जगबीर सिंह's Album: Wall Photos

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माँ-बाप ने निशा नाम रखा। लेकिन राम नाम की उसने ऐसी अलख जगाई कि दुनिया ने उसे साध्वी ऋतम्भरा के नाम से जाना। भक्तों की दीदी माँ साध्वी ऋतम्भरा राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख किरदारों में से एक हैं।

ये साध्वी ऋतम्भरा ही थीं, जिन्होंने कहा, “हाँ हम हिंदू हैं, हिंदुस्तान हमारा है।” जिनमें खुलकर यह कहने का साहस था, “महाकाल बनकर दुश्मन से टकराएँगे, जहां बनी है मस्जिद, मंदिर वहीं बनाएँगे।”

राम जन्मभूमि को वापस पाने का साध्वी ऋतंभरा का संघर्ष आसान नहीं था। उन्हें नीचा दिखाने की तमाम कोशिशें तत्कालीन सरकारों ने की थी। मुस्लिम तुष्टिकरण की मसीहा इन सरकारों ने इस तरह का माहौल बनाया गया जैसे वह साध्वी न होकर कोई आतंकी हों।

ऐसे ही एक वाकये का जिक्र करते हुए साध्वी ऋतंभरा ने एक इंटरव्यू में बताया था, “एक बार दिग्विजय सिंह की सरकार ने मुझे गिरफ्तार कर बीच रास्ते में ही उतार दिया। रात का समय था। पैदल चलते समय मैं ठोकर खा कर गिर गई। एक पुलिसवाले ने मुझसे कहा- लाओ साध्वी तुम्हारा हाथ पकड़ लूँ। मैंने उसे जवाब देते हुए कहा- चंडी का हाथ पकड़ने का तुम में सामर्थ्य है?”

5 अगस्त को अयोध्या में भव्य राम मंदिर के भूमि पूजन से पहले दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने आंदोलन से जुड़ी यादें ताजा की है। साध्वी ऋतंभरा ने बताया कि उन्होंने सरयू का जल हाथ में लेकर राम मंदिर निर्माण का संकल्प लिया था। अब अयोध्या में 5 तारीख को इतिहास रचने जा रहा है। उन पलों का साक्षी बनना अपने आप में गौरव की बात है। वे कहती हैं, “मेरी तरुणाई श्रीराम जन्मभूमि को अर्पित हुई, इसका अगाध सुख है।”

वे कहती हैं राम मंदिर आंदोलन के लिए प्राण गँवाने वाले और जिन्होंने इस आंदोलन का नेतृत्व किया उनकी बस एक ही चाहत थी कि रामलला हमारे मंदिर में विराजमान हों। उनका संकल्प अब पूरा होने जा रहा है। 491 वर्षों तक श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण का स्वप्न संजोए जिन लाखों रामभक्तों ने संघर्ष करते हुए अपना बलिदान दिया, ये दिन उनकी आत्मिक शांति को समर्पित होगा।

साध्वी ऋतम्भरा 1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा बनीं। विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा संचालित “श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन” का एक तेजस्वी चेहरा बनकर उभरीं। उन्होंने इस आंदोलन की सफलता के लिए सारे भारत में धर्म जागरण किया।

उन्होंने इस आंदोलन के लिए हिन्दू समाज की विभिन्न जातियों को एकता के सूत्र में बाँधा। इसी एकात्म हुई हिन्दू शक्ति ने इस आंदोलन की सफलता के रूप में अपने आराध्य श्री रामलला की जन्मभूमि पर अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण का सम्पूर्ण न्यायालयीन अधिकार प्राप्त किया।

राम मंदिर आंदोलन के समय की बातों का जिक्र करते हुए साध्वी ऋतंभरा बताती हैं कि कुछ लोगों ने उनका इस्तेमाल करने भी कोशिश की। आंदोलन के समय एयरपोर्ट पर लोग मुझे आतंकवादी के रूप में देखते थे। 10 घंटे मुझे बैठाया जाता था। मेरी चेकिंग की जाती थी। लेकिन मुझे पता था कि मैंने कोई अपराध नहीं किया था।।

उन्होंने बताया कि पुलिस से बचने के लिए वे उस समय भेष बदल कर यात्रा करती थीं। उस समय का दौर ऐसा था कि उन्हें खेतों, स्टेशनों, भिखारियों के बीच कितनी रातें भूखे-प्यास काटनी पड़ी। कई बार तो वे अनजान लोगों के घर भी आश्रय लेने को मजबूर हुईं। पुलिस के डर से लोग अपने घरों में उन्हें ठहराने से भी डरने लगे थे।

फिलहाल साध्वी ऋतंभरा अश्रीकृष्ण की लीला स्थली वृंदावन में वात्सल्य ग्राम चलाती हैं। वात्सल्य ग्राम की पूरी परिकल्पना के माध्यम से वे भारतीय पारिवारिक व्यवस्था की सकारात्मकता पर जनमानस का ध्यान आकर्षित कर उसका प्रसार करने का सम्पूर्ण प्रयास कर रही हैं।
✍..प्रकाश सिंह