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राम-सीता का आपसी त्याग
मानवइतिहास का सबसे महान फैसला

लेखक : डॉ। कौशिक चौधरी

'सत्य क्या है?' 'धर्म क्या है?' - इन सवालों के जवाब में मैं एक बात हमेशा दोहराता हूँ, 'अच्छा होना धर्म नही है, सही होना धर्म है। अच्छा होना लक्ष्य नही है, सही होना लक्ष्य है।' मुश्किल चुनाव कभी सही और गलत के बीच नही होते। वे हमेशा अच्छे और सही के बीच मे होते है। जिन्होंने सत्य को जान लिया है वह हमेशा सही रहने की कोशिश करते है। जिन्होंने सत्य और धर्म को सिर्फ धर्मगुरुओ के प्रवचनों से जाना है वह हमेशा अच्छे बने रहने की कोशिश करते है। क्या भीम को दुर्योधन की जंगा तोड़नी चाहिए थी, जब कमर के नीचे वार करना नियमों के खिलाफ था? अच्छा बनने की कोशिश करनेवाले युधिस्ठिर और बलराम कहेंगे 'नही, ये अच्छा नही होगा, इसलिए इसे नही करना चाहिए।' पर कृष्ण कहेंगे, 'जब दुर्योधन जांगो के सिवा पूरा शरीर लोहे का कर चुका है तब उसे हराने का सिर्फ यही मार्ग है कि जहां वोह हार सकता है वहां वार किया जाए। अगर वह जीत गया तो महाभारत के इतने बड़े नरसंहार के बाद भी हस्तिनापुर की गद्दी पर उसके जैसा अधर्मी इंसान ही बैठेगा और समाज को अधर्म के मार्ग पर धकेल देगा। उसकी जंगा तोड़ना शायद अच्छा ना भी हो, पर सही वही है। और जो सही है वही सत्य की रक्षा करता है।' पूरे महाभारत में कृष्ण ने कहीं भी अच्छा बनने की कोशिश नही की, उन्होंने सिर्फ सही बनने की कोशिश की। और यही राम के सीता त्याग का भी कारण है।

जब सीता का नाम लेकर राज्य की कुछ स्त्रियों ने ये कहना शुरू कर दिया कि 'हमारी रानी दस महीने किसी और के महल के बाहर रहके आई, फिर भी राजा ने उसे स्वीकारकर रानी बना दिया। इसलिए हम भी अगर कही एक-दो रात ठहर जाए तो किसीको हमे सवाल पूछने का अधिकार नही। हमारे पतिओं को भी हमे स्वीकारना होगा।' - तब सीता पर लांछन लगना शुरू हो गया। जैसे जैसे दिन बितते गए ये बात और फैलती गई और राज्य के पुरुष भी अब रानी सीता से द्वेष करने लगे, क्योंकि उसकी वजह से उनकी पत्नियाँ स्वच्छंदी बन रही थी। जब राम को ये पता चला तो राजा राम के लिए तो ये सिर्फ चिंता की बात थी, पर सीता के प्रेमी राम के लिए ये दिल चिर देनेवाला विखवाद था। जिस सिताने दस महीने तक रावण की कैद में रहकर भी रावण को स्पर्श नही करने दिया, जिसने अपने प्रेम की दिव्यता से रावण को रोके रखा उस सीता की पवित्रता पर ना सिर्फ सवाल उठाया जा रहा था, बल्कि उसका नाम लेकर व्याभिचार करने की छूट ली जा रही थी। अब यहां से हम मान ले कि चलो राम ने सीता का त्याग न किया और उन्हें रानी बनाकर रखा, तो क्या होता? तो समाज मे ये बदी फैलती जाती और उसके बचाव में सीता का उदाहरण पेश किया जाता। पूरा समाज व्याभिचार के अधर्म में घिर जाता और स्त्रियों के लिए आपसी संघर्ष में नष्ट होता। और सीता इस पूरे विकृत चित्र की एम्बेसेडर बनाई जाती। उस दिन सच न होते हुए भी सीता अपवित्र और चरित्रहीन साबित होती, तभी तो पूरे समाज को उसने अपने नाम पर ऐसा करने दिया। आज हम रामायण में एक ऐसी सीता के बारे में पढ़ते जिसने रावण की कैद में अपनी पवित्रता घवाई और फिर रानी बनकर पूरे समाज को ऐसा बनने पर प्रोत्साहित किया। अगर सीता का त्याग न किया जाता तो आज वह हमारे लिए एक आदर्श की जगह एक कलंक होती, निर्दोष होने के बावजूद।

राम और सीता दोनों विष्णु स्थिति के इंसान थे। वे इस दूरंदेशी चित्र को जान चुके थे। वह दोनों जान चुके थे कि अब सीता की पवित्रता और प्रतिष्ठा को बचाने का एक ही रास्ता है- जो राम और सीता आत्मा से एक है, वह अब शरीर से अलग हो जाए। पूरी पृथ्वी पर उनका एकदूसरे का शरीर ही एकमात्र पदार्थ था जो कितनी भी मुसीबतों के बाद भी एकदूसरे को शांति देता था। अब उन्हें वह भौतिक पदार्थ भी छोड़ देना था और आध्यात्मिक रूप से हर पल एकदूसरे के आत्मा से जुड़े रहना था। आखिर यह मुश्किल फैसला किया गया। ये फैसला न किसी राजा और रानी का फैसला था, ना किसी सामाजिक पति-पत्नी का। ये फैसला दो प्रेमियों का फैसला था जो पति-पत्नी भी बन पाए थे और राजा-रानी भी। अब वापस उन्हें सिर्फ प्रेमी बन जाना था और बाकी के दोनों रिश्तो के लाभ त्यागने थे। और उन्होंने ये लाभ त्याग दिए। ये फैसला बेडरूम में दो प्रेमियों के बीच लिया गया, पर जिन वासनाग्रस्त लोगों को सीधा रखने के लिए इसे लिया गया था उनको उदाहरण देने के लिए इसे लागू राजा राम ने करवाया। 'सीता को जंगल मे किसी सन्यासी के आश्रम के नजदीक हमेशा के लिए छोड़ दिया जाए। अब वे अयोध्या की महारानी नहीं रह सकती।' एक इंसानने अपने जीवन की एकमात्र कीमती चीज़ को इस तरह एक राजा के अभिनय के साथ छोड़ दिया। और किस लिए, समाज को अधर्म के मार्ग पर जाने से रोकने केलिए। समाज को अपनी वासनाए सीता के नाम का उपयोग करके खुली छोड़ने से रोकने केलिए। अपने प्रेम को युगों युगों की बदनामी और कलंक से बचाने केलिए एक प्रेमीने पवित्र पत्नी को त्याग देने का कलंक युगों युगों के लिए अपने सर पर ले लिया।

सिताने ऋषि के आश्रम में सुविधाओं के अभाव में राम के बिना जीवन काटा, तो रामने महल में सीता के बिना पल पल काटती हुई उन सुविधाओं और राजा की जिम्मेदारियों के बीच जीवन काटा। दोनों में से किसी ने दूसरी शादी तो क्या दूसरे व्यक्ति के बारे में सोचा तक नही। सीता आश्रम में और राम महल में नीचे बिस्तर लगाकर सोते रहे, पल पल एकदूसरे को याद करते हुए। और जब आखरी परीक्षा के रूप में सीता धरती में समा गई तब उनकी पवित्रता की रक्षा हमेशा के लिए हो गई। अयोध्या का लांछन बदनाम हुआ और सीता देवी बन गई। राम और सीता का एकदूसरे को त्यागने का पर्सनल निर्णय सफल साबित हुआ। पर राम के माथे पर पत्नी को छोड़ने का कलंक कुछ मूर्ख, अर्धज्ञानी और षड्यंत्रकारी लोगो की एवं प्रेम को न समज पानेवाली स्त्री सशक्तिकरण का झण्डा पकडी हुई स्त्रियों की जमात में आज भी लगा हुआ है। राम का बचाव करनेवालों में भी ज्यादातर अंध भकत है जो राम के खिलाफ कुछ सुनना नहीं चाहते, तो कुछ लोग वह रूढिचुस्त पुरुषप्रधान मानसिकता वाले लोग है जो आज भी स्त्री की पवित्रता की कसौटी में विश्वास करते है। ये आर्टिकल उन सभी लोगों के लिए हिंदी में लिखा गया है, ताकि वोह जहां कहीं भी हो इस आर्टिकल की भाषा उनकी समझ मे आ सके।

राम और सीता ने जो फैसला किया वह ऐसे दो प्रेमी ही कर सकते थे जिनके आत्मा युगों से जुड़े हुए है। अगर कोई आम सांसारिक पति-पत्नी होते, तो उस परिस्थिति में या तो पति अपनी पत्नी के शरीर को भोगने की लालसा से उसे अपने पास रख लेता और समाज को उसकी पत्नी के नाम पर अधर्म करने देता, जिससे आखिर में उसकी पत्नी पर लगा आरोप सिद्ध हो जाता। या तो लोगों की निंदा से विचलित होकर पति उस पत्नी को छोड़ देता और कुछ वक्त बाद किसी और स्त्री से विवाह कर लेता। राम की आलोचना करनेवाले तथाकथित बुद्धिजीवी इस बात का ध्यान रखे कि रामने इन दोनों में से एक भी नही किया। रामने अच्छा दिखने की कोशिश नही की, जो हर आम संसारी करता है। रामने सही बनने की कोशिश की। उन्होंने वह किया जो सही था। और मानवइतिहास के उस महान निर्णय से रामने ना सिर्फ समाज को अधर्म के मार्ग पर जाने से बचा लिया, अपनी प्रियतमा सीता की प्रतिष्ठा को भी हमेशा हमेशा के लिए सुरक्षित कर लिया। जब कि इस काम मे उनके अपने दामन पर दाग लग गया। शायद सीता को किसी जन्म में राम का ये ऋण चुकाना पड़े और राम की प्रतिष्ठा और अपने प्रेम की रक्षा के लिए वोह काम करना पड़े जिसमे अच्छा दिखने की बजाए वह करना जरूरी हो जो सही है।
साभार Kaushik Chaudhary