश प्रेम का जज्बा भर सकते हैं। 18 नवंबर 1962 की वो सुबह कोई नहीं भूल सकता। जब भारतीय सेना के महज 120 जवानों ने 1200 सैनिकों को लद्दाख के चुशूल सेक्टर में पस्त कर दिया था, जिसकी अगुवाई कर रहे थे 13वीं कुमायूं बटालियन की 'सी' कंपनी के मेजर शैतान सिंह।

18 नवंबर 1962. सुबह लद्दाख का मौसम बदल सा गया। हाड़ गला देनी वाली तूफानी ओर बर्फ़ीली हवाएँ सायं सायं कर के चल रही थी साथ ही पूरा इलाका धुंधला सा हो गया था लेकिन कुछ ही देर बाद इन सब को चीरता हुआ सूरज जमीनी सतह से लगभग 17,000 फीट की ऊंचाई पर चढ़ गया था। लेकिन हवाएं अभी भी अपनी गति ओर ठंड को बनाये हुए थी। इन सब विषम परिस्थितियों के बावजूद भारत के जाबाज सैनिक मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में सीमा पर बेहद सतर्कता के साथ तैनात थे। चीन के साथ युद्ध का बिगुल बज चुका था और 13 कुमाऊं बटालियन की 'सी' कंपनी चुशुल सेक्टर के अंदर तैनात की गई थी।
बटालियन के अंदर 120 जवान थे, एक ऐसी बटालियन जिसे पहले ऐसी विषम परिस्थितियों में युद्ध का कोई अभ्यास नही ना ही इस हाड़ गला देने वाली ठंड से बचने के पर्याप्त साजो सामान थे और ऊपर से सिर्फ चार सौ राउण्ड गोलियां ओर एक हजार ग्रेनेड दिए गए थे।बन्दूकें भी ऐसा थी जो द्वितीय विश्व मे बेकार ओर पुरानी हो चुकी थी ओर एक बार में सिर्फ एक ही राउंड फायर किया जा सकता था।उधर चीन की सेना के ट्रूप में लगभग 1200 सैनिक जो कि हथियारों लेस ओर बर्फ़ीली ओर पहाड़ी परिस्थितियों को झेलने वाले हर साजोसामान के साथ भारतीय बटालियन के सामने तैनात थे।

सुबह के धुंधलके में #रेजांग_ला (रेजांग दर्रा) पर चीन की ओर से एक चाल चली गयी मेजर शैतान ने देखा कि बहुत सारी रोशनी के गोले उनकी ओर आ रहे है मेजर ने समझा दुश्मनों ने हमला कर दिया है अतः कप्तान मेजर शैतान सिंह ने अपने साथियो को गोली चलाने का आदेश दे दिया। कुछ समय बाद उन्हें पता चला कि ये लाइटसैबर वस्तुतः लालटेन हैं। उन्हें कई याकों के गले में लटकाकर चीनी सेना ने भारत की ओर भेजा। उसके बाद अचानक अक्साई चीन को लेकर चीन ने भारत पर हमला कर दिया। चीनी सेना बिल्कुल तैयार थी। उसे ठंड के अंदर लड़ने की आदत थी और इसके अलावा पर्याप्त हथियार भी थे। जबकि भारतीय सैनिकों के पास केवल तीन-चार सौ राउंड गोलियां और एक हजार ग्रेनेड थे। बंदूकें भी ऐसी थीं जो एक समय में एक फायर ही करने में सक्षम थीं जिन्हें दूसरे वैश्विक युद्ध के बाद बेकार घोषित कर दिया गया था। चीनी इस बात से भली भांति अवगत थे। इसीलिए उसने टुकड़ी को जंगल में ले जाने के लिए यह चाल चली। चीनी सैनिकों ने आगे बढ़ना शुरू कर दिया।मेजर शैतान सिंह ने वायरलेस पर वरिष्ठ अधिकारियों से बात की। सहायता के लिए पूछे जाने पर वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि अभी मदद नहीं पहुंच सकती। आप पोस्ट छोड़ कर पीछे हट जाएं और अपने ओर अपने जवानों के प्राण बचायें ।

पीछे हटने का मतलब हार मान लेना ओर मेजर शैतान सिंह को देश के लिए प्राण त्यागना मंजूर था परंतु हार मान कर पीछे कदम हटाना कदापि मंजूर नही था।इसलिए अपने वरिष्ठ अधिकारी के आदेश की अनुपालन नहीं करते हुऐ उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ मंत्रणा की।

स्थिति की जानकारी देते हुए मेजर शैतान सिंह ने कहा मेरे वीर जवानों मृत्यु तो एक दिन सभी को आनी है मुझे भी तुम्हे भी ओर जो हमारे साथ नही है उनको भी लेकिन यह हमारा सौभाग्य है कि अपने वतन की आबरू बचाते हुए हंसते हंसते मौत को गले लगायेंगे, जब तक हमारे शरीर मे जान है हम लड़ेंगे हम मरेंगे लेकिन दुश्मन के नापाक कदम वतन की सरहद में पड़ने नही देंगे। याद रखना वीरों की तरह मरेंगे तो आने वाली सौ पुस्ते हमें याद करेंगी ओर हमारा जीवन धन्य हो जायेगे। अगर गोली ही खानी है तो सीने पर ओर मरना ही है तो एक एक दस दस को मारकर मरेंगे यह याद रखना। जवानों युद्ध हमेशा हौसलों से लड़े जाते है ना कि हथियारों से भले ही हमारे पास गोला बारूद कम है भले ही दुश्मन हमसे संख्या में ज्यादा हो लेकिन याद रखना हमारी वतन परस्ती ओर हमारा हौसला दुश्मन के दांत खट्टे करने के लिए काफी है। अब भी अगर किसी को पीछे हटना चाहे तो वो हट सकता है, मगर हम लड़ेंगे।

मेजर सहित पूरी बटालियन जानती थी कि चीनियों से युद्ध करना इतना आसान नहीं है लेकिन कहते हैं कि जो विषम परिस्थितियों में लड़े वो ही योद्धा कहलाता है। पूरी बटालियन में मेजर शैतान सिंह के कहे एक एक शब्द ने जोश भर दिया सब के सब मेजर शैतान सिंह के साथ आखिरी सांस तक लड़ने को तैयार खड़े थे। उधर चीनी सेना को भारतीये सेना के हथियारों वाली कमजोरी पता थी। इसलिए अचानक उन्होंने तोपों और मोर्टारों ने हमला करना शुरू कर दिया।

1200 चीनी सैनिकों से ये 120 जवान लड़ते रहे। दस-दस चीनी सैनिकों से एक-एक जवान ने लोहा लिया। इन्हीं के लिए कवि #प्रदीप ने लिखा:-

”दस-दस को एक ने मारा, फिर गिर गए होश गंवा के। जब अंत समय आया तो, कह गए कि हम चलते हैं।
खुश रहना देश के प्यारों, अब हम तो सफ़र करते हैं।।’‘

ज्यादातर जवान शहीद हो गए और बहुत से जवान बुरी तरह घायल हो गए। मेजर खून से सने हुए थे। दो सैनिक घायल मेजर शैतान सिंह को एक बड़ी बर्फीली चट्टान के पीछे ले गए। मेडिकल हेल्प वहां मौजूद नहीं थी। इसके लिए बर्फीली पहाड़ियों से नीचे उतरना पड़ता था। मेजर से सैनिकों ने मेडिकल हेल्प लेने की बात की लेकिन उन्होंने मना कर दिया।

उन्होंने सैनिकों को आदेश दिया कि एक मशीन गन लेकर आओ। मशीन गन आ गई। उन्होंने कहा कि गन के ट्रिगर को रस्सी से मेरे एक पैर से बांध दो। उनके दोनों हाथ लथपथ थे। उन्होंने रस्सी की मदद से अपने एक पैर से फायरिंग करनी शुरू कर दी। उन्होंने दोनों जवानों से कहा कि सीनियर अफसरों से फिर से संपर्क करो। दोनों सैनिक वहां से चले गए।

पता नहीं कितनी देर तक वो चीनी सैनिकों से लड़ते रहे और कब बर्फ ने उन्हें अपने आगोश में ले लिया। उनके साथ उनकी टुकड़ी के 114 जवानों के शव भी मिले। बाकी लोगों को चीन ने बंदी बना लिया था। हालांकि भारत युद्ध हार गया था लेकिन बाद में पता चला कि चीन की सेना का सबसे ज्यादा नुकसान रेजांग ला पर ही हुआ था। चीन के करीब 1800 सैनिक इस जगह मारे गए थे। ये एकमात्र जगह थी जहां भारतीय सेना ने चीनी सेना को घुसने नहीं दिया था।

बाद में मेजर शैतान सिंह का उनके होमटाउन जोधपुर में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। इसके बाद उन्हें देश का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

नमन है भारत के ऐसे वीरपुत्रों को जिन्होंने सदा सर्वदा अपने प्राणों से बढ़कर अपने वतन की आबरू को समझा।
#वन्देमातरम्

देवानन्द मिश्र