विचार मुकेश भाई के है परन्तु हम भी यही भाव रखते है ...
मैं इस तस्वीर को प्रिंट करवाकर फ्रेम सहित अपने पूजा स्थल में लगाऊंगा....
ये मुझे आजीवन अपने धर्म स्थापना तिथि की याद दिलाएगी और मैं अपनी आने वाली पीढ़ियों को गर्व से कह सकूंगा कि मैं उस स्वर्णिम युग का जीवंत साक्षी रहा हूँ जब हिमालय की कन्दराओं से आधुनिक वेशभूषा पहने आया एक राजनीतिक सन्यासी घोर विपदाओं को पार करके हिन्दुओ के खोए हुए पौरुष को जगाने के लिए भगवान श्री राम के जन्मस्थान के राजनीतिक व धार्मिक विवाद के सैकड़ों साल पुराने विधर्मियों के षड्यंत्रों को पराजित करने के बाद अपने कर कमलों द्वारा धर्म स्थापित करने के लिए राजा बनने के बाद पहली बार अयोध्या नगरी में गया और अपने हाथों से चांदी की "आधा मण "यानी कि22.600किलोग्राम की ईंट पर तिथि, समय व कालखंड अंकित करवाकर नींव रखने के लिए गया....
मैं अपने स्वर्णिम युग के अनुभागी के तौर पर ये तस्वीर अपने पूजा स्थल पर लगाऊंगा....
ताकि मेरी आने वाली पीढियां ये जान व समझ सके कि उनके पुरखे यानी कि हम वर्तमान के हिन्दू धर्म स्थापना के कालखंड में धर्म के साथ खड़े थे और यथाशक्ति संघर्ष कर रहे थे तथा अपने हिन्दू राजा के धर्मोपदेशित कर्तव्यों के पालन करने के लिए पुरजोर समर्थन कर रहे थे......