जर्मनी में एक बहस के दौरान एक मिशनरी पादरी ने कहा,"हिन्दुओं ने कभी भी भारत से बाहर निकलकर अपने धर्म का प्रचार-प्रसार इसलिए नहीं किया, क्योंकि वे जानते थे कि इसकी कोई कीमत ही नहीं है"।
तत्काल इसका प्रतिवाद करते हुए एक विद्वान मैक्समुलर ने कहा, "यदि कोई व्यक्ति अपनी माँ की सुन्दरता का प्रचार करते हुए खुद की कीमत आँकता है, तो बाहरी दुनिया उसकी माँ को वेश्या समझती है।
जबकि यदि तुम्हें अपनी माँ की इज़्ज़त बढ़ानी हो तो अपने कर्मों के द्वारा बढ़ाओ…। प्रत्येक माँ की कीमत उसके बेटे द्वारा किए गए कर्मों द्वारा सिद्ध होती है, यदि पुत्र के कर्म सत्कर्म हैं तो स्वयमेव ही उसकी माँ की इज्जत बढ़ जाती है ।
इस हेतु उसे बाहर निकलकर प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता नहीं है ।
परिणाम स्वरुप...
जर्मनी के तत्कालीन कट्टरचर्च ने इस बयान के लिए मैक्सम्यूलर को प्रतिबन्धित कर दिया था… इस चर्चित बयान के बाद अचानक दुनिया के सभी पश्चिमी विद्वान, हिन्दुत्व को समझने के लिए भारत की ओर दौड़ पड़े थे।