*जब देखा खुद को आइने में,*
*थोड़ा घबरा गए थे हम ।*
*और जब बन -ठन गए ,*
*खुद ही इतरा गए थे हम ।*
*चेहरे की त्वचा ,*
*थोड़ी ढीली हुई तो क्या,*
*उम्र भी थोड़ी बढ़ गई तो क्या,*
*बाल सफ़ेद अब आने लगे हैं ।*
*कलर है न, लगा के हम भी तो इतराने लगें हैं ।*
*यह भी इक पड़ाव है जिंदगी का*
*हम सब के मध्य आएगा।*
*बचपन आया ,जवानी आई ,*
*तो क्या बुढ़ापा न आएगा ?*
*समय का बस आप मज़ा लीजिए,*
*क्या कुछ छूटा परवाह न कीजिए।*
*जो है बस उसे भर कर जिएं*
*लुत्फ़ ज़िंदगी का उठा लीजिए।*