गौरवमय-इतिहास (दिव्यजीवन)'s Album: Wall Photos

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#अमर_सनातनी_महायोद्धा
#महाप्रतापी_महाराजा_बप्पा_रावल

#उनका_जन्म
बप्पा रावल का जन्म मेवाड़ के महाराजा गुहिल की मृत्यु के 191 वर्ष के पश्चात 712ई. में ईडर में हुआ था। ईडर के शाषक महेंद्र द्वितीय नागादित्य के बेटे के रूप में उन्होंने जन्म लिया था।
वैसे तो गुहिलादित्य/गुहिल को गुहिल वंश का संस्थापक कहते हैं, पर गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक बप्पा रावल को माना जाता है, इसी राजवंश को सिसोदिया भी कहा जाता है।

#उनका_बचपन
बप्पा रावल जब मात्र 3 वर्ष आयु के थे तब
तब उनके माता विभिन्न प्रकार के षड्यंत्र के कारण उनको लेकर असहाय महसूस कर रहे थे, तब भील समुदाय ने उनकी और उनके माता की मदद कर बड़े ही कुशलता के साथ उनको सुरक्षित रखा।
बप्पा का बचपन भील जनजाति के बीच रहकर ही बीता था। उन्होंने वहीं पर ही शस्त्र विद्या, घुड़सवारी और सारा युद्ध कौशल सीखे थे।

#राज्याभिषेक
वह सन् 733 के लगभग गद्दी पर बैठे थे। उनसे पहले भी उनके वंश के कुछ प्रतापी राजा मेवाड़ में शासन कर चुके थे, किंतु बप्पा का व्यक्तित्व उन सबसे बढ़कर था उन्होंने अपने वंश को और गौरवान्वित किए थे।
परंतु उन्होंने शासक बनने के बाद अपने वंश का नाम ग्रहण नहीं किया, बल्कि मेवाड़ वंश के नाम से नया राजवंश चलाया था और चित्तौड़ को अपनी राजधानी बनाया था।
इन्हीं के ही वंश में आगे चलकर कई महान सम्राट जन्म लिए थे जिनमें राजा राणा कुम्भा, राणा सांगा, महाराणा प्रताप जैसे सुर वीरों का नाम भी शामिल है

#बप्पा_नाम_के_पीछे_का_कारण
सिसौदिया वंशी राजा कालभोज का ही दूसरा नाम बप्पा रावल था। बप्पा या बापा वास्तव में व्यक्तिवाचक शब्द नहीं है, अपितु आदरसूचक "बापा" शब्द मेवाड़ के एक नृपविशेष के लिए प्रयुक्त होता रहा है। महाराजा काल भोज के प्रजासरंक्षण, देशरक्षण आदि कामों से प्रभावित होकर ही जनता ने इन्हें बप्पा/बापा पदवी से विभूषित किया था। संपूर्ण में मेवाड़ इन्हें प्यार से बप्पा के नाम से ही पुकारता था।

#उनकी_सेना
बप्पा रावल की सेना उस समय काफी मजबूत मानी जाती थी। उन्होंने उस समय वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिंडी में अरब लुटेरों पर निगरानी रखने के लिए एक सैन्य चौकी भी बनाई थी। पहले इस जगह को गजनी कहा जाता था। परंतु वहां पर बप्पा रावल के सेना चौकी होने के कारण इसका नाम गजनी से रावलपिंडी बन गया था। उस समय तक इस जगह पर आराम से आवाजाही थी। ऐसे में समझा जा सकता है कि मेवाड़ साम्राज्य का शासन आधुनिक अफगानिस्तान तक था।

#महत्वपूर्ण_लड़ाइयां
बप्पा रावल ने अन्य राजाओं के साथ मिलकर 16 साल अरब लुटेरों से लड़ाई लड़ी और उन्हें हिंदुस्तान की मुख्य भूमि से दूर रखा। इसी लड़ाई में फिर एक समय ऐसा भी आया, जब बप्पा रावल ने सिंध से अरबों को पूरी तरह से खदेड़ कर उनका प्रभाव ही समाप्त कर दिया था। मुख्य रूप से अरबों के साथ लड़ाई ही उन्हें संपूर्ण भारतवर्ष में प्रसिद्धि दिलाई थी

#मोहम्मद_बिन_कासिम_से_युद्ध
भारत पर सबसे पहला अरब आक्रमण अल हज्जाज के भतीजे और दामाद मुहम्मद बिन कासिम ने 712 ई. में खलीफा की मदद से हिंदुस्तान की उत्तर पश्चिमी सीमा से सिंध पर किया था। उस समय दाहरसेन वहां के राजा थे। सिंध की सीमा यूपी के कन्नौज, अफगानिस्तान में कंधार से लेकर कश्मीर और रेगिस्तान को पार कर नमक की दलदली भूमि गुजरात के कच्छ तक थी।

मोहम्मद बिन कासिम ने उनके किले पर कई बार हमला किया, लेकिन दाहरसेन की सेना से उसे हार ही मिली। फिर एक रोज कासिम ने धोखे से दाहरसेन की सेना में अपने सिपाहियों को महिला वस्त्र पहनाकर भेज दिया। आखिरकार, राज्य की रक्षा के लिए दुश्मनों से लड़ते हुए दाहरसेन ने अपने प्राणों की आहूति दे दी। इस प्रकार छल से अरबों ने सिंध को जीतकर उसके बड़े भू-भाग पर कब्जा कर लिया था।

इसके बाद रास्ते में आने वाले सभी साम्राज्य अरबों के आगे कमजोर पड़ते गए, कोई भी शक्ति अरब आक्रमणकारियों का मुकाबला करने में सक्षम नहीं थी। वह वर्तमान अफगानिस्तान, सिंध को जीत चुका था, और रेगिस्तान से होते हुए मेवाड़ की ओर बढ़ रहा था। देखते ही देखते कुछ ही सालों में अरब आक्रांताओं ने चावड़ों, मौर्यों, सैंधवों, कच्छेल्लों को हराकर उनके राज्यों को अपने अधीनस्थ कर लिए। इस दौरान मोहम्मद बिन कासिम सिर्फ धन ही नही लुटता था। वह व्यापक जनसंहार करता था, उसके रास्ते मे आने वाले नगर गांव तबाह हो जाते थे।

ऐसे समय में नागादित्य के पुत्र और मेवाड़ के महाराजा बप्पा रावल ने युद्ध की बागडोर अपने हाथों में ली। उस समय उनका उम्र मात्र 22 साल ही था परंतु अपने अद्भुत वीरता और रण कौशल के साथ उस समय का महान संत हरित मुनि के आशीर्वाद से उन्होंने अपनी विशाल सेना को एकत्र किया और हार चुके राज्यों को जीत का आश्वासन देकर अपने पक्ष में किया। बप्पा रावल ने सबसे पहले मेवाड़ के पास स्थित महत्वपूर्ण चित्तौड़ किले पर अधिकार जमाया और 734 ई. में मेवाड़ में गहलौत वंश की स्थापना की। उन्होंने न केवल अरब लुटेरों को खदेड़ा, बल्कि उनके द्वारा कब्जाए गए इलाकों पर पुन: अधिकार कर उन्हें मेवाड़ में भी मिला लिया था।

#अरब_आक्रांताऔं_से_युद्ध
738 ई. - अरब आक्रमणकारियों से ये युद्ध वर्तमान राजस्थान की सीमा के भीतर हुआ था बप्पा रावल, प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम व चालुक्य शासक विक्रमादित्य द्वितीय की सम्मिलित सेना ने अल हकम बिन अलावा, तामीम बिन जैद अल उतबी व जुनैद बिन अब्दुलरहमान अल मुरी की सम्मिलित सेना को पराजित किया था।

बप्पा रावल यही तक नही रुके उन्होंने उसके बाद उन्होंने अकेले ही गजनी (अफगानिस्तान) की ओर कूच किया और वहां के शासक सलीम को हराया। कर्नल टॉड के मुताबिक सलीम ने अपनी लड़की की शादी बप्पा ने करके जीवन दान मांगा था।

गजनी जीतने के बाद बप्पा ने वहां अपना एक प्रतिनिधि नियुक्त किया। सिर्फ यही नही बप्पा रावल ने कंधार समेत पश्चिम के कंधार, खुरासान, तुरान, इस्पाहन, ईरानी साम्राज्यों को जीतकर उन्हें अपने साम्राज्य में मिला लिया था।
इन सभी राज्यो के मुस्लिम शासकों ने अपनी बेटियों की शादी बप्पा रावल से कर कर अपना जीवन दान मांगा था।

इसके बाद 735 ई. में हज्जात ने राजपूतना पर अपनी कब्जा जमाने के लिए फौज भेजी थी, परंतु यहां पर भी उसके फौज को बप्पा रावल से सामना करना पड़ा था। जिसके नतीजन उन्होंने हज्जात की फौज को हज्जात के मुल्क तक खदेड़ दिया था।
अरबों के खिलाफ हर एक युद्ध में भील समुदाय ने अपने देश और मातृभूमि के लिए हमेशा ही बप्पा रावल का सहयोग किया था।
उन्होंने युद्ध में अरब की हमलावर सेनाओं ऐसी करारी हार दी कि अगले 400 वर्षों तक किसी भी मुस्लिम शासक की हिम्मत भारत की ओर आंख उठाकर देखने की नहीं हुई थी। बहुत बाद में महमूद गजनवी ने भारत के ऊपर आक्रमण करने की हिम्मत दिखाएं और उसे भी कई बार करारी हार मिला था।

#उनके_विवाह
महाप्रतापी बप्पा रावल के वीरता और महानता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं लगभग 100 राजाओं ने अपनी बेटियों की शादी उनसे करवाई थी।
जिनमें से 35 मुस्लिम शासकों की बेटियाँ थीं, जिनमें से कुछ शासक उनके डर से और कुछ युद्ध में हारने के बाद अपनी जान बचाने के लिए उनसे शादी करवाएं थे।
वर्तमान भारत के हिसाब से देखा जाये तो बप्पा रावल ने करीब 18 अन्तराष्ट्रीय विवाह किए थे।

#भगवान_शंकर_के_दर्शन
वह भगवान शंकर के परम भक्त होने के कारण उनके एक लिंग स्वरूप को पूजा करते थे।
बप्पा रावल को हारीत ऋषि के द्वारा महादेव जी के दर्शन होने की बात मशहूर है
एकलिंग जी का मन्दिर - उदयपुर के उत्तर में कैलाशपुरी में स्थित इस मन्दिर का निर्माण 734 ई. में बप्पा रावल ने करवाया। इसके निकट हारीत ऋषि का आश्रम है।
आदी वराह मन्दिर - यह मन्दिर ब
और साथ ही बप्पा रावल ने एकलिंग जी के मन्दिर के पीछे आदि बालाजी का मंदिर भी निर्माण किया था

#बप्पा_रावल_के_सिक्के
अजमेर के प्रचलित सोने के सिक्के को बापा रावल ने ही प्रचलन में लाओ थे। इस सिक्के का तोल 115 ग्रेन (65 रत्ती) है। इस सिक्के में सामने की ओर ऊपर के हिस्से में माला के नीचे श्री बोप्प लेख है, बाई ओर त्रिशूल है और उसकी दाहिनी तरफ वेदी पर शिवलिंग बना है। इसके दाहिनी ओर नंदी शिवलिंग की ओर मुख किए बैठा है। शिवलिंग और नंदी के नीचे दंडवत्‌ करते हुए एक पुरुष की आकृति है। सिक्के के पीछे की तरफ चामर, सूर्य, और छत्र के चिह्‌न हैं। इन सबके नीचे दाहिनी ओर मुख किए एक गौ खड़ी है और उसी के पास दूध पीता हुआ बछड़ा है। ये सब चिह्न बप्पा रावल की शिवभक्ति और उनके जीवन की कुछ घटनाओं से संबंधित हैं।

#उनकी_सन्यास_और_देहान्त
बप्पा रावल अत्यंत प्रताप और न्यायप्रिय शासक थे। वह खुद को कभी भी अपने राज्य के राजा के रूप में नहीं देखा था, बल्कि शिवजी के रूप ‘एकलिंग जी’ को ही उसका असली शासक मानते थे, और स्वयं उनके प्रतिनिधि के रूप में शासन चलाते थे।
लगभग 20 वर्ष तक शासन करने के बाद उन्होंने 753 ई. में 39 वर्ष की आयु में सन्यास लेकर, अपने पुत्र को राज्य देकर, भगवान शंकर की आराधना खुद को समर्पित कर दिया था।
लगभग 97 साल की उम्र में उनका देहान्त नागदा में हुआ, जहाँ इनकी समाधि स्थित है।
ऐसे अंत हुआ था एक महा प्रताप,मात्रू भक्त, न्यायप्रिय महान राजा की।

#अब_चर्चा_करते_हैं
#वामपंथी_इतिहासकारों_के_कुटिल_नीति_के_बारे_में

वर्ष 712 में मुहम्मद बिन कासिम ने राजा दाहिर को पराजित किया। परंतु उसके बाद सीधे बारहवीं शताब्दी में मुहम्मद गोरी का आक्रमण मिलता है।
तो क्या आठवीं सदी से 12 वीं सदी तक लगभग 460 साल तक एक ही युद्ध जीतने का वह लोग जश्न मना रहे थे ?
सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है की ना तो वामपंथी इतिहासकारों ने वह 460 साल के बारे में कोई चर्चा किए और ना ही हिंदू हृदय सम्राट, महावीर बप्पा रावल को इतिहास में सही से जगह दिए।

परंतु सच तो यही है कि उस कालखंड में अरबों को पराजित करने वाला एक महानायक योद्धा था बप्पा रावल।
अरब की आंधी का सीधा सामना उस समय मेवाड़ के सैनिकों और शासकों ने देश का सीमारक्षक बनकर निभाई और भारतवर्ष के सम्मान की रक्षा की, अन्यथा देश इस्लाम की आंधी में नेस्तनाबूत हो जाता और सनातन धर्म जिसे आज हिन्दू कहा जाता है, वह अपने अस्तित्व को बचाने के लिए पारसियों और यहूदियों की भांति मातृभूमि से पृथक हो चुका होता।