आचार्य बालकृष्ण ने कोरोना की आयुर्वेदिक दवा बनाने का दावा किया तो पहले तो उनकी नागरिकता से लेकर तमाम व्यक्तिगत आरोप शुरू हो गए।
इसके बाद पतंजलि को लेकर और आयुर्वेद को ही टारगेट करके लिखा जाने लगा।
ठीक है....
आशंकाएं जायज है। हो सकता पतंजलि का दावा 100% सही भी न निकले ......
लेकिन जब पूरे विश्व मे वेक्सीन को लेकर 100 से अधिक ट्रायल चल रहे हो जिनमें 12 ही पहले चरण को पार कर पाए और 5 कम्पनियां अगले चरणों मे पहुँची।
जिनमे अमेरिकी कम्पनी Moderna Inc जुलाई में फाइनल ट्रायल करने जा रही है। तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का अंतिम ट्रायल अगस्त-सितंबर तक मे होगा।
अब सब यही उम्मीद कर रहे कि ये ट्रायल सफल हो जाये।
लेकिन बाकी के जितने ट्रायल हो रहे हो सकते वो पहले-दूसरे चरण में ही दम तोड़ दे या कोई आखिरी चरण में सफल न हो पाए।
लेकिन क्या मजाल किसी ने उन पर उंगली उठाई हो।
तब यही कहा गया कि वेक्सीन बनाने में दसियों साल लग जाते।
तो फिर पतंजलि को किस आधार पर सिरे से नकार देते हो?
उन्होंने भी क्लीनिकल परीक्षण किया है। अमेरिका में रिसर्च पेपर में पब्लिश के लिए भेजा है।
कम से कम थोड़ा सब्र तो कर ही लो।
हद से ज्यादा नकरात्मकता साथ मे लॉजिक के नाम पर 'घण्टा' लिख देने से कुछ न होने वाला।
अगर कही वाकई बाबा जी कोरोना की बूटी ले आये तब फिर उसका इस्तेमाल न करना।
यहाँ ये बात भी ध्यान रखे कुछ अस्पतालों में आयुर्वेदिक काढ़े ने अच्छे रिजल्ट दिए है बाकी आयुष मंत्रालय की गाइडलाइन भी है और कोरोना पॉजिटिव लोगों को आयुर्वेद में वर्णित सूत्रों के आधार पर काढ़ा दिया जा रहा है।
इससे पहले योग का भी खूब मजाक उड़ाया और आज UN ने योग दिवस तक घोषित कर दिया। दुनिया के 180 से ज्यादा देशों में योग तेजी से बढ़ रहा।
कम से कम हर जगह विरोध की प्रवृत्ति छोड़ कर अगर कुछ अच्छा हो रहा हो तो अगर उसका समर्थन न कर सको तो विरोध तो न ही करो।
और जो कम्पनियां कोरोना वेक्सीन को लेकर ट्रायल कर रही है उन्हें उनके देश की सरकारें या बड़ी कम्पनियां करोड़ो डॉलर्स की फंडिंग कर रही है।
यहाँ बाबा खुद अपना पैसा लगा रहे तो लोगों के पेट मे दर्द क्यो हो रहा...?