अपार हर्ष और आनंद की अनुभूति से भर गया हूँ...
अंततः नींव के पत्थर कोठारी बंधुओं के बलिदान को सम्मान दिया जाएगा।
5 अगस्त राम जन्मभूमि शिलान्यास में कोठारी बंधुओं के परिवार को निमंत्रित किया गया है।
नेतृत्व का आभार।
ये वही कोठारी बंधु थे जिन्होंने सत्ता को चुनौती देते हुए 1990 में राम जन्मभूमि पर बने गुम्बदों पर "भगवा" लहराया था पर मुख्यमंत्री के आदेश पर पुलिस ने रामभक्तों को गोलियों से भून दिया था।
रामभक्त कोठारी बन्धु 22 अगस्त 1990 को कलकत्ता से अयोध्या के लिए निकले थे, बनारस आकर रुक गए थे और अयोध्या जाने का प्रयास करने लगे।
पर रामभक्तों को रोकने के लिए मुलायम सरकार ने ट्रेनें और बसें बंद कर रखी थीं तो वे टैक्सी से आजमगढ़ के फूलपुर कस्बे तक आए... इसके बाद यहाँ से सड़क का रास्ता भी बंद था।
लेकिन दोनों 25 अक्टूबर को अयोध्या की तरफ पैदल निकले पड़े.
करीब 200 किलोमीटर पैदल चलने के बाद 30 अक्टूबर को दोनों अयोध्या पहुँचे।
30 अक्टूबर को गुंबद पर चढ़ने वाला पहला आदमी शरद कोठारी ही था.
फिर उनके भाई राम कोठारी भी चढ़े और दोनों ने वहाँ भगवा लहरा दिया।
सरकार की नजर में चढ़े कोठारी बंधुओं को 2 नवंबर 1990 को पुलिस ने अयोध्या की कोठी वाली गली में घेरकर मार डाला। पहले शरद कोठारी को गोली मार दी गयी... बड़े भाई राम कोठारी... अपने भाई से लिपट कर रोने लगे...
शरद के शरीर से लिपटे-लिपटे ही... राम कोठारी के सिर में भी गोली मार दी गई...
#दोनों_भाइयों ने हिंदुत्व की अस्तित्व की लड़ाई के प्रतीक... श्रीराममंदिर के लिए अपने प्राण अर्पित कर दिए...
4 नवंबर 1990 को शरद और रामकुमार कोठारी का सरयू के घाट पर अंतिम संस्कार किया गया.
उनके अंतिम संस्कार में हजारों लोग उमड़ पड़े थे.
ऐसे ही हजारों बलिदानों से आज गौरवशाली क्षण आया है।
उसमें इन बलिदानियों के परिवारों को आमंत्रित करना अत्यंत सुखद है।