विश्वगुरु बनने की राह पर आगे बढ़ने का रास्ता शिक्षा विभाग से ही होकर जाता है। अब जब नियम ही ऐसे हैं कि जहां तक कटऑफ जाये वहां तक का अभ्यर्थी चयनित होकर सरकारी स्कूल का अध्यापक बने तो फिर चयन परीक्षा आदि कराने का ढोंग करके लाखों अभ्यर्थियों से करोड़ों रुपये परीक्षा शुल्क कमाने का धंधा क्यों चलाया जा रहा है ? शिक्षा विभाग के बाबू और अफसर राह चलते लोगों को पकड़ कर क्यों नही अध्यापक की टोपी पहना देते हैं ? कोटा भी पूरा और भर्ती भी पूरी। शिक्षा जाये भाड़ में।
मोदी वाला विकास कि कानपुर वाला विकास-विकास तो विकास है। होना ही चाहिये।